यद्यपि-भगवान भोले शंकर को बिल्व पत्र ، नारायण को तुलसी ، भगवान गणेश को हरी दुर्वा ، व सूर्य को लाल कनेर के पुष्प प्रिय है उसी प्रकार दीप प्रज्जवलित करने का भी विधान है ، घी का दीप सदैव दाई ओर व तेल का दीप सदैव बाई ओर होना चाहिये ، जल ، पात्र ، घंटा ، धूप बाई ओर होना चाहिये। देवताओं को सदैव अनामिका उगंली से तिलक लगाना चाहिये। एक दीपक से दूसरा दीपक या धूप-कपूर कभी न प्रज्जवलित करे। भगवान के समक्ष त्रिकोण घेरा बनाकर जल रखे ، भोग या नैवेद्य चोकोर घेरे में रखे ، पूजन में यदि कोई सामग्री की है तो उसके स्थान पर अक्षत व पुष्प रखे ، सदैव जयकार या प्रणाम सभी देवी देवताओं को तीन सूर्य देव की सात ، गणेश जी की तीन ، भगवान नारायण और सभी अवतारों की चार ، सभी देवी की एक ، हनुमान जी की तीन ، शिवलिंग की आधी परिक्रमा सीधे हाथ की ओर से शुरू करे। अगर सम्भव हो तो भगवान को पाँच प्रकार के नवैद्य या फल भोग लगावे।
. होता है तो अनुचित रूप से किये गये विधान का पाप भी भोगना होता-इसीलिये हर साधना के पूर्व गुरू जप व समापन के समय क्षमा प्रार्थना अनिवार्य रूप से करते है।
साधक द्वारा मंत्र जप-पूजा किसी भय या दबाव में आकर नहीं अपितु मनोकामनाओं ، इच्छाओं की पूर्ति के लिये किया जाना चाहिये। لا شيء जीवन को गुरूमय बनाये।
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فينيت شريمالي
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