ब्रह्माण्ड की तीन आदि शक्तियां महालक्ष्मी-महासरस्वती और महाकाली जिन्हें त्रि-शक्ति स्वरूपा कहा गया है ، इन तीनों के समन्वय से ही जीवन श्रेष्ठ बनता है। यह तीनों शक्तियां इच्छा शक्ति، ज्ञान शक्ति और कर्म शक्ति का स्वरूप है। मनुष्य अपने जीवन में तीनों शक्तियों से युक्त होता हुआ धर्म ، अर्थ और काम में पूर्णता प्राप्त करने के साथ ही उसे जीवन में पूर्ण भाव ، परमभाव प्राप्त हो पाता है। यह त्रि-शक्तियां ही जीवन के सभी क्षेत्रों में पूर्णता प्रदान करती हैं ، जिससे सांसारिक जीवन सुस्थितियां युक्त चलायमान बन पाता है। त्रि-शक्ति का आह्वान करने से वे साधक को सगुण अथवा निर्गुण रूप में उपस्थित होकर सहयोग करती हैं।
अत: अपने अन्दर राक्षस प्रवृत्ति को समाप्त कर त्रि-शक्ति देवत्व चेतना का समावेश करने पर ही हमारे जीवन में पुन: देवत्व रूपी शक्तियां विद्यमान होनी प्रारम्भ हो जाती है। त्रि-शक्ति स्वरूपा देवी महालक्ष्मी ، महाकाली ، महासरस्वती के आह्वान से ही हमारे अन्दर देव गुण जाग्रत हो पायेंगे। इस दीक्षा के माध्यम से त्रि-शक्ति देवी भी भावपूर्ण रूप से हमें पूर्ण सुख देने में सहयोगी बनेंगी। साथ ही हमारे अन्दर सहस्त्र स्वरूप में सुलक्ष्मीयों ، विकारों के निवारण में शक्ति तत्व महाकाली स्वरूप में जाग्रत होता है। प्रज्ञा-ज्ञान-बुद्धि सुभावों की वृद्धि में महासरस्वती सहायक बनती है। जिससे साधक को धन ، सम्पदा ، ऐश्वर्य ، कीर्ति ، बल ، वीर्य ، ओज ، ज्ञान ، आनन्द ، प्रेम ، वात्सल्य ، सकल पदार्थ उपलब्ध होते हैं।
لذلك ، فإن وجود معلم في حياة المرء يعني استدعاء وإيقاظ الألوهية ، التي هي ثروة الحياة.
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