لكل هذه الأغراض المقدسة ، هناك قانون مقدس للزواج الهندوسي. الزواج لا يفي بالكماليات والرغبات. بينما بعد الزواج تبدأ الحياة بضبط النفس. هذا هو السبب في أن الزواج هو أقدس رباط في أريافارتا.
एक-दूसरे के बिना दोनों अपूर्ण है। दोनों के कर्तव्य तथा कर्म क्षेत्र अलग होने पर भी वे एक ही शरीर के दो संयुक्त भाग है और इन दोनों के कार्य भी एक-दूसरे के पूरक तथा समृद्धि ، सुव्यवस्थित ، पुष्टि और तुष्टि के कारण है। एक के बिना दूसरे का काम नहीं चल सकता। अपने-अपने क्षेत्रें में दोनों को ही प्रधानता और श्रेष्ठता है। पर दोनों को श्रेष्ठता एक ही परम श्रेष्ठ की पूर्ति में संलग्न है। दोनों मिलकर अपने-अपने पृथक कर्तव्यों के पालन द्वारा परस्पर सुख प्रदान करते हुये जीवन के परम लक्ष्य की ओर अग्रसर हो सकते हैं।
स्त्री-पुरूष का स्वरूप और कर्तव्य उनकी विवाह साधना का परिणाम है। पत्नी अपने दृष्टिकोण से पति की सेवा करती है और पति भी अपने क्षेत्र में रहकर अपने क्षेत्र के अनुकूल कार्यो द्वारा परिवार की वृद्धि करता है। क्षेत्र तथा कार्यो में भेद रहने पर भी दोनों का लक्ष्य सुखद-सम्पन्नता युक्त जीवन व्यतीत कर भगवत् प्राप्ति है और दोनों का स्वरूप अपने-अपने क्षेत्र में अत्यन्त महत्वपूर्ण तथा अनिवार्य अभिनन्दनीय है। दोनों ही एक-दूसरे के लिये परम आदर्श स्वरूप है। पति अपने पत्नी का सेवक، सखा और स्वामी है। इसी प्रकार पत्नी स्वामिनी، सखी और सेविका है। नारी सेविका होते हुये भी स्वामिनी है और नर स्वामी होते हुये भी सेवक है।
स्वतंत्रता तथा समान अधिकार के युद्ध ने सुन्दर गृहस्थ जीवन को मिटा दिया है। इन्हीं सब कारणों से जरा-जरा ही बात पर पति-पत्नी में कलह ، वैर ، अनबन ، अशान्ति ، तलाक और आत्महत्या जैसी स्थितियां निर्मित हो जाती हैं। गृहस्थ जीवन का परम शोभनीय आदर्श कल्पना की वस्तु बनता जा रहा है। घर को सुशोभित करने वाली गृहणी ، पति के प्रत्येक कार्य में हृदय से सहयोग करने वाली सहधर्मिणी और बच्चों को हृदय अमृतपान कराने वाली माता का हर तरह से असुरक्षित है। आज का गृहस्थ जीवन मुश्किलों के दौर से गुजर रहा है।
आज कल बहुधा यह बात देखने में आती है कि पति को अपने कर्तव्य का ध्यान तो नहीं रहता ، परंतु वह पत्नी को सीता और सावित्री के आदर्श पर सोलहों आने प्रतिष्ठित देखने की इच्छा रखते है। यह न्याय संगत नहीं। स्त्री-पुरूष दोनों को अपने-अपने कर्तव्य का ज्ञान होना चाहिये। यदि पुरूष चाहता है कि नारियां सीता और सावित्री बनें तो उसे सर्वप्रथम अपने को ही श्रीरामचन्द्र और सत्यवान् के आदर्श पर चलना पड़ेगा। साथ ही स्त्री के लिये अपने धर्म का पालन करना आवश्यक है। परन्तु पुरूषों के लिये भी तो धर्म का पालन करना समान रूप से आवश्यक है।
لكي تتحرك الحياة المنزلية بسلاسة ، قيل إنه إلزامي وضروري للزوج والزوجة لأداء واجبات خاصة في الديانة الهندوسية.
الزوج والزوجة يعتبران بعضهما البعض نصف ومكمل.
لا ينبغي للزوج الذي يعتبر نفسه الله أن يعتبر زوجته جارية أو جارية.
احترم متطلبات الزوجة المعقولة حسب حالة منزلك.
لا تتصرف أبدًا بطريقة حيوانية مثل ضرب زوجتك وضربها.
शराब पीना ، भ्रष्ट खान-पान ، असदाचार व्यवहार ना करें
إذا كانت الزوجة مريضة فلا تتردد في تقديم الخدمة.
إكمال الأعمال المتعلقة بالأسرة بكفاءة بعد أخذ المشورة من الزوجة.
पत्नी के माता-पिता आदि का सम्मान करे ، उनके लिये कोई अपमान या निन्दा जनक बात ना करे।
لا تعذب الزوجة لجلب المال من والديها.
عامل زوجتك بروح الدعابة والحب.
إنه واجب مشرف على الزوجة أن تجعل خدمة زوجها طبيعتها.
بموافقة الزوج ، احترم جميع ترتيبات المنزل ووالديه وما إلى ذلك.
पति को उनके आर्थिक व पारिवारिक स्थितियों के प्रतिकूल गहने ، कपड़े आदि के लिये तंग ना करें। इन सभी श्रेष्ठ भावों और चेतना को आत्मसात हेतु सभी शक्तियों के भाव को दीक्षा के माध्यम ग्रहण ग्रहण कर चतुर्थी करने करने सभी सुहागिनों का जीवन सभी विसंगतियों से सुरक्षित होकर श्रेष्ठता की ओर अग्रसर होता है। साथ ही पति और परिवार के स्वास्थ्य ، दीर्घायु युक्त जीवन में सभी प्रकार की सुख ، समृद्धि ، सम्पन्नता आती है।
और पूर्ण रूप से पति-पत्नी प्रेम ، मधुरता ، भावनाओं का सम्मान ، संतान वृद्धि ، भोग-विलास ، शिव-गौरी मय चेतना की शक्ति से युक्त होकर साथ चन्द्र दर्शन कर व्रत पूर्ण करने पर पति-पत्नी के व्यवहार में शीतलता ، सौम्यता ، प्रसन्नता का आगमन होता है। यह करवा चतुर्थी प्रत्येक दृष्टि से सौभाग्य सुहाग रक्षा दायक हो इस हेतु विशिष्ट दीक्षा अवश्य ग्रहण करें।
كارفا شاتورثي السعادة - الزواج زيادة البدء
गृहस्थ जीवन की पूर्णता में ही भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही क्षेत्रें की सफलता समाहित है। भारतीय संस्कृति में गृहस्थ जीवन के आधार पर ही इन्द्रिय सुख की पूर्ति करते हुये सर्वोच्चता प्राप्त करने का वर्णन मिलता है। परन्तु इसके लिये पति-पत्नी के बीच आत्मिक प्रेम ، मधुरता ، सौम्यता ، सौन्दर्यता ، संतान सुख ، आरोग्यता ، सामंजस्य ، एक-दूसरे के भावनाओं का सम्मान ، धैर्य ، संयम ، त्याग ، सहनशीलता अत्यंत आवश्यक है।
प्रत्येक पत्नी की यह इच्छा रहती है कि जब तक उसका जीवन है वह सुहागन रहे ، क्योंकि बिना पति के पत्नी ، बेबस ، दूसरों के दया ، करूणा की आस में लाचार हो जाती है। जीवन में किसी भी प्रकार की विपति، परिवार का कोई और अहित नहीं हो और सर्वरूप में अपने सुहाग की रक्षा चतुर्थी सुख-सौभाग्य वृद्धि दीक्षा से गृहस्थ जीवन में रस गृहस्थ सुख पति सम्मान के साथ सुख-सुहाग की वृद्धि होती ही है।
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