एक समय ऐसा था जब तंत्र पूरे विश्व में सर्वोपरी था महाभारत का पूरा युद्ध तंत्र के माध्यम से ही लड़ा गया कृष्ण को उस समय में 'जगद्गुरू' और 'सर्वश्रेष्ठ तांत्रिक' कहा गया ، रावण ने तंत्र के माध्यम से ही समस्त विज्ञान को और प्रकृति को अपने अधीन कर रखा था، महाभारत युद्ध में दुर्योधन، द्रोणाचार्य، भीष्म पितामह और पांडवों ने सारी रचना तंत्र के आकार से की तांत्रिक शक्तियों के प्रयोग से हार को भी विजय में परिवर्तित परिवर्तित कर दिया और शंकराचार्य तक यह तंत्र-प्रक्रिया अपने पूर्णता के साथ गतिशील थी، पर वह समय तंत्र का सर्वोच्च बिन्दु था और धीरे-धीरे तंत्र नीचे गिरता गया और नीचे गिरा हुआ विज्ञान ऊपर की ओर उठने लगा।
2500 वर्षों से निरन्तर विज्ञान ऊपर की ओर उठता गया 1914 में प्रारम्भ हुआ प्रथम विश्व युद्ध विज्ञान ही ही लड़ गया विश्व युद्ध तक विज्ञान तेजी साथ ऊपर की ओर उठता नीचे की ओर खिसकता गया ، वर्तमान समय में विज्ञान . . . हरी-भरी प्रकृति और विश्व सौन्दर्य को अक्षुण्ण बनाये रखना च ाहते है तो यह तंत्र के माध्यम से ही सम्भव है، तंत्र ही हमें जीवन में सभी दृष्टियों से पूर्णता प्रदान कर सकता है।
रूस के प्रसिद्ध वैज्ञानिक इवानोव ने तंत्र की व्याख्या करते हुये कहा है، कि यह जादूगिरी، चमत्कार या हाथ की सफाई नहीं है तो अपने शरीर की शक्तियों को पूर्णता प्रदान करने की क्रिया में अनन्त संभावनाये है ، हम इन शक्तियों में से केवल एक प्रतिशत से ही परिचित हो सके है ، इन शक्तियों को उजागर करना उन्हें समझना और उनके माध्यम से पूर्णता प्राप्त करना ही तंत्र है।
. सकते हैं ، जब शरीर की आन्तरिक शक्ति और ऊर्जा का संघर्ष 'मन्त्र' से करते हैं ، तो इन दोनों की टकराहट से '-ऊर्जा' पैदा होती है ، जिसकी चिनगारी भी हजार-हजार परमाणु बमों से भयानक होती है ، इस प्राण ऊर्जा को रचनात्मक गति देना और इसका उपयोग करना तथा इसके माध्यम से विश्व को सुख ، सौन्दर्य और पूर्णता देना ही तंत्र है।
. न हमारी सभ्यता रहेगी और न हमारी संस्कृति، न हमारी वैज्ञानिक उपलब्धि रहेगी और न जीवन का सौन्दर्य ही، जो कुछ हम विज्ञान के माध्यम से प्रगति कर रहे हैं ज्यादा प्रगति तो तंत्र के माध्यम से सम्भव है की है، वह तंत्र में पहले से ही विद्यमान है، विज्ञान जहां विनाश पथ की ओर अग्रसर है، वहीं तंत्र रचनात्मक और आनन्द पथ पर अग्रसर है، आने वाला समय तंत्र को ही समर्पित रहेगा।
इन सब उच्चकोटि के वैज्ञानिकों की धारणा के पीछे आधारभूत तथ्य है، उन्होंने तंत्र के अलग-अलग पहलुओं को छुआ है और अनुभव किया की तंत्र के माध्यम से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है द्वारा प्राप्त हो रहा है ، 21 वीं शताब्दी पूर्ण रूप से तंत्र को ही समर्पित होगी और पूरा विश्व 1 ''के रूप में मना रहा है ، और 24 फरवरी से 1 मार्च तक के समय को' तंत्र सप्ताह 'मान कर तंत्र के क्षेत्र में नवीन उपलब्धियां، नवीन शोध प्राप्त कर रहा है।
. لا شيء विद्युत का समवेत-गुणित प्रयोग होता है ، जिसके द्वारा असंभव कार्य संभव हो जाते हैं ، जिनको आज चमत्कार कहा जाता है ، वह तो मात्र मानव शरीर स्थित इन दोनों ही प्रकार की विद्युतों का समवेत-गुणित प्रतिफल है।
. 'है، और उसमें निहित शब्दों का उच्चारण करना' मन्त्र 'है، इस प्रकार उस विशेष प्रकार के मन्त्रों का उच्चारण-प्रभाव सामग्री पर पड़ता है और उससे जो प्राण ऊर्जा विद्युत प्रवाहित होती है ، वह मनोवांछित कार्य सिद्धि में सहायक होती है।
1 برانا شاكتي- जिसके द्वारा साधक अपने शरीर में से सूक्ष्म प्राणों को अलग से रूप दे कर उसके माध्यम से विश्व में पर भी विचरण करना और पुनः शरीर में लीन कर देना।
2 القوة الذاتية- . तरह देख लेना और समझ लेना।
3 قوة التنويم المغناطيسي- जिसके माध्यम से किसी भी पुरूष या स्त्री को पूर्ण रूप से सम्मोहित कर देना और उसके विचारों को भावनाओं भावनाओं को अनुकूल बना लेना ، फोटो या चित्र के द्वारा भी इस क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर लेना।
4 أكاش جامان شاكتي- من خلالها ، من خلال عكس البرانا الخاصة بك ، تذهب إلى أي مكان بسرعة الهواء من البرانا الخفية ثم تعود إلى جسدك الأصلي.
5 قوة الجمال تراكم نوع خاص من الطاقة في حياتك من خلال طريقة هيرانيا جربة ومن خلالها تحويل القبح إلى جمال.
6 مانح شاكتي- जिसके द्वारा मन को सूक्ष्म आकार दे कर पूरे ब्रह्माण्ड में फैला देना और हजारों मील दूर बैठे को को या संवाद प्राप्त करना तथा उसके मानस को अपने अनुकूल बना लेना।
7 قوة الاشتعال- जिसके द्वारा आँखों में सूर्य से करोड़ों गुना तेज विद्युत उत्पन्न कर इस्पात को भी पिघला देना या वायुयान को नीचे उतारने के लिये बाध्य कर देना अथवा श्राप या वरदान देने की क्षमता प्राप्त कर लेना।
इस तंत्र सप्ताह में इन सातों प्रकार की शक्तियों को प्राप्त करने के लिये प्रयत्न एवं प्रयोग प्रारम्भ किये जा सकते है है कि पहली या में मिल मिल या न मिले ، विश्व के अन्य उन्नत देशों ने भी धैर्यपूर्वक कई तक इन क्षेत्रों में प्रयत्न और प्रयोग किये हैं और तब जाकर उन्हें सफलता मिली है ، पर जो सफलता मिली है ، वह अपने आप में अद्वितीय है ، जिसको वे 'प्रयोग' नाम से सम्बोधित करते हैं ، भारत वर्ष में उसे 'साधना' कहा जाता है और साधना के द्वारा यदि साधक निरन्तर इस प्रकार की शक्तियों को प्राप्त करने की ओर प्रयत्नशील हो तो निश्चय ही उन्हें सफलता मिल सकती है।
- . . ، वे बच जायेंगे और उनका उपयोग मानव जाति को ज्यादा सुखी ، सफल और सम्पन्न करने के लिये होगा।
भारत वर्ष को भी चाहिये कि वह अभी से विश्व में होने वाले परिवर्तन को अनुभव करें ، साधकों को चाहिये कि उनकी पृष्ठभूमि साधनात्मक है ، वे पिछले कुछ वर्षों से प्रयत्न कर रहे हैं ، उनको साधना या मन्त्र अथवा सिद्धि के बारे में ज्ञान है ، आवश्यकता .
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