छठ पूजा के दिन सूर्य भगवान की पूजन सम्पन्न कर उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। चार दिवस तक मनाये जाने वाला यह पर्व बड़ा ही कठिन है। इसमें शरीर और मन को पूरी तरह साधना पड़ता है، इसलिये इस पर्व को 'हठयोग' भी माना जाता है।
छठ पर्व मूलतः सूर्यदेव की आराधना का पर्व है ، जिसे हिन्दू धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है। हिन्दू धर्म के देवताओं में सूर्यदेव ऐसे देवता है ، जिन्हें साक्षी रूप में देखा जा सकता है। छठ पर्व ، छठ या षष्ठी पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाने वाला एक हिन्दू पर्व है। इस वर्ष 30 अक्टूबर 2022 यह पर्व मनाया जायेगा। भारत में सुर्योपासना के लिये प्रसिद्ध यह पर्व मूलतः सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे 'छठ' कहा गया है। पारिवारिक सुख-समृद्धि तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिये यह पर्व मनाया जाता है। सूर्यदेव की पूजा का यह त्योहार मुख्य रूप से पूर्व भारत के बिहार، झारखंड، पूर्व उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्र में मनाया जाता है।
छठ पूजा के विधि-विधान क्या है؟
छठ पूजा एक ऐसा पर्व है، जो पूरी तरह से साधक को अपनी इंद्रिय जनित कमजोरियों पर विजय दिलाता है। इससे साधक इसकी कठोरता से जरा भी विचलित हुये बिना पूरे श्रद्धा और समर्पण भाव से इस व्रत को करते है। त्योहार के अनुष्ठान चार दिनों तक मनाये जाते है। इनमें पवित्र स्नान، उपवास और पीने के पानी (वृत्ता) से दूर रहना، लंबे समय तक पानी में खड़ा होना और (प्रार्थना प्रसाद) और अर्घ्य देना शामिल है। इसमें मुख्य उपासक आमतौर पर महिलाये होती है। हालांकि، बड़ी संख्या में पुरुष भी अभूतपूर्व श्रद्धा के चलते इस उत्सव का पालन करते है।
यह पर्व चार दिवसीय है। भाई दूज के तीसरे दिन से यह आरम्भ होता है। छठ पूजा पूरे विधि-विधान के साथ किया जाता है ، व्रति दिन भर अन्न-जल त्याग कर शाम करीब 7 बजे से खीर बनाकर ، पूजा करने के उपरान्त प्रसाद ग्रहण करते हैं ، जिसे खरना कहते हैं। तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य यानी दूध अर्पण करते है। अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य चढ़ाते हैं। पूजा में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है।
लहसुन، प्याज का सेवन वर्जित होता है। जिन घरों में यह पूजा होती है، वहाँ का संपूर्ण वातावरण बहुत ही भक्तिमय व सात्विक होता है। भक्तिगीत गाये जाते है। अंत में लोगों को पूजा का प्रसाद दिया जाता हैं और व्रत को संपूर्ण माना जाता है।
छठ का पर्यावरणीय महत्व क्या है؟
छठ पूजा का महत्व पर्यावरण के दृष्टिकोण से भी है क्योंकि इसका स्वरूप व मनाने का ढंग पूरी तरह से प्रकृति को समर्पित है। यह है ही प्रकृति की पूजा। इसके पूजन के केंद्र में सूर्य हैं और पूजन सामग्री मौसमी फल-सब्जियाँ ، जो कि प्रकृति का आभार स्वरूप है।
छठ पूजा की ऐतिहासिक शुरूआत ، संस्कार और पुराणिक उल्लेख
छठ पर्व، छठ षष्ठी का अपभ्रंश है। कार्तिक मास की अमावस्या को दीवाली के बाद मनाये जाने वाले इस चार दिवसीय व्रत की सबसे कठिन और महत्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्ठी की होती है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाये जाने व मान्यता के अनुसार सूर्य भगवान की बहन छठी मइया को समर्पित होने के कारण इसका इसका छठ पड़ा एक कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे ، तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य के देव सूर्य मंदिर में छठी मैया की आराधना की थी। तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। इसके बाद अदिति के पुत्र त्रिदेव रूपी आदित्य भगवान ने असुरों पर देवताओं को विजय दिलाई। कहते हैं कि उसी समय से देव सेना से षष्ठी देवी के नाम पर हो गया और छठ का चलन भी शुरू हो गया। रामायण में भी उल्लेखित एक मान्यता के अनुसार ، लंका विजय के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की। सप्तमी को सूर्याेदय के समय पुनः अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था।
उत्सव का संपूर्ण स्वरूप क्या है؟
छठ पूजा चार दिवसीय उत्सव है। दौरान व्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं। इस दौरान वे पानी भी ग्रहण नहीं करते।
الاستحمام والأكل- पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी 'नहाय-खाय' के रूप में मनाया जाता है। सबसे पहले घर की साफ-सफाई कर उसे पवित्र किया जाता है। इसके पश्चात छठव्रती स्नान कर पवित्र तरीके से बना शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते है। घर के सभी सदस्य व्रती के भोजन के बाद ही भोजन ग्रहण करते हैं।
لوهاندا وخرنا- दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को व्रतधारी दिन भर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं। इसे 'खरना' कहा जाता है। खरना का प्रसाद लेने के लिये आस-पास के सभी लोगों को नियंत्रित किया जाता है। प्रसाद के रूप में गन्ने के रस में बने हुये चावल की खीर के साथ दूध ، चावल का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है। इसमें नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है। इस दौरान पूरे घर की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है।
مساء الارجيا- तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ का प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ ، जिसे कुछ क्षेत्रें में टिकरी भी कहते हैं ، के अलावा चावल के लड्डू ، जिसे लडुआ भी कहते है ، बनाते हैं। इसके अलावा चढ़ावा के रूप में लाया गया सांचा और फल भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल होता है। शाम को पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बांस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और व्रती के साथ परिवार तथा पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी सूर्य अर्घ्य घाट घाट की ओर चल पड़ते हैं। सभी छठव्रती एक नियत तालाब या नदी किनारे इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से अर्घ्य दान संपन्न करते हैं। सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य दिया जाता है तथा छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है।
أوشا أرغيا- चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदियमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। व्रती वहीं पुनः इकट्ठा होते हैं، जहाँ उन्होंने पूर्व संध्या को अर्घ्य दिया था। पुनः पिछले शाम की प्रक्रिया की पुनरावृत्ति होती है। सभी व्रती तथा श्रद्धालु घर वापस आते हैं। व्रती घर वापस आकर पीपल के पेड़، जिसे 'ब्रह्म बाबा' कहते हैं، की पूजा करते हैं। पूजा के पश्चात् व्रती कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं ، जिसे पारण या परना कहते हैं।
سريع
छठ उत्सव के केंद्र में छठ व्रत है ، जो एक कठिन तपस्या की तरह है। यह छठ व्रत अधिकतर महिलाओं द्वारा किया जाता है ، कुछ पुरुष भी यह व्रत रखते हैं। व्रत रखने वाली महिलाओं को परवैतिन कहा जाता है। चार दिनों के इस व्रत में व्रती को लगातार उपवास करना होता है। भोजन के साथ ही सुखद शैय्या का भी त्याग किया जाता है। पर्व के लिए बनाये गये कमरे में व्रती फर्श पर एक कम्बल या चादर के सहारे ही रात बिताती हैं। इस उत्सव में शामिल होने वाले लोग नए कपड़े पहनते हैं، जिनमें किसी प्रकार की सिलाई नहीं की गई होती है। व्रती को ऐसे कपड़े पहनना अनिवार्य होता है। महिलायें साड़ी और पुरुष धोती पहनकर छठ करते हैं। 'छठ पर्व को शुरू करने के बाद सालो-साल तब तक करना होता है ، जब तक कि अगली पीढ़ी की कोई विवाहित महिला इसके लिये तैयार न हो जाये। घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर यह पर्व नहीं मनाया जाता है। '
إشارة إلى سوريا بوجا
छठ पर्व मूलतः सूर्यदेव की आराधना का पर्व है ، जिसे हिन्दू धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है। हिन्दू धर्म के देवताओं में सूर्यदेव ऐसे देवता हैं ، जिन्हें मूर्त रूप में देखा जा सकता है। सूर्य की शक्तियों का मुख्य श्रोत उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा हैं। छठ में सूर्य के साथ-साथ दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है। प्रातः काल में सूर्य की पहली किरण (ऊषा) और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्यूषा) को अर्घ्य देकर दोनों को नमन किया जाता है।
6 خطوات من chhath puja
في اليوغا ، تنقسم عملية Chhath Puja إلى 6 مراحل. تم الانتهاء من تنقية Chhath Puja في 6 خطوات.
أولاً- शरीर और आत्मा का निराविषीकरण، ऐसा व्रत अनुशासन और आत्मसंयम से संभव से किया जाता है। अपने शरीर और ध्यान को सूर्य की प्राण ऊर्जा पाने के लिये तैयार करते हैं।
ثانية- नदी में आधा शरीर डूब जाने तक खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देना، ऐसा करने से सूर्य से मिलने वाली प्राण ऊर्जा से सुषुम्ना नाड़ी जागृत होती है।
ثالث- इस चरण में सूर्य की ऊर्जा आपकी आँखो से पीनियल ग्रंथियों तक पहुँचती है।
الرابع- चरण में आपके अंदर ग्रंथियां एक्टिवेटेड हो जाती हैं।
الخامس- जैसे ही पीनियल ग्रंथि जागृत होती है ، आपकी रीढ़ तरंगित होकर आपके अंदर की कुंडिलिनी शक्ति को जागृत करती है और आपकी इंटुइशन ، यानी अंतर्दृष्टि को मजबूत करती है।
السادس- व्रत धारण करने वाला स्वयं ऊर्जा का एक स्रोत बन जाता है और जगत को अपने व्यक्तित्व की सकारात्मक ऊर्जा से पोषित करने लायक बन जाता है।
सच्चे मन और श्रद्धा के साथ छठ पूजा व्रत करने वालो की सभी मनोकामनाये पूरी होती है इसलिये मनोकामनाये पूरी पूरी लिए स्त्री और पुरुषों दोनो के द्वारा छठ पूजा व्रत किया जाता हैं।
في ثقافتنا الهندية ، تعتمد المهرجانات على بعض الأحداث التاريخية وهي مهمة جدًا بالنسبة لنا. نصلي لمختلف الآلهة والإلهات ونتمنى كل خير ونحتفل في كل مناسبة.
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