शिष्य को अपना नजरिया बदलना चाहिये ، लोग बोलते हैं कि कमल कीचड़ में ही खिलता है ، यह सही है ، पर शिष्य को यह सोचना होगा कि कमल कीचड़ के ऊपर होता है और कीचड़ में लिप्त नहीं होता ، वह कीचड़ में नहीं गिरना चाहता और वह बाहर आकर समर्पित होना चाहता।
यह आवश्यक नहीं कि कोई समस्या हो अथवा जीवन में कोई बाधा आई हो ، तभी गुरू चरणों में पहुँच कर साधना सम्पन्न किया जाये। गुरू के दर्शन मात्र से ही शिष्य का सौभाग्य एवं पुण्य कर्म जाग्रत होते हैं ، इसलिये शिष्य को निरन्तर गुरू से सम्पर्क बनाये रखना चाहिये।
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गुरू को कोई सिंहसान، फूलों से सजी गाडी नही चाहिये، गुरू को अपने साधको शिष्य के हृदय में जगह चाहिये।
हजारों लाखों व्यक्तियों में कोई विरला होता है जो सद्गुरू की उंगुली पकड़कर आगे बढ़ता है ، जो उनकी वाणी समझ सकता है ، वही शिष्यत्व के गुण प्राप्तकर सकता है।
لا يمكن التعبير عن الواقع إلا من خلال الكلمات. لا يمكن معرفة طعم أي فاكهة إلا من خلال تذوقها. مقابلة الحقيقة المطلقة ممكنة فقط من خلال المعرفة التي طورتها الممارسة الروحية.
गुरू जानता है ، शिष्य को जीवन की पगडंडी पर कहाँ और कब खड़ा करना है और जहाँ खड़ा करना है उसके लिये क्या आज्ञा देनी है। इसलिये शिष्य को आज्ञापालन में विलम्ब नहीं करना चाहिये।
गुरू चाहे कहीं भी हो शिष्य सदा उनका चिंतन करता ही रहता है और जब वह ऐसा करता है तो एक आत्मीय संबंध है और उस के जुड़ने से वह सद्गुरूदेव के सूक्ष्म निर्देशों को पकड़ पाता है।
शिष्य को गुरू मूर्ति का अपने हृदय में ध्यान करना चाहिये इस प्रक्रियानुसार शिष्य द्वारा हृदय कमल के गुरू गुरू को स्थापित ध्यानावस्था में उनका से विशेषकर उनके चरणों का ध्यान करने से चित की एकाग्रता बढ़ती है।
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