للسيطرة على العقل أيضا يجب استخدام العقل. للخروج من العقل ، يجب استخدام العقل بقدر ما يستخدم ليخرج إلى داخله. من يفعل ذلك ليدخل إلى العقل ، يصبح العقل بالنسبة له أساس المعرفة.
समाज के भीड़ से हम हट जाये، तो भी भीड़ हमारे अन्दर छिपी रहती है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि भीड़ में बैठे हुये भी हम एकांत में हों ، और ऐसा भी हो सकता है कि एकांत में हो और भीड़ में बैठे हों। इस भीड़ में भी कोई अगर शांत होकर बैठ जाये और अपना स्मरण करे तो दूसरे व्यक्तियों को भूल जायेंगे। इस भीड़ में भी बैठकर कोई अगर अपने स्मरण से भर जाये ، तो दूसरों का स्मरण खो जायेगा। क्योंकि मन की एक अनिवार्य क्षमता है कि एक क्षण में मन के समक्ष एक ही मौजूद हो सकता है। अगर मैं अपने मन को अपनी ही मौजूदगी से भर दूं ، तो दूसरे गैर-मौजूद हो जायेंगे। चूंकि मैं अपने मन में मौजूद नहीं होता ، इसीलिये दूसरों की मौजूदगी बनी रहती है।
एकांत का मतलब बहुत गौण है। एक ऐसी जगह बैठ जाना، जहां दूसरा मौजूद न हो। यह जगह बाहर की कम और अन्दर की ज्यादा है ، यदि तुम बाजार में भी बैठे हो और तुम्हारे मन में दूसरा मौजूद न हो ، तो तुम एकांत में हो। और ध्यान रखना कि अगर बाजार में बैठकर एकांत नही हो सकता ، तो एकांत में भी एकांत नहीं हो सकेंगे।
क्योंकि मन का एक दूसरा नियम है कि जो मौजूद नही होता ، उसकी याद आती है। जहां हम नहीं होते हैं، वहां होने की आकांक्षा होती है। इसीलिये अक्सर ऐसा होता है कि बाजार में बैठे हुये तुम सोचते हो، एकांत में होते तो कितना अच्छा होता और एकांत में बैठे हुये तुम बाजार की कल्पना से भर जाते हो। हम जहां होते हैं मनुष्य का चिंतन होना चाहिये कि उसकी वाणी उसके मन में स्थिर हो जाये ، वाणी उसके मन के अनुकूल हो जाये ، मन से अन्यथा वाणी में कुछ न बचे। जो मेरे मन में हो، वही मेरी वाणी में हो، मेरी वाणी मेरी अभिव्यक्ति बन जाये। मैं जैसा भी हूं، अच्छा या बुरा। वही मेरी वाणी से प्रकट हो। मेरे शब्द मेरे मन के प्रतीक बन जाये। बहुत मुश्किल लगता है। जीवन भर हमारी कोशिश रहती है अपने आप को छिपाने की और जब हम बोलते हैं तो यह क्यों जरूरी नहीं कि कुछ बताने को बोलते हों। बहुत बार तो झूठ भी बोलते है।
मन का वाणी में ठहरने का अर्थ है कि जब मैं बोलना चाहूं भीतर मेरा मन हो! और जब मैं न बोलना चाहूं तो मन भी ना रहे। जब आप चलते हैं तभी आपके पास पैर होते हैं। आप कहेंगे، नहीं जब नहीं चलते हैं तब भी पैर होते हैं। लेकिन उस समय उनको पैर कहना सिर्फ कामचलाऊ है। पैर वही है जो चलता है। मन अभिव्यक्ति करने का माध्यम है। जब तुम बोल नहीं रहे होते، प्रकट नही कर रहे होते، तब मन की कोई भी जरूरत नहीं होती है। लेकिन हमारी आदत बन गई है सोते، जागते، बैठते मन चल रहा है। पागल मन है हमारे भीतर। आप अपने मालिक इतने भी नहीं कि तुम्हारी आंख अपनी मर्जी से देखे जो अनिवार्य हो उसे देखें ، तो आपकी आंख का जादू बढे़गा ही ، देखने की दृष्टि बदल जायेगी। व्यक्तित्व में क्षमता और शक्ति का प्रवाह होगा।
जब भी व्यक्ति अपने आपको खोजने के लिये भीतर जायेगा तो पहले बुराइयों की खाईयां मिलेगी और जब बुराइयों की खाईयां पार कर पाओगे ، तभी श्रेष्ठता के शिखर तक पहुँच सकोगे। इसीलिये जो अपने आप को भला व्यक्ति मानकर बैठा है ، वह भीतर जा ही न सकेगा। क्योंकि आपकी भले मानने की मान्यता ही डर पैदा करेगी कि यहां भीतर गये तो बुराईयों का सामना करना पड़ेगा और जो सामना करने से डरता है ، वह कभी भीतर नहीं जा सकता। वर्तमान समय में सांसारिक मनुष्य अपने बाहर भटक रहा है ، फिर भी वह संतुष्ट नहीं हैं। बाहर भटकने का मतलब यह नहीं है कि आप संतुष्ट हो، दुःखी तो आप हो ही، भीतर गये तो और दुःखी होना पडे़गा। क्योंकि वहां अपनी बुराई की खाई से तुम्हारा साक्षात्कार होगा। इसलिये आप बाहर जीते हो، अपनी ही बुद्धि से अपने आप को सही साबित कर बुराईयों को ढ़कने का पूरा प्रयास करते हो। वही व्यक्ति भलाई के शिखर को، गुणों के शिखर को प्राप्त कर पाता है जो बुराई की खाई से गुजरा हो।
खाई से बचने के दो उपाय हैं या तो खाई में प्रवेश ही मत करों और खाई के बाहर ही अपनी जिदंगी बिता दो। जैसे भी हो अच्छे-बुरे ، अमीर-गरीब वैसे ही जीवन बिता दो ، आप वही जीवन जीना भी चाहते हो। . हो ، जबकि ऐसा नहीं है कि आपके ऐसा करने से मैं रूक जाऊंगा सद्गुरूदेव ने मुझे जो कार्य सौंपा है उसमें जितनी बाधायें ، अड़चने आयेंगी तो भी वह कार्य करूंगा ही ، मैं तो अपना प्रयास बार-बार करता ही रहूंगा ، ठहरूंगा नही जब तक आप शिखर पर ना पहुँच जाये ठहरूंगा नहीं जब तक मेरा कार्य पूर्ण न हो जाय। मेरा कार्य है आप को शिखर पर पहुँचा देना। यदि आप वैसे जीवन बिता दोगे जैसे आप हो तो शिखर पर कभी नहीं पहुँच पाओगे। दूसरा उपाय यह है कि खाई में प्रवेश करों، प्रवेश करके गुजरना है، रूकना नहीं है। लेकिन खाई से मुक्त होने के लिये खाई से गुजरना ही पडे़गा।
जीवन में अगर मलिनता और बोझिलता रहेगी तो जीवन नीरस ही रहेगा। सांसारिक क्रियाओं में आनन्द व सुखी जीवन की आकांक्षा सभी को होती है، पर उसकी उपलब्धि तभी संभव है जब हम अपने दृष्टिकोण की त्रुटियों को समझें और उन्हें सुधारने का प्रयत्न करें। श्रेष्ठ दृष्टिकोण ही परिस्थितियों के अनुसार संतोष को कायम रख सकता है। नूतन वर्ष मंगलमय हो यही मेरा आप सभी को हृदय भाव से आशीर्वाद है आप अपने घर में कोई भी भी कार्य तो सर्व प्रथम सद्गुरू का स्मरण कर कार्य सपफ़लता का आशीर्वाद प्राप्त करें। जिससे आपका नूतन कार्य हर दृष्टि से पूर्णरूपेण श्रेष्ठ बन सके।
سنة جديدة سعيدة تتمنى لجميع أبنائي وبناتي
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