पारिवारिक तनाव और आपसी मतभेद के कारण परिवार में बिखराव की स्थितियां बन जाती है। पति-पत्नी के मध्य कोई भी प्रेम ، सौहार्द ، सामंजस्य पूर्ण स्थिति बनने से पूर्व ही तनाव युक्त स्थितियां निर्मित हो जाती है।
जीवन में अशांति ، तनाव ، अभाव ، कष्ट ، दुःख ، बाधा ، कलुषिता ، कलेश ، चिंता का निवारण दैवीय चेतना द्वारा ही संभव है और इसी चेतना शक्ति के द्वारा ही में मंगलमय स्थितियों का विस्तार हो है प्रत्येक स्त्री अपने जीवन में शुभ चेतना की प्राप्ति के लिये अनेक-अनेक उपाय करती है। उसकी कामना होती है ، कि वह केवल सुहागन ही नहीं अपितु सर्व सौभाग्यशाली भी हो ، उसे अपने पति से अत्यधिक स्नेह ، प्रेम ، आत्मीय लगाव मिले और श्रेष्ठ संतान का सुख निरन्तर परिवार में बना।
. परिवार में सम्मान، अपनत्व की भाव-भूमि निर्मित होने से संतान सुसंस्कारमय बनती है। जीवन में इसी चेतना शक्ति के द्वारा अशुभता ، अनिष्ट योगों और दुर्भाग्य स्वरूप प्राप्त होने वाले कुफलों का निस्तारण संभव हो पाता है। जिससे जीवन में सर्व गृहस्थ सुख प्राप्ति की स्थितियों में वृद्धि होती है।
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