माता मातंगी के शिव "मतंग 'हैं، भगवती मातंगी तेजस्वी، नीलकमल की कान्ति जैसी श्याम वर्ण की हैं। श्याम वर्ण का तात्पर्य ही सभी सुखद रंग समाहित होते है। उच्छिष्ट चाण्डालिनी ، राज मातंगी ، सुमुखी ، वश्य मातंगी ، कर्ण मातंगी आदि स्वरूपों में स्तुति साधक करते हैं। मातंगी शब्द जीवन के प्रत्येक पक्ष को जाग्रत करने की क्रिया का नाम है ، इसीलिये यह कालिका ، त्रिपुरा तथा मातंगी तीनों ही एकाकार स्वरूप में होने से यह साधक के भौतिक जीवन को सुश्रेष्ठमय बनाती हैं।
. साथ ही कार्य व्यापार में वृद्धि व अटूट लक्ष्मी का आगम बना रहता हैं।
जब ऐसे विशेष ग्रहणकाल में LIVE रूप में उक्त समय पर सदगुरूदेव कैलाश श्रीमालीजी से विधि विधान स्वरूप पूजा साधना ، मंत्र जप ، हवन कार्तिक पूर्णिमा पर सम्पन्न कर शक्तिपात दीक्षा से सरोबार हो सकेंगे। तब ही निश्चित रूप से रस ، यौवन ، विलास ، ऐश्वर्य ، गृहस्थ सुख ، आनन्द ، भोग को प्रदान करने वाली मातंगी शक्ति में जीवन कं प्रत्येक भौतिक पक्ष को पूर्ण करइसकेंगे। साथ ही व्यक्ति यौवन रूपी ऊर्जा से युक्त होता है इससे सम्पूर्ण देह ओज ، तेज ، कान्तिमय हो जाती है। इसी से पौरूषता में वृद्धि की प्राप्ति होती है। जबकि स्त्रियां रूप ، लावण्य ، सौन्दर्य व कोमलता से परिपूर्ण होती हैं जिससे वे निरन्तर आकर्षणमय ऊर्जा से युक्त रहती है। तब ही इस शक्ति की साधना से जहां स्वास्थ्य ، आयु ، धन ، कुल कुटुंब सुख ، संतान ، भू-भवन सुख ، भाग्योदय वृद्धि में गति का भाव तीव्रता से क्रियाशील होता है
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