गीता भगवान की श्वास और भक्तों का विश्वास है। अपनी शैली और ज्ञान की गंभीरता के कारण हजारों वर्षों से गीता का पठन-पाठन ، पूजन होता चला आ रहा है। देश-विदेश के सैकड़ों दार्शनिकों، गुरुओं और संतो ने गीता की व्याख्या की है। इस पर टीकायें लिखी है، गीता ज्ञान का अद्भुत भंडार है। हम सभी हमारे हर कार्य में तुरन्त सफलता चाहते हैं ، लेकिन भगवान ने कहा है कि धैर्य के अभाव में केवल ، दुख ، मोह ، क्रोध ، काम और लोभ की स्थितियों में वृद्धि होगी। अतः जीवन में भक्तिमय कर्मभाव स्वरूप में ज्ञान को आत्मसात कर ही जीवन में उच्चताओं को प्राप्त किया जा सकता है। गीता भक्तों के प्रति भगवान द्वारा प्रेम में गाया गीत है। जीवन उत्थान के लिये गीता का स्वाध्याय हर व्यक्ति को करना चाहिये।
मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को श्रीकृष्ण، व्यास मुनि तथा गीता की पूजा की जाती है। गीता का पाठ किया जाता है। . दुःख व संताप लाती है इसके निस्तारण से ही जो भी असुर रूपी मोहमय स्थितियां हैं वे समाप्त और वह मनसा-वाचा-कर्मणा पवित्र हो जाता है अर्थात् मन ، वचन व कर्म भाव से श्रेष्ठ बनता है।
أخبر فيد فياس جي عظمة جيتا في ماهابهاراتا -
अर्थात् गीता सुगीता करने योग्य है। गीता जी को भलीभांति पढ़ कर अर्थ व भाव सहित अन्तः करण में धारण कर लेना मुख्य कर्तव्य है। गीता स्वयं विष्णु भगवान के मुखारबिंद से निकली हुई है। फिर अन्य बहुत से शास्त्रों के की क्या आवश्यकता है؟
جيتا هي أيضا الأوبنشاد من الأوبنشاد. يجد الرجل في جيتا حلاً لجميع مشاكله. من خلال دراسة Gita ، يتم تحقيق كل من الائتمان والحب. قال اللورد كريشنا بوضوح-
अर्थात् कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है ، लेकिन कर्म के फलों में कभी नहीं —- इसलिये कर्म को फल के लिये मत करो और न ही काम करने में तुम्हारी आसक्ति हो इसी भाव से निरन्तर सांसारिक जीवन में क्रियाशील रूप में कर्म करते रहेंगें तो निश्चिन्त रूप से उसका परिणाम अवश्य ही प्राप्त होगा। तात्पर्य यही है कि जीवन में प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रिया प्राप्त होती है، अतः निरन्तर सुभाव चिंतन से कर्म करने से सुपरिणामों की प्राप्ति होती है।
जीवन में अशांति तब आती है، जब हम कर्म करने से पहले ही उसके परिणाम के बारे में विचार करते हैं। माली प्रतिदिन पौधों को पानी देता है ، मगर फल सिर्फ मौसम में ही आते हैं ، इसीलिये जीवन में धैर्य रखें ، प्रत्येक चीज अपने समय पर होगी ، इस हेतु प्रतिदिन बेहतर काम करें ، आपको उसका फल समय पर जरूर मिलेगा।
मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी (अगहन सुदी ग्यारस) का पूजा विधान अन्य एकादशियों की भांति ही है। ब्रह्मपुराण के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी का बहुत बड़ा महत्व है। यह एकादशी मोह स्वरूप अंधता का क्षय करने वाली है ، इसीलिये इसे मोक्षदा एकादशी कहते हैं। गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि मैं महीनों में मार्गशीर्ष का महीना हूं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मोक्षदा एकादशी का व्रत बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा، तुलसी की मंजरी व धूप، दीप से पूजन कर पाठ और कीर्तन करने से समस्त पापों का नाश होता है।
मोक्षदा एकादशी की प्राचीन कथानुसार चंपा नगरी में प्रतापी ، धार्मिक व चारों वेदों के ज्ञाता राजा वैखानस रहते थे। उनकी प्रजा भी खुशहाल थी। लेकिन एक दिन राजा ने सपना देखा कि उनके पूर्वज नरक की यातनायें झेल रहे हैं और ये यातनायें अत्यधिक पीड़ादायक होती जा रही है। यह सपना देख राजा अचानक उठ गये और सपने के बारे में उन्होंने अपनी पत्नी को बताया। इस पर पत्नी ने राजा को गुरु आश्रम जाकर सलाह लेने को कहा।
अगले दिन राजा आश्रम गये तब वे गुरु तपस्या में लीन थे। राजा उनके समीप बैठकर प्रतीक्षा करने लगे। तपस्या पश्चात् राजा ने बहुत ही दुखी मन से अपने स्वप्न के बारे में उन्हें बताया। इस पर पर्वत मुनि ने राजा के सिर पर हाथ रखकर बोले तुम एक पुण्य आत्मा हो ، जो अपने पूर्वजों के संतापों से दुखी हो ، तुम्हारे पूर्वजों को उनके अंहकार स्वरूप कुकर्मों का फल मिल रहा है। उन्होंने तुम्हारी माता को तुम्हारी सौतेली माता के कारण बहुत यातनाएं दी। साथ ही अनेक गरीबो व असहाय प्रजा का शोषण किया इसी कारण वे पाप के भागी बने और अब नरक भोग रहे हैं।
यह सुन राजा ने पर्वत मुनि से इस समस्या का हल पूछा। इस पर मुनि ने उन्हें मोक्षदा साधना करने का विधान बताया। भगवान श्रीकृष्ण को श्रीहरि भी कहा जाता है उनका श्रेष्ठतम पर्व मोक्षदा एकादशी है ، अतः एकादशी के पुण्य दिवस पर विष्णुमय संकल्प लेने व साधना सम्पन्न करने से जीवन में निरन्तर सभी सुलक्ष्मियों की प्राप्ति होती है। श्रीकृष्ण स्वरूप भगवान विष्णु हरि रूप में सांसारिक मनुष्यों के पापहरण करते हैं، कर्म करते हुये कुछ पापमय क्रियायें हो जाती हैं परिणाम स्वरूप जीवन में दुखद स्थितियां निर्मित होती हैं। इन विषम स्थितियों के निवारण के लिये सद्गुरु स्वरूप में निरन्तर चिंतन करना चाहिये।
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साधना विधान- ब्रह्माण्ड स्वरूप श्रीकृष्ण चेतन्य चित्र ، मोक्षदा माला ، सर्व सुखदा श्रीफल का पूजन करते हुये कुंकुम ، अबीर ، अष्टगंध ، अक्षत ، तुलसी व मंजरी अर्पित करें। संकल्प के साथ तीन माला संध्या बेला में सम्पन्न करें-
संभव हो तो गीता के 21 श्लोकों का पाठ करें ، गुरु आरती व समर्पण स्तुति अर्पित कर अपने के के के लिये प्रार्थना करें ، जिससे कि परिवार का सांसारिक गृहस्थ जीवन खुशहाल व आनन्दमय बने।
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