. बाजार में अधिपत्य के बाद भी! हमारी दृष्टि में यह सामान्य बात नहीं है ، क्योंकि हम आपके रूप में एक सहयोगी को ही प्राप्त कर रहे हैं ، भले ही हमारा-आपका प्रत्यक्षतः परिचय न हुआ हो.
. कार्य अन्य किसी माध्यम से सम्भव भी कहाँ है؟
ज्ञान स्वयं में कोई गतिशील अथवा जाग्रत तत्व नहीं होता है वरन् वह जाग्रत एवं गतिशील होता है तो उन व्यक्तियों के माध्यम से ، जो स्वयं में अग्नि कण के समान ज्वलनशीलता समाहित किये रहते हैं आवश्यकता पड़ने पर अशुभ के विध्वंस को तत्पर हो सकते आपमें कुछ ऐसा ही है। यह कहना आपकी प्रशंसा अथवा कोई अतिश्योक्ति नहीं अपितु वास्तविकता ही है और यह पत्रिका इसी अग्नि स्फुलिंग धधक से से का प्रयास करती आ रही है।
वह ज्ञान जो क्रिया एवं संवेदना से शून्य हो ، प्रस्तर मूर्ति से अधिक नहीं होता ، जबकि हमें तो जीवित ، जाग्रत ، स्पंदनों से भरे व्यक्तित्व अपेक्षित हैं। केवल प्रचार-प्रसार ही नहीं वरन् आपके मन ، वचन और कर्म की इस पत्रिका से संयुक्ति की आशा हमने मन में संजोयी है। यही भावना मानवता، राष्ट्रीयता और सर्वोपरि विश्व बंधुत्व का आधार बन सकती है। . इस पत्रिका के किसी एक अंक को पढ़ लेने तक ही स्वयं को सीमित न करें वरन् कम से इसकी इसकी वार्षिक को ग्रहण करें ، क्योंकि ज्ञान तो किसी सतत् प्रवाह की ही दूसरी संज्ञा हो सकती है।
इस पत्रिका में हमने प्रयास किया है، कि ज्ञान के युग के अनुरूप व्याख्या सम्भव हो सके، क्योंकि यह केवल इस की विशेषता रही है उसने समय-समय पर आत्मालोचना के द्वारा अपनी विसंगतियों को पहचान कर उनसे मुक्त होने की क्रिया की है । यही इस देश की गतिशीलता का रहस्य भी है।
. मर्यादा पुरूषोत्तम 'का धर्म रहा है। जो शिव को ग्रहण करेगा वही तो मर्यादित होगा ، वही तो शीलवान होगा और ऐसा बनते हुये ही कोई निश्चित दिशा भी परिलक्षित हो सकेगी।
पंचांग के अनुसार यह संवत् 2080 के प्रारम्भ का भी अवसर है। यह वर्ष आपके लिये जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उन्नतिप्रद सिद्ध हो، इस शुभकामना को मेरी व पत्रिका परिवार की ओर से स्वीकार करें।
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