इस नवम्बर अंक से हम एक विशेष लेख आरंभ कर रहे है، जो हमारे बच्चों व युवा पीढ़ी को भारतीय संस्कृति، आचरण، व्यवहार، पूजा-पाठ، गुरू-शिष्य की परंपरा से अवगत करायें। अच्छे संस्कारों से ही लोगों का व्यक्तित्व निखरता है। इस स्तम्भ में कई रोचक कहानियां، सीखें और ज्ञान वर्धक बातों को प्रस्तुत किया जायेगा।
इसे अवश्य पढ़े व साथ ही अपने बच्चों को भी पढ़ायें ، अपने विचार व आप किस तरह के लेख चाहते है ، यह अवश्य लिखकर अपने मत व्यक्त करें।
इस बार का लेख चरण स्पर्श व प्रणाम पर है। बड़े व बुजुर्गों को प्रणाम करना، पैर छूना-हमारी संस्कृति में श्रेष्ठ माना गया है। हमारे गुरूजन को प्रणाम करने की प्रथा सदा से चली आ रही है।
यह भारतीय संस्कृति में अभिवादन، सम्मान व्यक्त करने का तरीका है।
प्रातः काल उठने के बाद बच्चों को घर के बड़े ، माता-पिता व अपने गुरू ، भगवान के पैर छूना चाहिये। पैर छूते समय दोनो हाथो से या दाहिने (حقيجب تلقي البركات عن طريق لمس أصابع اليدين.
यदि साष्टांग प्रणाम नमस्कार कर के उनका आर्शीवाद लिया जाये तो सर्वोत्तम होता है। यह एक योग आसन की क्रिया का हिस्सा है ، पैर छूने से कमर का व्यायाम होता है व यह कमर व पैरों को मजबूती देता है।
ऐसी मान्यता है कि जब हम हमारे गुरू ، माता-पिता ، व आदरणीय जन के पैर छूकर उनसे आर्शीवाद प्राप्त करते है ، तो इससे अच्छें गुणों व हमारे बच्चों के विचारों में भी परिर्वतन होता है। साथ ही हमारी बुद्धि भी उन्हीं की भांति प्रखर हो जाती हैं। साथ ही इससे एक सकारात्मक (إيجابي) تنتقل الطاقة.
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