पराजित व्यक्ति तब होता है ، जब वह अपने आपको दुर्बल अनुभव करने लगता है दुर्बल है ، उसका जीवन व्यर्थ है। प्रत्येक व्यक्ति के मन में एक ही बात होती है कि जीवन का कोई भी क्षेत्र हो، वह उसमें उच्चता के शिखर पर हो हो तो बड़े से बड़ा हो तो ऊँचे दर्जे आदि-आदि पसंद नहीं है।
मनोवैज्ञानिकों के कथनानुसार इस महत्त्वबोध की भावना को जीवन की श्रेष्ठता कहा गया है और महत्त्वहीनता के एहसास को हीन भावना कहा गया है ، निम्नता कहा गया है। . और संतप्त होता है، क्योंकि वह अपने अन्दर उस तत्व का، उस शक्ति का، उस बल का अभाव महसूस करता द्वारा उच्चता के शिखर पर पहुँचा जा सकता है और मार्ग में आये अवरोधों को दूर किया जा सकता है।
. है، वस्तुतः यह कोई सुक्ष्म पथ नहीं، अपितु कटीला मार्ग है، जिसको पार कर अपनी मंजिल प्राप्त कर लेना जीवन का सौभाग्य ही कहा जा सकता है। कहने को तो यह छोटा सा जीवन है ، किन्तु इस जीवन को जीवंतता के साथ ، सम्पन्नता के साथ ، पूर्णता के साथ जीने में लम्बा समय बीत जाता है। हो सकता है कि यह जीवन यात्र अधूरी रह जाय और हम मृत्यु को प्राप्त हो जाये किन्तु ऐसा अधूरा एवं अपूर्ण जीवन तो मानव जीवन की श्रेष्ठता नहीं कही जा सकती।
भौतिकवादी युग में मानव को श्रेष्ठता प्राप्त करने के लिये तीन प्रकार की व्यवस्थाओं से होकर ही गुजरना पड़ता है- आर्थिक ، राजनैतिक और सामाजिक। . एक असम्भव सा कार्य है।
वस्तुतः व्यक्ति अत्यधिक परिश्रम करने के बाद भी जीवन में सफलता प्राप्त नहीं कर पाता ، ऐसा भी नहीं है कि वह प्रयत्न नहीं करता हो ، ऐसा भी नहीं है ، कि वह किसी प्रकार की न्यूनता बरतता हो ، परन्तु फिर भी वह सफलता अर्जित नहीं कर पाता ।
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जो कायर होते हैं ، निर्बल होते हैं ، वे ही पराजित होते हैं ، किन्तु जिनके पास अपराजिता सिद्धि विजयदशमी हो ، वे पराजित हो ही नहीं सकते। इस यंत्र को धारण करने के बाद जीवन में आये दुःख ، दैन्यता ، अभाव रूपी समस्त शत्रुओं को आसानी से परास्त किया जा सकता है। इस यंत्र के माध्यम से हर छोटी-बड़ी मुश्किलों को सरलता से दूर किया जा सकता है।
चाहे जीवन का कोई भी क्षेत्र हो ، अपराजिता सिद्धि विजयदशमी की महत्ता को सभी ग्रंथों ، शास्त्रों में एक स्वर से स्वीकार गया है ، कि यह एक ऐसी साधना है ، जिससे जीवन के हर क्षेत्र में विजयी हुआ जा सकता है ، जीवन में आई अड़चनों को، बाधाओं को दूर किया जा सकता है और कठिनाइयों पर सफलता प्राप्त कर विजय श्री की उपाधि से अपने आपको अलंकृत किया जा सकता है।
طريقة التأمل
يمكن عمل هذا sadhana في يوم Aparajita Siddhi Vijayadashami. يمكن بدء هذا sadhana في أي يوم جمعة في أي شهر.
المواد المطلوبة لهذا sadhna هي Aparajita Vijaya Yantra و Aparajita Vijaya Chakra.
जिस दिन साधना करनी हो، उस दिन प्रातः काल 5 बजे से 7 बजे के बीच में स्नानादि से होकर पीले पीले करें और उत्तराभिमुख होकर पीले आसन ही बैठ जायें। अपने सामने जमीन पर यदि आपको अल्पना (रंगोली) बनानी आती हो ، तो बनायें अथवा गुलाल से स्वास्तिक अंकित करें। स्वास्तिक के मध्य में पांच पीले पुष्प रखें और उनके ऊपर यंत्र को स्थापित करें। यंत्र का पंचोपचार पूजन करें। स्वस्तिक की दाहिनी और किसी पात्र में चक्र को रखें। चक्र का भी पुष्प، अक्षत से पूजन करें। दाहिने हाथ में जल लेकर आप जिस कार्य के लिये इस साधना को सम्पन्न कर रहे हैं। उसका उच्चारण कर जल जमीन पर छोड़ दें।
بعد هذا ردد المانترا التالية 51 مرة وقدم كل زهرة على اليانترا والشقرا-
ثم انحنِ للورد فيشنو ، المشرف على هذا العالم بأيدٍ مطوية وانهض من المقعد. يجب أن يتم عمل Sadhna لمدة ثلاثة أيام وفقًا للتسلسل أعلاه. في اليوم الثالث ، احتفظ باليانترا والشاكرا في وعاء فخاري وقدم الزهور والأكشات واغمرها في النهر.
سيشعر الباحث الذي يكمل هذا السدنة بنفسه أنه بدأ في تحقيق النجاح في كل مجال من مجالات الحياة.
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