मनुष्य को ध्यान की क्रिया प्रारम्भ करने हेतु मन को एकाग्र करना आवश्यक है और मन का संचालक चन्द्रमा है। वेदों में कहा गया है- 'चन्द्रमा मनसो जातः' अर्थात चन्द्रमा मन है। चन्द्र ग्रहण के मुहूर्त में जो व्यक्ति चन्द्र देव की उपासना सम्पन्न करता है उस व्यक्ति के मन में नकारात्मक विचार उत्पन्न नहीं होते ، जिससे मनोबल मजबूत होता है और ध्यान की क्रिया में सहायता प्रदान करती है। .
. समाप्त करने में सक्षम होता है ، जिससे उसकी मनः शक्ति मन विस्तार होना प्रारम्भ होता है और ध्यान सिद्धि की क्रिया लिये सरल हो जाती है तथा वह अह्म ब्रह्मास्मि की चेतना से जीवन में पूर्णता प्राप्त कर पाता है।
इस हेतु सद्गुरूदेव के ध्यान शक्ति के माध्यम से अहम् ब्रह्मास्मि चेतना की क्रिया होती है तो व्यक्ति में एकाग्रता ، ध्यान और सकारात्मक गुणों की वृद्धि होती है। यह दीक्षा ग्रहण करने के बाद साधक के मस्तिष्क एवं नाड़ी तन्तुओं की संरचना में श्रेष्ठ परिवर्तन आ जाता है ، जिससे शरीर की सारी ऊर्जा व्यक्ति की ध्यान वृत्ति में सहायक होती है। उसके चेहरे का तेज तो दीक्षा लेने के बाद ही बिल्कुल बढ़ जाता है ، क्योंकि जब आंतरिक परिवर्तन होता है ، तो उसका प्रभाव बाहृय देह पर भी पड़ता ही है। इस दीक्षा को प्राप्त करना अपने जीवन में आनन्द और परमानन्द को स्थापित कर लेने जैसा ही है।
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