यद्यपि लोक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री गणपति की उद्भव की विख्यात कथा तो है जिसके अनुसार माँ भगवती शरीर के उबटन निर्मित हुये पालन करते हुये सिर कट जाने पर गज का मुख लगने के कारण गजानन एवं . वस्तुतः भगवान श्री गणपति का यही वास्तविक एवं विराट स्वरूप हैं।
पुराणों के अनुसार त्रेतायुग में भगवान श्री गणपति ने देवताओं ، ऋषियों ، मनुष्यों एवं पाताल लोक के निवासियों की प्रार्थना पर सिन्धु नामक असुर से उनकी रक्षा करने के लिये माँ भगवती पार्वती के माध्यम से अवतरित होना स्वीकार किया।
. निश्चित है। सिन्धु ने भी उन्हें बालावस्था में ही समाप्त करने का प्रयत्न किया किन्तु यह तो असम्भव था। कालान्तर में भगवान श्री गणपति ने युद्ध में दैत्यराज सिन्धु एवं उसके पुत्र धर्म व अधर्म को मारकर उसके कारागार से सभी ، मुनियों ، देवताओं आदि को मुक्त कराया।
. है। महाराष्ट्र प्रान्त मे तो इस दिवस को वही मान्यता प्राप्त है जो सम्पूर्ण प्रदेश में नवरात्रि पर्व को ، जब घर-घर में माँ काली की स्थपान करना जीवन का पुण्य माना जाता है। लोकमान्य तिलक ने इस दिवस को जिस प्रकार राष्ट्रीय चेतना से जोड़ा वही भगवान श्री गणपति की मूल है और और इसी विघ्न विनाशक होते हुये प्रत्येक गृह में स्थापित होने को तत्पर देव हैं।
. उनकी विघ्न-विनाशक शक्ति के कारण उन्हें अपने घर और पूजन में सर्वोच्च स्थान दिया है। यही नहीं वरन घर के मुख्य द्वार पर भगवान श्री गणपति की स्थापना करना भी इस बात की ओर संकेत करता है जहां उनकी स्थापना है ، उनका चिन्तन और उनके प्रति श्रद्धा है ، वहां किसी आपदा का प्रवेश ही नहीं हो सकता।
साधक इसी कार्य को और अधिक व्यवस्थित व सुचारू रूप से करते हैं। श्रद्धा और भक्ति तो उसके जीवन का अंग होती है साथ ही वह देवता विशेष की शक्तियों की भी उनके उनके के रूप में करते ही हैं। . सम्पन्न करें तब चैतन्य व प्राण-प्रतिष्ठित विग्रह स्थापित करना आवश्यक होता है। किसी भी मंदिर में मूर्ति-स्थापना के पश्चात् इसी कारणवश प्राण-प्रतिष्ठा एक आवश्यक क्रिया होती है।
भगवान गणपति अपने सहस्त्र स्वरूपों के साथ ، अनन्त शक्तियों के साथ इस जग में उपस्थित हैं ही किन्तु जब एक स्वरूप ही स्थापना की आये आये तब बिना संदेह उनके विजय गणपति स्वरूप का स्मरण हो ही जाता है। विजय गणपति का अर्थ है जो जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विजय प्रदाता हों। आज जीवन के किस क्षेत्र में नहीं रह गया है؟ जीवन का कौन-सा क्षेत्र ऐसा है जो निरापद हो जहां बिना प्राप्त किया साधक सुगमता से जीवन जी सके؟ फिर ऐसे ही वातावरण में आवश्यक हो जाता है कि साधक अपने घर में भगवान गणपति की स्थापना करे ، जिसके प्रभाव से प्रत्येक कार्य में सफलता की प्राप्ति हो सके।
इसके लिये शास्त्रों में एक श्रेष्ठ सरल विधान स्पष्ट किया गया है कि، धातु से निर्मित भगवान गणपति के स्वरूप को केवल विजय काल में ही प्राण-प्रतिष्ठा प्रदान की जाये तो वह विजय श्री स्वरूप होता है। ऐसे गणपति विग्रह की घर में स्थापना साधक को सम्पूर्ण गणपति की शक्तियों से फल प्रदान करने में सहायक होता है। .
गृह स्थान से बाहर अपने व्यवसाय-स्थल ، दुकान या फैक्ट्री में इस अति दुर्लभ पारद गणपति विग्रह का स्थापना करना शास्त्र सर्व श्रेष्ठ माना गया है। भगवान श्री गणपति के अनेक स्वरूपों में धातु व पारद निर्मित होने के कारण सभी श्रेष्ठमय है जिसको साधक प्रत्येक पवित्र स्थान स्थापित कर कई पीढि़यों लिये ऋद्धि-सिद्धि ، शुभ-लाभ स्वरूप स्थितियों की वृद्धि होगी। . प्रकार जहां गणपति की स्थापना व पूजन होता है वहां उनकी दोनों पत्नियों ऋद्धि एवं सिद्धि तथा पुत्रद्वय शुभ एवं लाभ की स्थापना हो हो जाती है
वाद विवाद ، मुकदमा ، राजकीय बाधा ، लड़ाई ، शत्रु-बाधा ، भय-नाश इत्यादि कार्यों के लिये उच्छिष्ट गणपति साधना सम्पन्न करनी चाहिये। इस साधना को गणेश जन्मोत्सव व किसी बुधावार से ब्रह्म महुर्त में या रात्रि काल में सम्पन्न कर सकते है।
सर्वप्रथम स्वच्छ वस्त्र धारण करें ، अपने सामने एक चौकी पर सफेद या पीला कपड़ा बिछा कर उस पर भगवान गणपति का विग्रह व चित्र स्थापित करें ، उसके सामने एक थाली में सिंदूर से रंगे हुये चावलों की एक ढ़ेरी बनाकर उस पर गणपति को स्थापित करे ، विधिवत् पूजन सम्पन्न कर साथ ही गुरू पूजन भी सम्पन्न करें उसके बाद विनियोग करें-
इस प्रकार संकल्प लेकर चार भुजा वाले ، रक्त वर्ण ، तीन नेत्र ، कमल दल पर विराजमान ، दाहिने हाथ में पाश एवं दन्त धारण किये हुये ، उन्मत्त मुद्रा स्थिर उच्छिष्ट गणपति का ध्यान करना चाहिये। इसके पश्चात् अष्ट मातृकाये के प्रतीक स्वरूप में यंत्र के चारों और कुंकुंम से बिंदिया लगाकर प्रसाद स्वरूप में लड्डू अर्पण के नाम का उचारण करें-
ब्राह्मी नमः ، माहेश्वरी नमः ، कौमारी नमः ، वैष्णवी नमः ، वाराही नमः ، इन्द्राणी नमः ، चामुण्डा लक्ष्मी नमः भगवान गणपति का ध्यान करें-
ॐ विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय، लम्बोदराय सकलाय जगत् हिताय।
नागाननाय श्रुतियज्ञभूषिताय، गौरीसुताय गणनाथ नमों नमस्ते ।।
بعد ذلك ، أكمل 5 جولات من المانترا التالية مع Uchchishta Ganapati Mala لمدة 3 أيام-
في اليوم الثالث بعد ترديد المانترا ، احتفظ بجميع المكونات مربوطة بقطعة قماش حمراء في أحد المعبد.
मनुष्य अपने जीवन में विभिन्न मनोकामनाओं को पूर्ण करना चाहता है। अपने घर में धन-धान्य तथा शक्ति प्राप्त कर दूसरों को आकर्षित एंव वशीभूत करने हेतु व साथ ही लक्ष्मी ، धन ، सुन्दर पत्नी प्राप्ति ، शक्ति एवं कार्य सिद्धि हेतु ، यह साधना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
. सुपारी को चावल की ढे़री पर स्थापित करें। यंत्र व सुपारी का पूजन सम्पन्न करें، हाथ में जल लेकर विनियोग करें-
حكيم هذا المانترا هو Bhargava والهتاف هو Virat
أكل إله شاكتي جنادي ، هريم ، شاكتي ، جريم ، بذري
تطبيق على الكمال.
أنجانيا
ॐ ग्रां हृदयाय नमः، ॐ ग्रीं शिरसे स्वाहा،
ॐ गूं शिखायै वषट्، ॐ ग्रैं कवचाय हूं،
ॐ ग्रौं नेत्र त्रयाय वौषट्، ॐ ग्रः अस्त्रय फट्।
كوشا بالسموم وحبل حول صدره مع زهرة اللوتس في يديه
स्वपत्न्यायुतं हेमभूषाभराढ़यं गणेश समुद्यद्दिनेशाभमीडे ।।
बाद शक्ति विनायक माला से निम्न मंत्र की
3 माला 5 तक सम्पन्न करें-
في اليوم الخامس بعد ترديد المانترا ، اربط جميع المكونات بقطعة قماش حمراء في أحد المعبد.
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