पौराणिक कथाओं में दर्शाया गया है। नागों ने देवताओं की भी सहायता की है। अमृत पाने के लिये जब देव-दानवों ने समुद्र मंथन किया ، तो वासुकी नाग ही मथनी की रस्सी बने। शेष नाग के सहस्त्र फनों पर पृथ्वी टिकी है ، भगवान विष्णु क्षीर सागर में शेष शय्या पर विराजमान हैं ، शिव के गले में सर्पं के हार हैं ، कृष्ण जन्म के समय नाग की सहायता से ही वासुदेव ने यमुना पार की।
श्रावण शुक्ल पंचमी को नाग पंचमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन डर، भय एवं विषता से मुक्ति के लिए उपवास، नाग पूजन आदि की परम्परा रही है। सर्प को रेंगने वाला जीव मानकर भी यह त्यौहार मनुष्यों के प्रकृति के प्रति प्रेम को उजागर करता है ، जिसमें पेड़-पौधों तथा पशु-पक्षी सभी रक्षा योग्य और पूजने योग्य माने जाते हैं।
प्राचीन मान्यता है कि वर्षा ऋतु में वर्षा का जल धीरे-धीरे धरती में समाकर सांपों के निवास स्थल (बिलों) में भर जाता है। उस समय सुरक्षित स्थान की खोज में सांप बाहर आ जाते हैं और खेतों में चूहों को खाकर अन्न की रक्षा करते हैं। सम्भवतः इनके प्रति कृतज्ञता की भावना से यह त्यौहार प्रारम्भ हुआ।
नाग पंचमी नागों की पूजा का पर्व है ، इस दिन उपवास करने का विधान है। नाग पूजन के लिए गोबर، गेरु व चावल से नाग की आकृति बनायी जाती है। गन्ध ، पुष्प ، कच्चा दूध ، खीर ، भीगे चने आदि पूजन में अर्पित किये जाते हैं। तालाब، बाग-बगीचे में जहां सांप की बाँबी दिखाई दे، वहां कच्चा दूध चढ़ाया जाता है। इस दिन सर्प दर्शन बहुत शुभ माना जाता है। इसीलिये सपेरे भी पिटारी में सांप लेकर घर-घर घूमते हैं और दान-दक्षिणा पाते हैं।
नाग पूजन करते हुये बारह प्रसिद्ध नागों के नाम लिये जाते हैं- धृतराष्ट्र ، कर्कोटक ، अश्वतर ، शवपाल ، पदम ، कवल ، अनन्त ، शेष ، वासुकि ، पिंगल ، तक्षक ، कालिक। इस दिवस पर अपने परिवार की रक्षा की प्रार्थना की जाती है। नागपंचमी के दिन सूर्यास्त के बाद जमीन खोदना मना किया गया है।
الروايات القديمة
महाभारत में वर्णन है कि एक बार अभिमन्यु के पुत्र राजा परीक्षित शिकार खेलने जंगल गये ، वहां भटकते-भटकते उन्हें बहुत प्यास लगी। आगे चलकर एक ऋषि का आश्रम आया، जहां ऋषि समाधि में बैठे थे। परीक्षित ने बार-बार उनसे पीने को जल मांगा किन्तु ऋषि के समाधि में होने के कारण उन्होंने कुछ न सुना। भूख और प्यास से व्याकुल राजा ने नाराज होकर वहां पड़े एक मृत सर्प को उठाकर ऋषि के गले में डाल दिया और वहां से चले गये। थोड़ी देर पश्चात् ऋषि का पुत्र वहां पहुँचा ، पिता के गले में मृत सर्प देखकर उसने ध्यान लगा कर सारी घटना का संज्ञान लिया। क्रोधित होकर उसने राजा परीक्षित को शाप दिया कि राजा होकर भी तुमने एक ऋषि का अकारण अपमान किया ، इसलिये आज से सातवें दिन सापं के काटने से ही तुम्हारी मृत्यु हो जायेगी। श्राप अनुसार सातवें ही दिन राजा परीक्षित को सांप ने काटा और उनकी मृत्यु हो गयी।
उनके बाद उनके पुत्र जनमजेय राजा बनें। वर्षों बीत जाने पर एक बार उन्हें पिता की मृत्यु का कारण पता चला ، तो उन्हें बहुत क्रोध आया ، इस बात का बदला लेने के लिए राजा जनमेजय ने एक बहुत बड़ा सर्पयज्ञ शुरु किया। वह यज्ञ इतना प्रचण्ड था कि जब-जब ऋषि जन मन्त्र पढ़ कर स्वाहा बोलते ، तभी सारी दिशाओं से सर्प आकर यज्ञ कुण्ड में भस्म होने लगते।
यज्ञ का मुख्य प्रयोजन समस्त सर्पो के साथ उनके प्रमुख सर्प तक्षक को भस्म करने का था क्योंकि के दंश दंश राजा परीक्षित की मृत्यु हुई थी। अपने प्राणों की रक्षा हेतु तक्षक ने पाताल लोक में स्वयं को छिपा लिया व इन्द्रदेव से सहायता मांगी। इन्द्र आदि सभी देवताओं ने तक्षक के प्राणों की रक्षा के लिए मां मनसा देवी से प्रार्थना की। नागों की देवी मनसा देवी ने अपने पुत्र ऋषि आस्तीक को राजा जनमेजय के समक्ष भेजा।
दूसरी ओर सर्पयज्ञ में प्रयुक्त मंत्रोच्चारण से तक्षक वहां खींचते चला आया। ऋषि आस्तीक ने सर्पों के संहार को देख जनमेजय को हिंसा न करने، बदले की भावना त्यागने، जीवों के प्रति प्रेम व सहिष्णुता रखने का उपदेश दिया। जनमेजय ने सर्पयज्ञ बन्द किया और भविष्य में नागों की सुरक्षा का वचन दिया। वह दिवस श्रावण शुक्ल पंचमी था، तब से इस दिवस का नाम नाग पंचमी पड़ा और उस दिन से नाग पूजा प्रारम्भ हुई। काल-सर्प दोष यदि कुण्डली में होता है तो जातक को जीवन के हर कार्य में अनेक बाधायें व व्यवधान प्राप्त होते हैं।
गृहस्थ सुख में न्यूनता ، विवाह ना होना ، संतान बाधा ، व्यापार में हानि होना ، धन का अकारण व्यय होना ، शत्रु बाधा जैसे अनेक विष पूर्ण क्रियायें निरन्तर बनती रहती है। इन दोषों के निवारण हेतु श्रावण मास में नाग पंचमी दिवस पर काल सर्प दोष पूजा साधना ، दीक्षा सम्पन्न करने से निश्चिन्त रूप से सुस्थितियां आती हैं।
ज्योतिष् विज्ञान में मंगली दोष ، शनि साढ़े साती ، अर्धाष्टम ، अष्टम शनि ، विष कन्या ، गंड मूल तथा कालसर्प योग की दशा का विस्तृत विवेचन है। इन सभी योगों में कालसर्प योग सर्वाधिक कष्टकारी है। राहु-केतु की धुरी के मध्य अन्य सभी ग्रह आते हों तो कालसर्प योग बनता है।
कालसर्प योग पूर्व जन्म के किसी अक्षम्य अपराध का सूचक है। जिसके कारण मन में चंचलता ، मृत्यु भय व नकारात्मक विचारों से घिरा होना ، संतान से कष्ट ، संतान का न होना ، व्यवसाय सांप व सीढ़ी के खेल की भांति कभी उत्तम तो कभी नष्ट होने के कगार पर ، धन अभाव ، रोग व अल्पायु आदि स्थितियां कालसर्प योग के कारण निर्मित होती हैं और जातक को अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इसके साथ कालसर्प योग की दशा में जन्म कुण्डली में स्थित शुभ योगों का फल भी प्राप्त नहीं होता है। इसकी दशा में राजयोग का फल भी नष्ट हो जाता है।
राहु का जन्म भरणी नक्षत्र में हुआ है، जिसके अधिदेव काल है। शिरोच्छेदन से केतु की आश्लेषा नक्षत्र में उत्पत्ति हुई، जिसके अधिदेव सर्प है، अतः राहु-केतु जनित दोष को कालसर्प दोष की संज्ञा दी गई।
آثار كالسارب دوش
عدم إنجاب الأطفال في الوقت المناسب.
الإجهاض المتكرر.
बालक डर، भय से अथवा अति क्रोधित हो।
عقبة في الدراسات أو عدم الانتشاء.
प्रेम में असफलता ، विवाह में बाधा ، योग्य वर-वधू का ना मिलना ، वैवाहिक जीवन तनावपूर्ण होना आदि।
الخسارة المستمرة في العمل.
व्यापार कार्य में सहयोगी से धोखा، निकट सम्बन्धियों द्वारा विश्वासघात होना، शत्रुओं की वृद्धि।
الزيادة المستمرة في الأمراض الجسدية والنفسية في الأسرة.
उक्त सभी कुस्थितियों के निवारण हेतु नाग पंचमी दिवस पर कालसर्प दोष निवारण साधना-दीक्षा आत्मसात कर साधक दोषों दोषों के से हो जाता है ، साथ ही इनके द्वारा हानि की संभावना न्यूनतम स्थिति में आ जाती है। जिसके फलस्वरूप साधक जीवन में निरन्तर उन्नति पथ पर अग्रसर बना रहता है और उसे किसी भी तरह की शारीरिक-मानसिक ، पारिवारिक पीड़ा का सामना नहीं करना पड़ता। साथ ही सुख-समृद्धि ، ऐश्वर्य ، आरोग्यता ، दीर्घायु जीवन ، संतान सुख की कामना पूर्ण होती है।
طريقة Sadhana: -
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أكمل 9 جولات من الترانيم مع شيف شاكتي مالا-
بعد ترديد المانترا ، قم بتلاوة Om Namo Bhagwate Vasudevaya mantra 108 مرة وقدم الحليب الخام على yantra ثم قم بأداء Shiv Aarti.
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