सवाल यह उठता है कि महानता की परिभाषा क्या है। अकबर हजारों लोगों ही हत्या करके महान कहलाता है और महाराणा प्रताप हजारो लोगों की जान बचाकर भी महान नही कहलाते है। दरअसल، हमारे देश का इतिहास अंग्रेजों और कम्युनिस्टों ने लिखा है। उन्होंने उन-उन लोगो को महान बनाया जिन्होंने भारत पर अत्याचार किया या जिन्होंने भारत पर आक्रमण करके उसे लूटा ، भारत का धर्मांतरण किया और उसका मन-मर्दन कर भारतीय गौरव को नष्ट किया। अकबर ने रूपमती के लिये मालवा-निमाड़ को खून में डुबो दिया था मेवाड़ के महान राजपूत नरेश महाराणा प्रताप अपने और शौर्य के लिये पूरी दुनिया में मिसाल के तौर पर जाने जाते है। एक ऐसा राजपूत सम्राट जिसने जंगलों में रहना पसन्द किया लेकिन कभी विदेशी मुगलों की दासता स्वीकार नहीं की। उन्होंने देश، धर्म और स्वाधीनता के लिये सब कुछ न्यौछावर कर दिया।
कितने लोग हैं जिन्हें अकबर की सच्चाई है और कितने लोग है जिन्होंने प्रताप के त्याग और संघर्ष को जाना؟ प्रताप के काल में दिल्ली में तुर्क सम्राट अकबर का शासन था، जो भारत के सभी राजा-महाराजाओं को अपने अधीन कर मुगल सम्राज्य की स्थापना कर इस्लामिक परचम को पूरे हिन्दुस्तान में फहराना चाहता था। इसके लिये उसने नीति और अनीति दोनों का ही सहारा लिया। 30 के लगातार प्रयास के बावजूद अकबर महाराणा प्रताप को बंदी न बना सका।
महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई ، 1540 को राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ था। लेकिन उनकी जयन्ती हिन्दी तिथि के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया को मनाई जाती है। उनके पिता महाराजा उदयसिंह और माता राणी जीवत कंवर थीं। वे राणा सांगा के पौत्र थे। महाराणा प्रताप को बचपन में सभी 'कीका' नाम लेकर पुकारा करते थे। महाराणा प्रताप की जयंती विक्रमी संवत् कैलेंडर के अनुसार प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है।
महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक गोगुंदा में हुआ था। राणा प्रताप के पिता उदयसिंह ने अकबर से भयभीत होकर मेवाड़ त्याग कर अरावली पर्वत पर डेरा डाला और उदयपुर को अपनी नई राजधानी बनाया था। हालांकि तब मेवाड़ भी उनके अधीन ही था। महाराणा उदयसिंह ने अपनी मृत्यु के समय अपने छोटे पुत्र को गद्दी सौंप दी थी जोकि नियमों के विरूद्ध था। उदयसिंह की मृत्यु के बाद राजपुत सरदारों ने मिलकर महाराणा प्रताप को मेवाड़ की गद्दी पर बैठाया। उनके राज्य की राजधानी उदयपुर थी। राज्य सीमा मेवाड़ थी उन्होने 1568 से 1597 तक शासन किया। उदयपुर पर यवन، तुर्क आसानी से आक्रमण कर सकते है، ऐसा विचार कर तथा सामन्तों की सलाह से प्रताप ने उदयपुर छोड़कर कुम्भलगढ़ और गोगुंदा के पहाड़ी इलाके को अपना केन्द्र बनया।
महाराणा प्रताप की वीरता के साथ-साथ उनके घोड़े चेतक की वीरता भी विश्व विख्यात है। चेतक बहुत ही समझदार और वीर घोड़ा था जिसने अपनी जान दांव पर लगाकर 26 फुट गहरे दरिया से कूदकर महाराणा प्रताप रक्षा की थी ، हल्दीघाटी में आज भी चेतक का मंदिर बना हुआ है। राजस्थान के कई परिवार अकबर की शक्ति के आगे घुटने टेक चुके थे किन्तु महाराणा प्रताप अपने वंश कायम रखने लिये संघर्ष करते रहे और अकबर के सामने आत्मसर्मपण नही किये। जंगल-जंगल भटकते हुये तृण ، मूल व घास ، पात की रोटियों में गुजर ، बसर कर पत्नी व बच्चे को विकराल परिस्थितियों में अपने साथ रखते हुये भी उन्होंने कभी धैर्य नहीं खोया।
महाराणा प्रताप का हल्दीघाटी के युद्ध के बाद का समय पहाड़ो और जंगलों में व्यतीत हुआ। . सभी प्रयासो को नाकाम बना दिया। उनके धैर्य और साहस का ही असर था कि 30 वर्ष के लगातार प्रयास के बावजूद अकबर महाराणा प्रताप को बन्दी न बना सका। महाराणा प्रताप का सबसे प्रिय चेतक था जिसने अंतिम सांस तक अपने स्वामी का साथ दिया था। महाराणा प्रताप उदयपुर، मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश के राजा थे। उनके कुल देवता एकलिंग महादेव है। मेवाड़ के राणाओं के आराध्यदेव एकलिंग महादेव का मेवाड़ के इतिहास में बहुत महत्त्व है। एकलिंग महादेव का मंदिर उदयपुर में स्थित है। मेवाड़ के संस्थापक बप्पा रावल ने 8 वीं शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण करवाया और एकलिंग की मूर्ति प्रतिस्थापन की थी।
महाराणा प्रताप ने जिस समय सिंहासन ग्रहण किया ، उस समय जितने मेवाड़ की भूमि पर उनका अधिकार था ، पूर्ण रूप से उतने ही भूमि भाग पर अब उनकी सत्ता फिर से स्थापित हो गई थी। बारह वर्ष के संघर्ष के बाद भी अकबर उसमें कोई परिवर्तन न कर सका इस तरह महाराणा की की संघर्ष के बाद मेवाड़ को करने में सफल रहे और ये मेवाड़ के लिये एक स्वर्ण युग साबित हुआ। मेवाड़ पर लगा हुआ अकबर ग्रहण का अंत 1585 ई- में हुआ। उसके बाद महाराणा प्रताप उनके राज्य की सुख-सुविधा में जुट गये، परन्तु दुर्भाग्य से उसके ग्यारह वर्ष के बाद ही 19 जनवरी 1597 में अपनी नई राजधानी चावंड में उनकी मृत्यु हो गई।
अकबर महाराणा प्रताप का सबसे बड़ा शत्रु था पर उनकी यह लड़ाई कोई व्यक्तिगत द्वेष का परिणाम नही थी बल्कि अपने सिद्धांतों और मूल्यों की लड़ाई थी। एक वह था जो अपने क्रूर सम्राज्य का विस्तार करना चाहता था जब की एक तरफ महाराणा प्रताप जी थे जो अपनी मातृभूमि की स्वाधीनता के लिये संघर्ष कर रहे थे। महाराणा प्रताप की मृत्यु पर अकबर को बहुत ही दुःख हुआ क्योंकि हृदय से वो महाराणा प्रताप के का प्रशंसक प्रशंसक और जानता था की महाराणा प्रताप जैसा वीर कोई नहीं है इस धरती पर। यह समाचार सुन अकबर रहस्यमय तरीक से मौन हो गया और उसकी आंख में आंसू आ गये। अपनी मातृभूमि की स्वाधीनता के लिये अपना जीवन बलिदान कर देने वाले ऐसे शिरोमणि महाराणा प्रताप और उनके स्वामीभक्त कोटि-कोटी नमन!
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