इस शरीर को भगवान का देवालय कहा है ، मंदिर कहा है। ये भगवान का मंदिर है। इसलिये 'शरीरं शुद्धं रक्षेत्' शरीर को शुद्ध और पवित्र बनायें रखना आवश्यक है ، इसलिये आवश्यक है ، कि हमें हर क्षण यह ध्यान रहे कि अन्दर मूल मंदिर में भगवान बैठे हुये है या जिनको हमने गुरू कहा है।
अपने तर्क، विचार छोड़कर गुरू के चरणों में झुक जाता है، वह साधनाओं में और जीवन में श्रेष्ठता प्राप्त कर सकता है। केवल चरण स्पर्श करने से श्रद्धा और विश्वास नहीं होता। वह तो होता है जब शिष्य अपने कर्म और अपने विचार को छोड़कर गुरू के प्रति नमन होता है।
प्रेम का तात्पर्य है ، ईश्वर और जब तक प्रेम के रस में भीगेगा नहीं ، ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती ، गुरूदेव से साक्षात्कार नहीं हो सकता और यह अन्दर उतर कर प्रभु से साक्षात् करने की क्रिया ही तो प्रेम है।
तुम्हारी नजर में यदि गुरू कोई शरीर है ، हाड़ मांस का पुतला है तो तुम्हारा चिंतन अधूरा है ، गुरू तो ज्ञान को कहते है ، उस ज्ञान का मांस ، त्वचा आदि का आवरण होकर वह मनुष्य रूप में दिखाई देता है।
शिष्य वही है जो भौतिकता को भोगे، परंतु अपने मूल उदेश्य से न डगमगाये। उसकी दृष्टि हमेशा अपने लक्ष्य पर टिकी रहे।
जिसका गौत्र ही गुरू बन जाता है ، जिसकी चेतना ही गुरू बन जाती है ، जिसका रक्त ही गुरूमय बन जाता है ، वही युग पुरूष बन पाता है ، वही तेजस्विता युक्त और चेतना युक्त बन पाता है ، यही सही अर्थों में शिष्य बन पाता है।
हमारे अन्दर एक तूफान हो، संकल्प शक्ति हो، दृढ़ शक्ति हो। यह निश्चय हो कि यह तो दैवी कृपा प्राप्त करके रहूंगा या शरीर को समाप्त हो जाने दूंगा जब ऐसा चैलेंज ، ऐसी संकल्प शक्ति उसके मन में ، उसके विचारों मे आती है ، तब उसे साधक कहा जाता है।
यह सच कहूं तो मेरी पूंजी ، मेरा धन ، मेरा ऐश्वर्य ، मेरी सम्पति तुम्ही शिष्य तो हो और यह पूंजी जीवन की श्रेष्ठतम पूंजी है ، जो अन्य वस्तुओं से बहुमूल्य है।
. था، प्रयास था।
إلزامي للحصول عليها جورو ديكشا من الموقر Gurudev قبل أداء أي Sadhana أو أخذ أي Diksha أخرى. الرجاء التواصل كايلاش سيدهاشرام ، جودبور من خلال البريد إلكتروني: , واتساب, الهاتف: or إرسال طلب سحب للحصول على مواد Sadhana المكرسة والمفعمة بالقداسة والمقدسة والمزيد من التوجيه ،
شارك عبر: