. के भी निश्चित अर्थ संस्थापित हो चुके है।
यह सत्य है कि विशिष्ट साधनाये विशिष्ट उद्देश्यों की पूर्ति में सहायक होती हैं किंतु अन्ततोगत्वा एक अर्द्धसत्य है और अर्द्धसत्य किसी झूठ से भी अधिक भ्रमित करने वाला होता है।
. साधक का ध्यान साधना से भी अधिक इस बात पर केन्द्रित रहता है कि कैसे उसके जीवन की किसी समस्या विशेष का समाधान शीघ्रातिशीघ्र हो सके।
यद्यपि ऐसा करने में कोई दोष नहीं है। . साधक को ही तो मिलता है।
साधना एक व्यवसायिक विषय वस्तु नहीं होती है कि मुँह मांगा दाम देकर अपनी मनोवांछित वस्तु को प्राप्त कर लिया जाये। . विवेचन के माध्यम से।
प्रत्येक साधना यद्यपि स्वयं में किसी एक विषय तक ही केंद्रित प्रतीत होती है किंतु वही साधना स्वयं में एक सम्पूर्ण साधना भी होती है। . करने में भी सक्षम होने लग जाता है।
यह कदापि महत्वपूर्ण नहीं है कि किस साधक के इष्ट कौन है، क्योंकि कोई भी देवता न तो छोटे होते है न बड़े। न कोई देवी या देवता न्यून होते हैं और न कोई उच्च ، यदि साधक के पास एक सम्पूर्ण दृष्टि हो। . ही है।
. बिना मिलना कठिन ही नहीं असंभव भी होती है किंतु इसके पश्चात् भी मानों भगवान भैरव का चित्र पूर्ण नहीं होता।
. प्रकार का भौतिक अभाव रह जाये।
.
'इति भैरवः' (अर्थात् शत्रुओं को भयभीत करने वाले है، वे भैरव हैं) ही नहीं वरन् 'बिभर्ति जगदिति भैरवः' (अर्थात् जो समस्त जगत का भरण पोषण करने वाले हैं ، वे भैरव है। यह बात और है कि उनकी जन सामान्य में छवि एक भीषण देव के रूप में ही सुस्थापित हुई।
. पूर्ति तक केंद्रित रखने के कारण ही होती है।
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لا شيء
भगवान शिव की ही भांति भगवान भैरव का स्वरूप भी अत्यंत शीघ्रता से प्रसन्न होने वाला माना गया है। आवश्यकता है तो केवल इस बात की ، कि साधक को भैरव साधना में आने वाले विशिष्ट चरणों का विशेष रूप से ज्ञान हो। प्रत्येक साधक का एक गूढ़ सूत्र होता है या यूं कह सकते है कि النقطة الأساسية होता है जिसके अभाव में भले ही कितने ही लाख मंत्र जप क्यों न सम्पन्न कर लिये जाये ، सफलता पूर्णरूपेण नहीं मिल पाती है। यह النقطة الأساسية प्रत्येक साधना की अंतर्भावना के साथ परिवर्तित होने वाला तत्व होता है अर्थात् यह आवश्यक नहीं कि जो साधना साधना सत्य हो तथा इसका निर्धारण के आधीन न होकर भाव के ही अधीन होता है।
काल भैरव का स्वरूप भी किसी तर्क के आधीन न होकर भाव के अधीन आने वाला विषय होता है। साधक सामान्यतः काल भैरव संज्ञा से किसी भीषण आकृति की कल्पना कर लेते हैं और यदि तत्सम्बन्धित साधना में प्रकृत होते भी हैं ، तो एक भयमिश्रित जुगुप्सा के साथ। उनका ऐसा भाव रखना ही साधक के लिये सर्वाधिक न्यून हो जाता है।
. . स्थान नहीं देगा، उनसे संबंधित साधना विधि को प्रयोग में पूर्ण एकाग्रता से नहीं लायेगा।
आगे की पंक्तियों में उपरोक्त दिवस की चैतन्यता के अनुरूप साधना विधि प्रस्तुत की जा रही है जो किसी भी भैरव अथवा गृहस्थ साधक द्वारा अवश्यमेव प्रयोग में लाने योग्य है। इस विधि की विशिष्टता है कि जहां एक ओर से यह दुर्बलता، हीनता आदि की स्थितियों को समाप्त करने की साधना है वहीं दूसरी ओर से पूर्ण भौतिक समृद्धिदायक साधना भी है। इसे सम्पन्न करने के इच्छुक साधक को चाहिये की वह समय रहते काल चक्र मुक्ति भैरव यंत्र व भैरव माला को विशिष्ट दिवस 16 نوفمبر 2022 في أي ليلة جمعة أو أحد في حوالي الساعة العاشرة صباحًا ، ارتدِ ملابس سوداء وانخرط في التأمل. من الضروري الجلوس في مواجهة اتجاه الجنوب. قم بإضاءة مصباح زيت كبير بعد أداء العبادة العامة ليانترا ومالا والصلاة مع المانترا التالية.
इसके पश्चात् अक्षत ، कुंकुम ، पुष्प व जल हाथ में लेकर दीपक के समक्ष छोड़ते हुए निम्न मंत्र उच्चारित करें-
गृहाण दीपं देवेश، बटुकेश महाप्रभो।
मामाभीष्टं कुरू क्षिप्रमापद्भ्यो समद्धर ।।
ثم انحنى للمصباح مع ترديد-
भो बटुक! मम् सम्मुखोभव ، मम कार्य कुरू कुरू
इच्छितं देहि-देहि मम सर्व विघ्नान् नाशय नाशय स्वाहा ।।
अपने मन की इच्छाओं व उनमें आ रही बाधाओं का उच्चारण कर (अथवा मन ही मन उनका स्मरण कर) साथ ही भगवान भैरव से उनकी पूर्ति की प्रार्थना भैरव माला से निम्न मंत्र की 11 माला मंत्र जप सम्पन्न करें। यदि संभव हो तो यह मंत्र दीपक की लौ पर ध्यान करते हुए ही करे-
بعد ترديد المانترا ، قم بترديد المانترا التالية مرة أخرى أمام المصباح.
أبعث لك مصباحا نجني من بحر الموت مع زهرة بدون حرف المانترا
فيكلينوا أنت أعبد من قبلي! اغفر لي يا ربي
ध्यान रखें की दीपक को बुझाना नहीं है ، अपतिु वह जब तक जले उसे जलने देना है। दूसरे दिन सभी साधना सामग्री को नदी में विसर्जित कर दे। जीविकोपार्जन के क्षेत्र में आ रही बाधाओं को समाप्त करने के लिये यह एक अनुभव सिद्ध साधना है।
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