अंगूर से अनेक आयुर्वेदिक योगों का निर्माण किया जाता है ، जिनमें प्रमुख योग हैं- द्राक्षारिष्ट ، द्राक्षादि काथ ، द्राक्षादिलेह ، द्राक्षादि घृत आदि।
अंगूर को संस्कृत में द्राक्ष (जो मन को प्रिय हो) मृद्वीका (जो शरीर को मृदु-स्निग्ध करे) तथा मधुरसा कहते हैं। हिन्दी में दाख ، मुनक्का ، अंगूर ، बंगाली में- द्राक्षा ، आंगूर ، मुनेका ، पंजाबी में- दाख ، मराठी में- द्राक्ष ، बेदाना ، गुजराती में- द्राक्ष ، धराखा ، तेलगु में- द्राक्षापाण्डु ، तमिल में- कडि़मण्डि ، कन्नड में- वेडगण द्राक्षे ، फारसी में- अंगूर ، रजबाग ، अरबी में- एनव जबीब ، हवुस जबीब और अंग्रेजी में- ग्रेप (عنب)। अंगूर रेचक ، शीतल ، नेत्रें के लिए हितकारी तथा शरीर के लिए पौष्टिक है ، इसके सेवन से सदा यौवन बना रहता है और बुढ़ापा दूर भागता है। यह अनेक रोगों में पथ्य तथा अचूक औषधि है। अंगूर के औषधीय गुणों के बारे में कहा गया है-
अंगूर गुण मे स्निग्ध व मृदु है، यह रस में मधुर، विपाक में मधुर और वीर्य में शीत है। इसको खाने से गला साफ होता है तथा आवाज सुरीली बनती है। मूत्रल، कब्जनाशक तथा पेट की गैस को दूर करता है। यह खाने में स्वादिष्ट، रतिशक्ति को बढ़ाने वाला और प्यास बुझाता है।
यह स्निग्ध व मुधर होने से वात का तथा मधुर और शीत होने से पित्त का शमन करता है। किन्तु कफ कारक है। ज्वर ، श्वास ، उल्टी ، वातरक्त ، पीलिया ، मूत्र विकार ، रक्त पित्त ، मूर्च्छा ، जलन तथा मदात्य रोगों का नाशक है। अंगूर ، शुक्र-दौर्बल्य एवं गर्भाशय की कमजोरी में अंगूर का सेवन करने से लाभ होता है।
कच्चे अंगूर पके की अपेक्षा कम गुण वाले और पचने में गरिष्ठ होते हैं। खट्टे अंगूर रक्त पित्तवद्धर्क होते हैं، अतः इनका सेवन नहीं करना चाहिये। मुनक्का विशेष रूप से संभोग शक्ति को बढ़ाने वाला और कफ-पित्त नाशक है। जिनकी संभोग शक्ति क्षीण हो गई हो، जो पुरुषत्वहीन हों उन्हें नियमित रूप से मुनक्के का सेवन करना चाहिए।
शरीर के भीतरी कोष-संघटन मांसपेशियां तथा तंतुओ को चुस्त ، क्रियाशील तथा विकासमान रखने के लिए जिन रासायनिक तत्वों की आवश्यकता होती है वे प्रायः सभी तत्व अंगूर में पाये जाते हैं। नाड़ी मंडल को पुष्ट रखने के लिए ऑक्सीजन ، ग्लूकोज ، पोटैशियम और शर्करायुक्त आहार की जरूरत होती है। इन सभी की पूर्ति अंगूर से हो जाती है ، मधुर फलों में सर्वाधिक ग्लूकोज अंगूर में होता है।
यद्यपि अंगूर में लौह तत्त्व की मात्र कम होती है ، फिर भी रक्त की कमी के कारण उत्पन्न पांडूरोग में यह उपयोगी है। अंगूर का रस खून की कमी को रोकता है। इसके सेवन से लौह तत्व की कमी तथा विटामिन और क्षारों की कमी के कारण उत्पन्न विकार दूर हो जाते हैं। अधिकांश बीमारियां पोषण की कमी، विटामिनों व क्षारों की कमी से उत्पन्न होती हैं। अंगूर इन कमियों को दूर करने में काफी कारगर होता है।
अंगूर में रक्त एवं त्वचा सम्बन्धी सभी रोगों को दूर करने का अद्भुत गुण है ، रक्त की खराबी ، गर्मी तथा विकृत को दूर कर यह रक्त को शुद्ध करता है। अंगूर फल को उसके मूल रूप में खाया जा सकता है، परंतु रोग मुक्ति के लिए उसका रस निकालकर पीना विशेष लाभकारी होता है। अतः किसी रोग से छुटकारा पाने के लिए रस रूप में ही इसका पर्याप्त मात्र में सेवन करना चाहिए।
अंगूर का प्रतिदिन सेवन करने से कब्ज दूर होती है ، अर्शरोग (बवासीर) में इसका सेवन लाभप्रद होता है। इसको खाने से पेट की जलन व पित्त प्रकोप का शमन होता है। शरीर दुर्बल हो ، कमजोरी महसूस होती हो ، आँखों में धुंधलापन लगता हो और जलन होती हो तो अंगूर खाइये ، निश्चित ही लाभ होगा।
अंगूर मानसिक विकार ، श्वास आदि रोगों से रक्षा करता है ، अंगूर में उत्तेजना और ताजगी देने का गुण है ، अंगूर से आयुर्वेदिक आसव ، अरिष्ट और अवलेह बनाया जाता है ، जो अनेक रोगों में सर्वोत्तम औषधि में उपयोग होता है।
. यह अंगूर शर्बत है، इसमें से 20-25 ग्राम लेकर शर्बत बनाकर नियमित सेवन करें، यह मंदाग्नि की उत्तम दवा है، इससे प्रकुपित पित्त का शमन होता है।
सोंठ، काली मिर्च और सेंधा नमक प्रत्येक 10-10 ग्राम लेकर चूर्ण बना लें، फिर इसमें आधा किलो काला अंगूर मिलाकर चटनी तरह पीसकर किसी कांच के बर्तन में रख दें ، इसे 5 से 15 ग्राम तक प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करें ، इससे पाचक अग्नि तेज होती है तथा अरूचि ، कब्ज ، पेटदर्द ، गैस आदि उदर रोग दूर हो जाते हैं।
छोटे बच्चों को कब्ज की शिकायत होने पर प्रतिदिन सुबह 8-10 अंगूर बच्चे को खिलायें ، इससे मल की शुद्धि होकर कब्ज दूर होती है।
पचास काला अंगूर रात को पानी में भिगो दें ، सुबह इसे मसल-छान कर पीने से कब्ज की शिकायत दूर होती है।
अंगूर और अमलतास के काढ़े में गुड़ मिलाकर पीने से गर्मी व थकान से उत्प Â बुखार का शमन होता है।
अंगूर ، पित्तपापड़ा और धनिया ، इन तीनों को पानी में भिगो दें ، फिर इन्हें पीस व छानकर पीने से आमजन्य ज्वर शांत होता है तथा ज्वर के कारण उत्पन्न घबड़ाहट ، सिरदर्द ، बैचेनी आदि लक्षण भी दूर हो जाते हैं।
अंगूर खांसी में भी लाभकारी है ، इसके लिए बीजरहित मुनक्का 15 ग्राम ، बादामगिरी 15 ग्राम और मुलहठी 15 ग्राम लेकर सबको एक पीस लें ، फिर मटर के बराबर गोलियां बनाकर छाया में सुखाकर रख लें ، इसे एक-एक गोली मुख में रखकर दिन में 3-4 बार चूसे، ऐसा करने से खांसी ठीक हो जाती है।
मुनक्का ، आंवला ، पीपर और काली मिर्च लेकर चूर्ण बनाकर रख लें ، 2 से 3 चूर्ण मधु के साथ मिलाकर दिन में तीन बार चाटें ، इससे सूखी खांसी की शिकायत दूर हो जाती है।
मूत्र रोगों में 50 ग्राम अंगूर को रात को ठंडे पानी में भिगो दीजिए، सुबह उसे मसलकर छान लें، फिर उसमें थोड़ा सा जीरे का चूर्ण मिलाकर कुछ दिनों तक नियमित पीने से पेशाब की जलन दूर हो जाती है।
किसमिस और छोटी इलायची के दाने लेकर पीसकर चूर्ण बना लें ، फिर इन्हें आधा लीटर पानी में घोलकर छान लें और शक्कर मिलाकर पीयें ، इससे मूत्र कृच्छ की जलन शांत हो जाती है। तथा मूत्र त्याग खुलकर होता है।
شرب الحليب بعد تناول 20-25 جرام من العنب يزيل الضعف الجسدي ويزيد القوة.
بصرف النظر عن هذا ، فإن العنب يعالج العديد من الأمراض الأخرى.
वैज्ञानिक शोधों से पता चला है कि अंगूर के सेवन से कैंसर जैसे असाध्य रोगों से बचाव होता है। . करना चाहिये।
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