वेद ، पुराणों के अनुसार मन्दराचल पर्वत को धुरी बनाकर वासुकी नागों से बांधकर समुद्र मंथन श्रावण मास में ही सम्पन्न किया गया। समुद्र मंथन से चौदह रत्न प्रकट हुये، तेरह रत्नों को तो सभी देवताओं इत्यादि में बांट दिया गया। अमृत भी निकला जिसे सारे देवताओं ने ग्रहण किया। श्री की उत्पत्ति भी हुई जिसे भगवान विष्णु ने वरण किया। लेकिन इसके साथ ही हलाहल विष भी निकला ، वह विष इतना अधिक तीव्र था कि उसे ग्रहण करने की क्षमता किसी भी देवता ، राक्षस में नहीं थी। तब सब ने मिल कर भगवान शिव से निवेदन किया कि आप ही आद्या शक्ति से युक्त महादेव है जो इस हलाहल को ग्रहण कर संसार को विष से बचा सकते हैं। तब भगवान शिव ने देवताओं के इस आग्रह को स्वीकार कर वह विष हलाहल ग्रहण किया। उस विष को अपने कंठ में रख लिया। इसी कारण भगवान शिव नीलकंठ कहलाये। लेकिन विष में अत्याधिक तीव्रता थी और उस तीव्रता के कारण भगवान शिव के शरीर से तीव्र अग्नि निकलने लगी। सारे ब्रह्माण्ड में उष्णता छा गई और देव-दानव मनुष्य हाहाकार करने लगे। . यह निर्णय लिया गया कि भगवान शिव पर जल धारा प्रवाहित की जाये तो उससे उनका मस्तक थोड़ा शांत होगा और संसार में शांति आ सकती है।
. पड़ा तो देवताओं इत्यादि ने मिल कर भगवान शिव पर दूध की धारा प्रवाहित की। शुद्ध दूध में वह शक्ति होती है कि वह विष के प्रभाव को शांत कर देती है ، इस प्रकार श्रावण मास में यह सारी क्रिया सम्पन्न हुई और श्रावण पूर्णिमा में पूर्णाभिषेक हुआ।
इसी परम्परा में युगों-युगों से श्रावण मास में शिव के प्रतीक शिवलिंग पर निरन्तर जलधारा और दुग्ध धारा का अभिषेक किया जाता है। इस प्रकार का अभिषेक करने से मनुष्य जीवन का विष समाप्त हो जाता है। इसके साथ ही श्रावण मास में सोमवार का विशेष महत्व है، जब पूर्णविधि विधान सहित भगवान शिव के सांसारिक प्रतीक रूप शिवलिंग का अभिषेक सम्पन्न किया जाता है।
जीवन में जल शांति का स्वरूप है، निरन्तर प्रवाह का प्रतीक है और दुग्ध जीवन शक्ति का प्रतीक है। यह शुद्धत्म प्रसाद भी है। इसका निरन्तर अभिषेक करना، विशेष आनन्द दायक होता है।
इसीलिये श्रावण मास में आर्य संस्कृति के उपासक अथवा द्रविड़ संस्कृति के उपासक सभी लोग श्रावण मास में भगवान रूद्र का गुणगान करते हुये अभिषेक सम्पन्न करते है। श्रावण मास विशेष क्यों؟
श्रावण मास में सामान्य तौर पर चार सप्ताह आते है और इस बार श्रावण 18 जुलाई 2022 से प्रारम्भ हो रहा है।
أول يوم اثنين 18 يوليو 2022
दूसरा 25 जुलाई 2022
ثالث يوم اثنين 01 أغسطس 2022
الرابع الاثنين 08 أغسطس 2022
जो साधक इन चारों सोमवार में विशेष अभिषेक पूजा इत्यादि सम्पन्न करता है वह अपने पूर्व जन्म के दोषों से मुक्त तो होता ही है ، इसके अतिरिक्त इस जीवन में भी नई जीवनी शक्ति प्राप्त करता है।
श्रावणमास में केवल सोमवार का ही महत्व नहीं है अपितु अन्य दिवसों का भी विशेष महत्व है। जीवन को चलाने के लिये पारिवारिक सुख-शांति ، गृहस्थ ، अनुकूलता आवश्यक है। वहीं जीवन को श्रेष्ठ रूप से चलाने के लिये कार्य में वृद्धि भी आवश्यक है। जिसके जीवन में ज्ञान रहता है، वह अपने जीवन में विशेष प्रगति करता है और जब ज्ञान और कर्म साथ होते हैं तो लक्ष्मी आती है। इसके अतिरिक्त सम्पत्ति का स्थायीत्व आवश्यक है साथ ही पूरे जीवन में तेजस्विता प्राप्त हो यह भी आवश्यक है। इस हेतु वेदों मे श्रावण मास के प्रत्येक दिवस के लिये विशेष पूजा विधान की रचना की गई है। रूद्र संहिता में श्रावण के सात दिनों का विवेचन इस प्रकार आया है।
Shravan الاثنين - श्रावण मास का प्रत्येक सोमवार शिव पूजन और अभिषेक का दिवस है।
شرفان الثلاثاء- इस दिन गृहस्थ सुख शांति के लिये ، स्त्रियों तथा पुरूषों द्वारा मंगला-गौरी की साधना और पूजा की जाती है। कुंवारी कन्याओं द्वारा इस दिन पूजन करने से उन्हें विवाह सम्बन्धी शीघ्र अनुकूलता प्राप्त होती है। मंगल गौरी साधना करने से भगवान शिव की आद्याशक्ति ने जिस प्रकार साधना द्वारा अपने प्रेम स्वरूप शिव को प्राप्त किया। उसी प्रकार इस दिन साधना करने से प्रेम-सम्बन्धों में इच्छित अनुकूलता प्राप्त होती है।
Shravan Wednesday- यह दिवस भगवान विट्ठल को समर्पित है। भगवान विट्ठल विष्णु और कृष्ण का स्वरूप माने जाते हैं। अतः इस दिन कृष्ण की साधना، विष्णु की साधना सम्पन्न करने से जीवन में श्रेष्ठता आती है।
شرفان الخميس- बुद्धि और ज्ञान के ग्रह नक्षत्र बुध और गुरू माने गये हैं और जिस साधक के जीवन में बुद्धि ज्ञान से है वह निरन्तर प्रगति करता है। इन दोनों ग्रहों की विशेष पूजा साधना श्रावण गुरूवार को सम्पन्न की जाती है। इसके अलावा श्रावण मास के गुरूवार के दिन अपने गुरू का पूजन भी विधि विधान सहित सम्पन्न करना चाहिये।
Shravan Friday- संसार में लक्ष्मी की आवश्यकता किसे नहीं पड़ती और लक्ष्मी आने पर भी वैराग्य भाव रहे। इस हेतु श्रावण शुक्रवार के दिन लक्ष्मी और तुलसी की पूरे विधि विधान सहित पूजा की जाती है। जिस घर में तुलसी को जल अर्पित किया जाता है और पूजा में तुलसी पत्र अर्पित किया जाता है ، उस घर में लक्ष्मी का वास रहता है।
Shravan Saturday- श्रावण मास के शनिवार को सम्पत शनिवार कहा जाता है। शनि की विशेष प्रतिष्ठा और स्थाई सम्पत्ति देने वाला है। शनि के साधक को जीवन में बाधाओं का सामना नहीं करना पड़ता है। शनि स्थाई सम्पत्ति का भी स्वरूप है। जब जीवन में शनि अनुकूल होता है तो स्थाई सम्पत्ति अर्थात् भवन، भूमि، वाहन इत्यादि प्राप्त होते है और शनि देव भगवान शिव के विशेष भक्त है। श्रावण मास में शनि साधना करने का तात्कालिक लाभ प्राप्त होता है।
Shravan Sunday-जीवन में सबसे अधिक शक्ति और तेजस्विता प्रदान करने वाले ग्रह सूर्य ही है और जो साधक नित्य सूर्य जल जल करते उन्हें जीवन में में विशेष शक्ति प्रदान होती है। वैज्ञानिक तौर पर भी यह सिद्ध हो चुका है कि उगते हुए सूर्य की किरणें स्वास्थ्य के लिये विशेष पुष्टीकारक है और इन्हें ग्रहण करने से आरोग्य प्राप्त होता है।
इस प्रकार श्रावण के सातों दिन का विशेष महत्व है। ऐसा कोई अभागा ही व्यक्ति होगा जो श्रावण मास में साधना नहीं करता है। श्रावण मास से सम्बन्धित विशेष साधनाये स्पष्ट की जा रही है। साधक इन साधनाओं को सम्पन्न करें ، स्त्रियां- गौरी साधना को सम्पन्न करें तथा अन्य दिवसों में अपनी-अपनी कामना के अनुसार साधना अवश्य सम्पन्न करें।
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