जननी जन्म देने वाली माँ-माता ईश्वर की सबसे बड़ी रचना है، जिसमें निर्माण करना، एक नये जीव को जन्म देने की शक्ति ईश्वर ने समाहित की है मातृ शक्ति को ही इस योग्य बनाया गया है कर सके ، उसे रोप सके ، उसे अपनी प्राण-ज्ञान ऊर्जा से एक स्वस्थ ، सुडोल मानव बना सके। ईश्वर ने अपनी इस अनमोल रचना को केवल जन्म देने तक ही सीमित नहीं रखा अपितु माँ ज्ञान ، शक्ति व समृद्धि का प्रतीक भी है ، जिसे हम माँ सरस्वती ، माँ दुर्गा एवं माँ लक्ष्मी स्वरूप पूजते हैं। माँ के इन तीन स्वरूपों को हम भिन्न-भिन्न तरीके से पूजते हैं क्योंकि माँ की शक्ति तो अनंत है।
भगवान शिव को भी अर्धनारीश्वर कहा गया है अर्थात महादेव भी माता के बिना अपूर्ण है। हर मांगलिक कार्य ، अनुष्ठान ، पूजा कर्म माता स्वरूप के साथ ही करने का प्रावधान है ، मातृ शक्ति के बिना किया गया कोई भी धार्मिक कार्य अपूर्ण होता है। . नवरात्रि में नव दुर्गा- दुर्गा सप्तसती का पाठ।
. के लिये देवी स्वरूप जगत जननी माँ शक्ति की आराधना कर अपने कष्टो का समाधान कर अपने जीवन को पार लगा सकते हैं। भौतिक ، आध्यात्मिक ، मानसिक ، शारीरिक ، तंत्र ، प्रेत ، अज्ञानता ، अन्धकार पूर्ण स्थितियों से हमें निकाल कर्म प्रधान बनने की चेतना केवल माँ ही प्रदान कर सकती हैं।
अब यह हम पर निर्भर करता है، हम किस स्वरूप में उसे ग्रहण करें। आने वाले नव दिवसों में शिविर व साधनात्मक कार्यक्रमों में आप भाग लेकर अपने जीवन के कष्टों के समाधान प्राप्त कर सकते हैं।