मैं आप सब का पिता हूँ ، आपकी माँ हूँ ، आपका भाई हूँ बहन हूँ ، आपका रखवाला हूँ और रहूंगा ، कहीं भी मन में हिचकिचाहट लाने की जरूरत नहीं ، कोई भी चिंता करने की जरूरत नहीं है।
आप साधना करें، नहीं करें، आप सिद्धियाँ प्राप्त करें अथवा नहीं करें। इस बात की कोई मुझे इच्छा है ही नहीं। मुझमें ज्ञान ، तेजस्विता का अंश होगा ، तो आप जैसे भी हो ، जिस स्थिति में भी हों आपको ले करके कंधे पर बिठाकर भी लेकर चला जाऊँगा ، इसकी बात गारण्टी है ، क्योंकि मेरे अन्दर ब्रह्मत्व है और जाग्रत अवस्था में है।
ये चेतना، ये ज्ञान पूरे आर्यवर्त में व्याप्त करना चाहिये، हमें एहसास करना चाहिये، शेर की तरह अगर एक पांव तो हाथी अपने आप हिल जायेगा से अपने आप हट और उफनती नदी भी रास्ता छोड़ देगी एक पैर आगे बढ़ाने की जरूरत है।
जो कायर और बुजदिल हैं उनके सफेद बाल भी आ जायेंगे، वे एक तरफ बैंठे भी रहेंगे और मृत्यु को प्राप्त भी हो जायेंगे। वह जीवन नहीं है ، वह चेतना नहीं है ، वह अबुद्धिवादिता है ، न्यूनता है ، अल्पज्ञता है ، अपौरूषता है।
विष्णु को सहस्त्रक्षि कहा गया है ، हजार हाथ हैं ، हजार आँखें हैं और आप भी कोई मेरे हाथ हैं ، कोई पाँव हैं ، कोई नेत्र हैं ، कोई नासिका है और आपके शरीर के प्रत्येक अंग ، आप से मिलकर के एक गुरू बनता है ، जिसका नाम निखिलेश्वरानन्द है।
، आपके हाथ रूक जाये، आपका शरीर रूक जाये तो आप शिष्य क्या हुये، तो आप में पात्रता क्या हुई देखूं और एक एक हुआ उनके चरणों से न तो मेरी शिष्यता क्या चीज है धिक्कार है، ऐसा शिष्य मैं तुम्हें नहीं बनाना चाहता।
नदी कभी नहीं रूकती، बहती रहती है، जब तक समुद्र में विलीन नहीं हो जाती चली जाती है और समुद्र में पूर्णता से विलीन होती है। उसको नदी कहते हैं ، उसको शिष्यता कहते हैं ، उसको पात्रता कहते हैं—।
तुम्हारी जिन्दगी में आनन्द तभी हो सकता है जब बुद्धि को एक तरफ करके श्रद्धा के द्वारा जुड़ोगे। देवताओं के प्रति، मंत्र के प्रति، तीर्थ के प्रति और गुरू के प्रति श्रद्धा से जुड़ोगे तभी फल मिलेगा।
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