गुरू तो शिष्य को माया में इसलिए ग्रस्त करता है कि वह सोचता है इसको धक्के देकर देख लूं एक बार चार बार ، क्या यह जीवन भर शिष्य बन सकता है या केवल श्रोता ही रहेगा श्रोता शिष्य नहीं बन सकता।
. बता सके कि बिना भौतिकता को छोड़े हुए भी कैसे जीवन के उस तरोज लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।
गुरू तो बहुत दूर की देखता है ، वह देखता है कि शिष्य को जीवन की पगडण्डी पर कहां खड़ा करना है जहां खड़ा करना है उसके लिए आज इसको कौन सी आज्ञा देनी है।
सब न्यौछावर करने का अर्थ कोई गुरू को धन ، मकान ، संपति प्रदान करना नहीं हैं। न्यौछावर का अर्थ हैं अपने विचार، अपनी बुद्धि، अपने तर्क को हटाकर के गुरू के प्रति श्रद्धावान हो जाना।
जब शिष्य अपने आप को हटाकर पूर्ण रूप से सद्गुरू के प्राण में लीन करने की क्रिया प्रारम्भ कर लेता है ، तो सद्गुरू एक ही छलांग में उसको उस अवस्था तक पहुंचा देते है ، जो ध्यान की अवस्था है।
गुरू सभी साधानाओं का मूल तत्व है जिसको स्पर्श कर ، जिसको आत्मसात् कर शिष्य अपने जीवन को सिद्धि युक्त एवं श्रेष्ठ बना पाता हैं।
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