प्रेम तो एक उत्फुल्ल सुवास है ، एक सुगन्ध है ، प्रेम तो एक छल-छल बहता हुआ झरना है ، जिसके नीचे स्नान करने से पूरे तन-मन को मस्ती की हिलोर सी आकर के एक फुहार सी पड़कर के भिगो देती है।
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ध्यान तो बुद्धि से परे हटने की क्रिया है। बुद्धि ही सगुण और निर्गुण में भेद करती है। जहां बुद्धि है، वहीं निराकार या साकार का प्रश्न है، वहीं छल-झूठ، ढोंग-पाखण्ड भी है। ध्यान तो अन्दर उतरने की क्रिया है।
गुरू तुम्हें मात्र दीक्षा ही नहीं देता है ، वह तुम्हारे रक्त को शुद्ध करता है ، जिसमें पीढ़ी दर पीढ़ी का छल ، कपट ، असत्य ، व्यभिचार समाया हुआ है। गुरू तुम्हें एक चिन्गारी देता है، एक क्रान्ति देता है، एक विस्फोट देता है और मृत्यु से अमृत्यु की ओर ले जाने की क्रिया देता है।
इसके पहले तुम्हारा जो जीवन था ، वह हाड़-मांस से बना जीवन था ، मल-मूत्र से लिप्त जीवन था ، उसमें वासनायें थीं ، स्वार्थ था ، लालच था ، ऐसा कुछ नहीं था जिस पर तुम्हें गर्व हो सके ، क्योंकि तुम्हें ज्ञात ही नहीं था कि तुम किस पगडंडी पर चल रहे हो؟
मैं हर क्षण तुम्हारे साथ हूं ، तुम कहीं अकेले नहीं हो ، इस वीरान पगडंडी पर तुम्हें अपने-आप को अकेला समझने की जरूरत नहीं है ، क्योंकि तुम्हारा हाथ पकड़कर तुम्हें ब्रह्म तक पहुंचाना है ، निश्चित रूप से तुम्हें ब्रह्म के दर्शन कराने हैं और इस जीवन में ही तुम्हें जन्म ، मरण ، भय से ، इस समस्या से मुक्त कर देना है।
जो भी बनें अद्वितीय बनें، सामान्य जीवन जीना तुम्हारे लिए उचित नहीं है। सामान्य जीवन जीकर तुम खुद का नाम तो डुबोते ही हो ، मेरा नाम भी डुबोते हो। कोई देवता या भगवान पैदा नहीं होते، बनते हैं। जन्म आपके हाथ में नहीं था ، लेकिन अगर जन्म लेकर आपको गुरू मिल जाये ، तो फिर आप अद्वितीय बन सकते हैं- राम बन सकते हैं ، कृष्ण बन सकते हैं।
يجب أن يكون هناك تنسيق بين العقل والإيمان. بسبب العقلانية المفرطة ، يصبح الشخص ماكرًا وبسبب التفاني المفرط ، يصبح كسولًا.
तुम प्रेषण बनो، मेरे संदेश को एक-दूसरे से कहो، जिससे यह दिव्य संदेश पूरे विश्व में फैल जाए।
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