आज कल माता-पिता की सेवा करने के बदले लोग पूजा-पाठ، तीर्थ-भ्रमण، दान करने में लगे रहते हैं और इसे भी लोग आस्था से अधिक फैशन और गौरव के रूप में महत्व देते हैं। लेकिन अपने वृद्ध माता-पिता की उपेक्षा करके यह सब किया-कराया दम्भ निष्फल है। भारतीय संस्कृति में यह मान्यता है कि माता-पिता की सेवा किसी भी तीर्थ के समान फलदायी है। भगवान गणेश माता-पिता की परिक्रमा करके ही देवताओं में सर्वप्रथम पूज्य हुये।
भारतीय नारी द्वारा शिशु को जन्म ، देव ब्रह्मा की उपासना ، शिशु को नहलाना शिवलिंग पर अभिषेक करना ، भरण-पोषण करना नारायण का सहयोग करना ، हाथ पकड़कर चलाना मन्दिर की परिक्रमा करना माना जाता है बालक द्वारा अंगूठा चूसना वट पत्र पर भगवान बालमुकुन्द के दर्शन का प्रतीक माना जाता है। ऐसी श्रेष्ठ क्रियाओं को सम्पन्न करने वाले बुजुर्गों की सेवा और सम्मान नहीं होना ही जीवन का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है।
आज के वातावरण में युवाओ को परामर्श देना बड़ा मुश्किल है، क्योंकि इससे युवा अपने को अपमानित अनुभव कर सकते हैं। साथ ही उनके स्वाभिमान को ठेस लग सकती है। परन्तु विचार करने पर ऐसा अनुभव होगा कि सभी निर्णय अपने बुद्धि से करना उचित नहीं है। तुम अपने माता-पिता के साथ जैसा व्यवहार करोगे، निश्चित ही वैसा व्यवहार तुम्हारे बच्चे तुम्हारे साथ भी करेंगे। यदि तुम अपने माता-पिता की उपेक्षा करोगे तो ध्यान रखना आने वाला समय और अधिक आधुनिक होगा फिर तुम्हें अपने परिवार में दयनीय पूर्ण जीवन व्यतीत करने के लिये विवश होना पड़ेगा। इसीलिये याद रखना कभी भी अपने माता पिता ، बुजुर्गों की उपेक्षा नहीं करना चाहिये।
القصة في هذا السياق هي كما يلي-
एक व्यक्ति वृद्धावस्था के कारण बहुत कमजोर हो गया था ، जिससे उसके हाथ कांपते थे और उसके कारण वह अपने दैनिक कार्यों को करने में भी असमर्थ था। एक दिन पुत्र ने सोचा पिता जी को भोजन और सोने के सिवा कुछ और करना नहीं है ، क्यों ना इनको सामने की झोपड़ी में शिफ्ट कर दूं ، पडे़-पड़े यहां पर रात भर खांसते ही रहते हैं। पत्नी की भी समहति बनी और दम्पति ने उस बुजुर्ग को सामने की झोपड़ी में शिफ्ट कर दिया ، जो कई माह साफ नहीं किया गया था। साथ ही बार-बार थाली ना धोना पड़े इसलिये एक लकड़ी की थाली बनवा दी ، जिसमें बुजुर्ग को सुबह- शाम भोजन दे दिया जाता था। उस व्यक्ति के मृत्यु के कुछ समय पश्चात् दम्पति का पुत्र खेलते-खेलते झोपड़ी में चला गया और साथ में वह की थाली लेकर घर आ गया और उसे साफ करने लगा। पिता ने पुत्र से पूछा कि थाली किस लिये साफ कर रहे हो؟ यह अब हमारे किसी काम की नहीं है। पुत्र ने मधुर वाणी में कहा पिता जी जब आप बूढ़े हो जायेंगे ، तो आपके लिये भी ऐसी ही थाली की आवश्यकता पड़ेगी। इसलिये मैं इसे सुरक्षित रखने के लिये साफ कर रहा हूँ। अपने ही पुत्र के मुंह से ऐसी बात सुनकर दम्पति को बहुत दुःख हुआ और पश्चाताप की आग में जलने लगे।
युवाओं के लिये वह गहन चिंतन का विषय है ، कि किस प्रकार वे अपने माता-पिता की सेवा कर आयु ، विद्या ، यश और बल वृद्धि का आशीर्वाद् प्राप्त कर सके।
واجبنا تجاه كبار السن
परिवार के सभी सदस्य प्रतिदिन प्रातः काल उठने के साथ ही स्नान के पश्चात् वृद्ध माता-पिता ، दादा-दादी तथा अपने से बड़ों के चरण स्पर्श करते हुये उन्हें नमन करे भारतीय संस्कृति के अनुसार दाहिने हाथ से दाहिने पैर का एवं बायें हाथ से बांये पैर का अंगूठा स्पर्श करते हुये उनसे आर्शीवाद प्राप्त करने से ऊर्जा प्राप्त होती है। ये पारम्परिक संस्कृति ही आपसी प्रेम की प्रथम क्रिया है।
प्रतिदिन अपने घर के बुजुर्ग व्यक्ति के साथ कुछ समय अवश्य व्यतीत करे ، जिससे वे अपने आपको उपेक्षित न समझें। वार्तालाप करे، उनका समाचार जाने، हास्य-विनोद की बातें करे। इससे समरसता के साथ-साथ सभी खुश होंगे।
كل يوم وفقًا لقدراتهم وموسمهم ، اصطحبهم في رحلة في الوقت المناسب. بالذهاب إلى المعبد ، جنبًا إلى جنب مع الاستفادة من دارشان ، سيتم أيضًا إجراء تمرين بسيط.
वृद्ध के सामर्थनुसार उन्हें धार्मिक ، आध्यात्मिक एवं सामाजिक कार्यो में प्रतिभागी बनाते रहे ، जिससे वे अपने आपको संसार से अलग न समझें और न अनुपयोगी ही। कभी-कभी धार्मिक आख्यान ، कथा ، कहानी सुनाने हेतु उन्हें अभिप्रेरित करें।
श्रीमद्भगवत गीता، रामायण तथा अन्य धार्मिक एवं आध्यात्मिक पुस्तके، पत्र-पत्रिकायें उपलब्ध करवाकर उन्हें स्वाध्याय हेतु प्रेरित करे। उनकी असमर्थता की दशा में परिवार के किसी व्यक्ति द्वारा उन्हें श्रवण कराना चाहिये।
अवस्था एवं शक्ति के अनुसार वर्ष में कम से-कम एक बार उन्हें तीर्थ दर्शन ، गुरू आशीर्वाद् हेतु अवश्य ले जायें तथा माह में एक बार शहर के निकट किसी धार्मिक स्थल ، मन्दिर का भ्रमण करायें।
पराश्रित एवं वृद्धावस्था के कारण यथा सम्भव आवश्यकता अनुसार तन ، मन ، धन से उनकी सेवा में कोई कसर न छोड़े। अपने ऊपर उन्हें भार-स्वरूप न माने، यथासम्भव उन्हें नौकर अथवा पड़ोसी के आश्रित ना होने दे। उन्हें पूर्ववत् जीवन जीने के लिये प्रोत्साहित करते रहे।
प्रेम देकर प्रेम، शान्ति देकर शान्ति एवं सम्मान देकर सम्मान प्राप्त करे। घृणा देकर घृणा की ओर न बढ़े।
खान-पान ، वस्त्र आदि में उनकी इच्छा का ध्यान रखें सद्व्यवहार पूर्ण उन्हें भोजन ، दूध ، नाश्ता नियमित एवं निर्धारित समय पर देना अपेक्षित है प्रत्येक समय बिना मांगे उनकी समुचित इच्छाओं की पूर्ति करने का प्रयास करे ، इससे वे अपने आपको गौरवान्वित अनुभव कर आशीष प्रदान करेंगे।
भूल कर भी कटाक्षपूर्ण शब्दों का उपयोग कर उन्हें दुःखी न करे। अवस्था अनुसार उनके स्वभाव का ध्यान रख कर शान्त रहे। उनके द्वारा पारिवारिक सामंजस्य की आशा न रखते हुये परिवार के सभी सदस्यों को उनके साथ धैर्य पूर्वक सामंजस्य बनाये।
उनकी व्यक्तिगत सम्पत्ति पर उनका ही अधिकार है ، ऐसा मानकर भी वे उसका जैसे भी सदुपयोग करे ، करने दे।
दान-पुण्य करे तो करने दे। परिवार के किसी भी सदस्य अथवा बाहर के प्राणी ، संस्था आदि को दे तो सहर्ष उनका सहयोग ही करें ، विरोध नहीं करें। इस विचारधारा के साथ आप भी पुण्य के भागी होंगे तथा परिवार के सभी सदस्य अनावश्यक मनमुटाव से बच जायेंगे। यह सब कार्य कर्तव्य सोच समझकर करे। घर के बुजुर्गं व्यक्ति को हर समय प्रसन्न रखे। इसी से परिवार में आनन्द-सुख की वृद्धि होती है।
احب امك
شبها شريمالي
إلزامي للحصول عليها جورو ديكشا من الموقر Gurudev قبل أداء أي Sadhana أو أخذ أي Diksha أخرى. الرجاء التواصل كايلاش سيدهاشرام ، جودبور من خلال البريد إلكتروني: , واتساب, الهاتف: or إرسال طلب سحب للحصول على مواد Sadhana المكرسة والمفعمة بالقداسة والمقدسة والمزيد من التوجيه ،
شارك عبر: