जो कार्य जीव द्वारा अपनी देह में होता है ، उसे कर्म कहते है और उसके सामान्यतः दो भेद हैं- शुभ कर्म यानि कि पुण्य तथा अशुभ कर्म अर्थात् पाप। शुभ कर्म या पुण्य वह होता है ، जिसमें हम किसी को सुख देते हैं ، किसी की भलाई करते हैं और अशुभ कर्म वह होता है ، जिसमें हमारे द्वारा किसी को दुःख प्राप्त होता है ، जिसमें हमारे द्वारा किसी को संताप पहुँचता है।
मानव योनि ही एक ऐसी योनि है، जिसमें वह अन्य कर्मों को संचित करता रहता है। . ، जबकि मनुष्य हर बात में मैं को ही सर्वोच्चता प्रदान करता है— और चूंकि वह प्रत्येक कार्य का श्रेय खुद लेना चाहता है ، अतः उसका परिणाम भी उसे ही भुगतना पड़ता है।
حياة الإنسان وأفعاله
تنقسم الكارما في حياة الإنسان إلى ثلاثة أجزاء بالطريقة الكلاسيكية-
1 المتراكمة
2 القدر
3 قادم (قيد التقدم)
संचित कर्म वे होते हैं जो जीव ने अपने समस्त दैहिक आयु के द्वारा अर्जित किये हैं और जो वह अभी भी करता जा रहा है।
प्रारब्ध का अर्थ है، जिन कर्मों का फल अभी गतिशील है، उसे वर्तमान में भोगा जा रहा है।
आगामी का अर्थ है، वे कर्म، जिनका फल अभी आना शेष है।
इन तीन कर्मों के अधीन मनुष्य अपना जीवन जीता रहता है। प्रकृति के द्वारा ऐसी व्यवस्था तो रहती है कि उसके पूर्व कर्म संचित रहें ، परन्तु दुर्भाग्य यह है कि मनुष्य को उसके नवीन कर्म भी भोगने ही पड़ते हैं ، फलस्वरूप उसे अनन्त जन्म लेने पड़ते हैं। परन्तु यह तो एक बहुत ही लम्बी प्रक्रिया है और इसमें तो अनेक जन्मों तक भटकते रहना पड़ता है।
. दिव्यता युक्त जी सके और जिससे उसे फिर से कर्मो के पाश में बंधने की आवश्यकता नहीं पड़े।
سادهانا: الطريقة الوحيدة
यह तरीका، यह मार्ग है साधना का، क्योंकि साधना का अर्थ ही है कि अनिश्चत स्थितियों पर पूर्णतः विजय प्राप्त कर अपने जीवन को पूरी तरह साध लेना ، इस पर पूरी तरह से अपना नियन्त्रण कायम कर लेना।
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कल्किल्मष दीनानां द्विजातीनां सुरेश्वरि। मेध्या मेध्य विचाराणां न शुद्धिः श्रौतकर्मणा ।।
न संहिताद्यैः स्मृतिभिरष्टसिद्धिर्नृणां भवेत्। सत्यं सत्यं पुनः सत्यं सत्यं सत्यं मयोच्यते ।।
विनाह्यागम मार्गेण कलौ नास्ति गतिः प्रिये। श्रुतिस्मृतिपुराणादि मयैवोक्तं पुरा शिवे ।।
आगमोक्त विधानेन कलौ देवान्यजेत्सुधीः ।।
हे देवी! कलि दोष के कारण ब्राह्मण या दूसरे लोग ، जो पाप-पुण्य का विचार करते हैं ، वे वैदिक पूजन की विधियों से पापहीन नहीं हो सकते। मैं बार बार सत्य कहता हूँ कि संहिता और स्मृतियों से उनकी आकांक्षा पूर्ण नहीं हो सकती। कलियुग में तंत्र मार्ग ही एकमात्र विकल्प है। यह सही है कि वेद ، पुराण ، स्मृति आदि भी विश्व को किसी समय मैंने ही प्रदान किया था ، परन्तु कलियुग में बुद्धिमान व्यक्ति तंत्र द्वारा ही साधना कर इच्छित लाभ पायेगा
इससे स्पष्ट होता है कि तंत्र साधना द्वारा व्यक्ति अपने पाप पूर्ण कर्मों को नष्ट कर ، भविष्य के लिये उनसे बंधन रहित हो सकते हैं।
वैसे भी व्यक्ति यदि पूर्ण दरिद्रता युक्त जीवन जी रहा है या यदि वह किसी घातक बीमारी की में में है ، जो कि समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रही हो ، तो यह समझ लेना चाहिये कि उसके पाप आगे आ रहे हैं
فيما يلي بعض المواقف التي يدخلها الشخص في الحياة بسبب خطايا سابقة-
ये कुछ स्थितियाँ हैं ، जिनमें व्यक्ति जी-जान से कोशिश करने के उपरान्त भी यदि उन पर प्राप्त प्राप्त तो समझ लेना कि यह के दोष के कारण ही घटित हो रहा है इसके लिये फिर उन्हें साधना का मार्ग अपनाना ही चाहिये ، जिसके द्वारा उसके समस्त दोष नष्ट हो सकें और वह जीवन में सभी प्रकार से वैभव ، शांति और श्रेष्ठता प्राप्त कर सके।
بابانكوشا سادهانا
. को पूर्णतः नष्ट करता हुआ भविष्य के लिये भी उनके पाश से मुक्त हो जाता है ، उन पर अंकुश लगा पाता है।
इस साधना को सम्पन्न करने से व्यक्ति के जीवन में यदि ऊपर बताई गई स्थितियां होती है तो वे स्वतः ही समाप्त हो जाती है। वह फिर दिनों-दिन उन्नति की ओर अग्रसर होने लग जाता है، इच्छित क्षेत्र में पूर्ण सफलता प्राप्त करता है और फिर कभी भी किसी भी प्रकार की बाधा का सामना उसे अपने जीवन में नहीं करना पड़ता।
यह साधना अत्यधिक उच्चकोटि की है और बहुत ही तीक्ष्ण है। चूंकि यह तंत्र साधना है، अतः इसका प्रभाव शीघ्र देखने को मिलता है। यह साधना स्वयं ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्त होने के लिये एवं जनमानस आदर्श स्थापित के लिए कालभैरव ने सम्पन्न की थी इस की दिव्यता और तेजस्विता का अनुमान हो जाता है—
هذا التأمل هو ثلاثة أيام. يجب أن تبدأ من Papakunsha Ekadashi أو أي Ekadashi. لهذا الغرض ، مطلوب آلة منع عيب الخطيئة و Hakik Mala.
. मैं अपने सभी पाप-दोष समर्पित करता हूँ ، कृपया मुझे मुक्ति दें और जीवन में सुख ، लाभ ، सन्तुष्टि ، प्रसन्नता आदि प्रदान करें-ऐसा कहने के साथ यदि अन्य कोई इच्छा विशेष हो तो उसका भी उच्चारण कर देना चाहिये। फिर हकीक माला से निम्न मंत्र का 11 माला मंत्र जप करना चाहिये।
यह मंत्र अत्यधिक चैतन्य है और साधना काल में ही साधक को अपने शरीर का ताप बदला मालूम होगा। परन्तु भयभीत न हों ، क्योंकि यह तो शरीर में उत्पन्न दिव्याग्नि है ، जिसके द्वारा पाप राशि भस्मीभूत हो रही है। साधना समाप्ति के पश्चात् साधक को ऐसा प्रतीत होगा कि उसका सारा शरीर किसी बहुत बड़ी बोझ से मुक्त हो गया है ، स्वयं को वह पूर्ण प्रसन्न एवं आनन्दित महसूस करेगा और उसका शरीर फूल की भांति हल्का महसूस होगा।
. सकता है।
साधना के उपरांत यंत्र तथा माला को किसी जलाशय में अर्पित कर देना चाहिये। ऐसा करने से साधना फलीभूत होती है और व्यक्ति समस्त दोषों से मुक्त होता हुआ पूर्ण सफलता अर्जित भौतिक एवं एवं मार्गों में श्रेष्ठता प्राप्त करता है।
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