"निष्क्रमणादायुषो वृद्धिरप्युद्दिष्टा मनीषिभिः"
हमारा शरीर मुख्यतया पांच तत्वों से बना है जिनमे अग्नि ، वायु ، मिट्टी ، जल व आकाश होता है। जन्म के कुछ माह तक शिशु इनसे सीधे संपर्क नहीं कर सकता अन्यथा उसके शरीर में इनका संतुलन सकता है है स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होता है। इसलिये तब तक उसे घर में रखा जाता है। निष्क्रमण संस्कार के द्वारा उसे सूर्य देव व चंद्र देव के प्रकाश में सीधा लाया जाता है ، बाहरी वायु का संपर्क करवाया जाता है जिससे वह बाहर के वातावरण के लिये अनुकूल बनता है।
طريقة أداء طرد الأرواح الشريرة
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في شيفا ، ترقد السماء والأرض بسلام.
Shante Surya Aa Pattusham Vato Te Hade.
शिवा अभि क्षरन्तु त्वापो दिव्यः पयस्वतीः ।।
अर्थात् हे बालक! तेरे निष्क्रमण के समय द्युलोक तथा पृथ्वीलोक कल्याणकारी सुखद एवं शोभास्पद हो। सूर्य तेरे लिये कल्याणकारी प्रकाश करे। तेरे हृदय में स्वच्छ कल्याणकारी वायु का संचरण हो। दिव्य जल वाली गंगा- यमुना नदियां तेरे लिये निर्मल स्वादिष्ट जल का वहन करे। अपने जल से तेरी काया को धोये، मन पवित्र करे।
وعموماً ، فإن والدي الطفل يصليان على العناصر الخمسة من أجل إطالة عمر الطفل ورفاهه. بعد ذلك ، تتم عبادة جميع الآلهة والمعلم. بعد سوريا دارشان ، يوضع الطفل للنوم على الأرض أمام الله في المعبد أو في هيكل البيت ويصلون -
ليس آغي ، وما إلى ذلك ، هو كمال طفولتي وسلوكي.
قبل أن أخرج من المنزل لمتعة شري الله.
. पाता है और वह विनम्र स्वभाव का बनता है।
सूर्यास्त के समय ढ़लते सूर्य को भी प्रणाम कर शिशु को आशीर्वाद देने के लिये सूर्य देव को धन्यवाद किया जाता है। इसके पश्चात् रात्रि में चंद्रोदय होने पर इसी प्रकार शिशु को सावधानी के साथ चंद्रदेव के दर्शन कराये जाते है ، देवी-देवताओं का पूजन किया जाता है व घर के सभी सदस्य शिशु को चिरंजीवी होने का आशीर्वाद देते है।
. और बलिष्ठ बना सके।
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