ज्ञान को प्राप्त करने की जो प्रक्रिया-पद्धित थी हजारों साल पहले थी ، आज भी वही है ، ईश्वर को प्राप्त करने के लिये ، गुरू के ज्ञान को आत्मसात करने के लिये ، स्वयं के ज्ञान के लिए ज्ञान-शक्ति-भक्ति और चेतना की ही आवश्यकता है।
समय के साथ सब बदलता है परन्तु गुरू का अपने शिष्य के प्रति प्रेम-दायित्व नही बदलता। . क्योंकि ईश्वर की भक्ति में जो इतनी शक्ति है जो एक बूढे़ को भी नाचने पर विवश कर दे।
، ईश्वर कि कितनी भक्ति में तल्लीन हुए हो- ये सभी किया होगा तभी तो वास्तविक चेतना प्राप्त होगी।
बीते वर्ष में बहुत सुखद पल रहे साथ ही कई कष्टों का ، असफलता का भी सामना भी करना पड़ा। परन्तु आने वाले इस वर्ष में हममे आत्मा बल चेतना व गुरू शक्ति आशीर्वाद हो।
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فينيت شريمالي
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