यह प्रयोग भी अत्यन्त प्राचीन और महत्वपूर्ण है ، तंत्र ग्रंथों के अनुसार यह भगवान शिव द्वारा प्रतिपादित सिद्ध प्रयोग है ، जो समुद्र मंथन के अवसर पर हलाहल को पचाने के लिये स्वयं भगवान शिव के मुंह से उच्चरित हुआ था।
तांत्रिक ग्रंथों के अनुसार पूर्ण सिद्धि प्राप्त करने के लिये स्वयं दुर्वासा ने इस प्रयोग को सिद्ध कर उस समय के ऋषि होने की संज्ञा प्राप्त की थी। . जिससे कि वे हनुमान से भी युद्ध कर सके ، और सफलता अर्जित कर सकें।
. और उसके बाद ही महाभारत का युद्ध प्रारम्भ किया ، अर्जुन स्वयं आगे चल कर कहते हैं ، कि मैंने और मेरे भाईयों ने विजय प्राप्त की ، पर युद्ध में मैं देख रहा था ، कि महाकाली स्वयं आगे बढ़कर शत्रुओं का संहार कर रही हैं और हमे विजय पथ की ओर अग्रसर कर रही है।
. भी संभव किया जा सकता है। गुरू गोरखनाथ तो इस साधना के बाद ही गुरू शब्द से विभूषित हुये और विश्व में प्रसिद्धि प्राप्त की। वर्तमान में भी स्वामी अरविन्द ، कपाली बाबा ، स्वामी विशुद्धानन्दजी आदि योगियों ने इस साधना को सम्पन्न कर जीवन में पूर्णता प्राप्त की।
दुर्गा साधना के सम्बन्ध में कई ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं ، लेकिन विशेष बात यह है कि चण्डी प्रचण्ड तंत्र सर्वाधिक महत्वपूर्ण तांत्रेक्त ग्रंथ है ، इस ग्रंथ की थाह पा लेना असंभव है। पूज्य गुरूदेव के शिष्यों में दुर्गा महाकाली के साधक विशेष रूप से हैं।
जब तक साधक साधना में लीन नहीं हो जाता अपने आपको पूर्ण सम्पूर्ण भाव से डूबा नहीं लेता، तब तक साधना में पूर्ण सफलता प्राप्त नहीं होती है अनुभूतियाँ साधकों को बीच-बीच में होती है और प्रभाव भी देखने को मिलता है अनुभूतियां इतनी क्षीण होती है कि साधक शंका आशंका से घिरा रहता है।
भगवती दुर्गा को साधना में समर्पण भाव और जिस रूप से अनुष्ठान सम्पन्न करना है उसी रूप में होना आवश्यक है ، मंत्र शुद्धि ، प्राण प्रतिष्ठा ، मंत्र संख्या ، पूजन क्रम सभी बातों का ध्यान रखना आवश्यक है। जो साधक साधना में सिद्धि हेतु शॉटर्कट मार्ग चाहता है ، वह कभी भी सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। जीवन की कुछ विशेष भौतिक बाधाये ، ग्रहों का दोष ، दरिद्रता ، मुकदमा ، विवाह में रूकावट ، रोजगार ، कारोबार में बाधा इत्यादि जीवन को कष्टमाय बना देते हैं और मेरी यह बात निश्चित मान लीजिये कि में बाधाओं को हटाने के लिए महादुर्गा का अनुष्ठान व साधना करने के अलावा निश्चित कोई उपाय नहीं है। दुर्गा तो बाधाहारिणी، शक्ति प्रदायक है और जहाँ शक्ति है वहां जान लीजिये कि सब कुछ है।
कितनी भी दरिद्रता हो ، कैसा ही दुर्भाग्य हो ، फिर भी इस साधना को सम्पन्न करने पर उनका दुर्भाग्य समाप्त होता है और वह आर्थिक दृष्टि से उन्नति की ओर अग्रसर होने लगता है।
مع هذه التجربة ، يتم تقييد لاكشمي ويصبح مسكن لاكشمي في المنزل لعدة أجيال.
व्यापार वृद्धि के लिये वह अपने आप में श्रेष्ठतम् प्रयोग है ، यदि इस मंत्र को भोज पत्र पर लिख उसे किसी फ्रेम में मढ़वा कर दुकान में स्थापित कर दें ، तो आश्चर्यजनक उन्नति होने लगती है।
रोग शान्ति के लिये यह संसार का सर्वश्रेष्ठ प्रयोग है، यह प्रयोग सिद्ध करने के बाद पानी का गिलास भर कर उस पर यह मंत्र पढ़ कर पानी रोगी को पिला दे रूप से उसका स्वास्थ्य लाभ होने लगता है।
यदि इस मंत्र के द्वारा झाड़ा दिया जाये तो जिसको भूत-प्रेत बाधा हो और उसके सामने इस मंत्र का उच्चारण किया जाय भूत भूत-प्रेत उपद्रव समाप्त और घर में अनुकूलता प्राप्त होती है।
यदि पानी के गिलास पर यह मंत्र पढ़ कर उस जल को घर में छिड़क दें तो घर नित्य होने उपद्रव पूर्ण रूप से समाप्त हो जाते हैं और जीवन में अनुकूलता तथा सुख सौभाग्य बढ़ने लगता है।
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चाहे मुकदमा कितना ही विपरित हो रहा हो ، मंत्र उच्चारण कर यदि कोर्ट कचहरी जाता है तो वह तुरन्त सफलता और बदलते हुए वातावरण को अनुभव कर सकता है।
चाहे कितनी ही कठिन राज्य बाधा आ गई हो और उससे निकलने का कोई उपाय दिखाई नहीं दे हो तो तेल का दीपक कर साधक दिन या किसी भी रात्रि करें या किसी ब्राह्मण से करवा दे तो में राज्य बाधा समाप्त होती है और स्थिति अनुकूल अनुभव होने लगती है।
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यदि किसी चित्र के सामने संकल्प लेकर इस मंत्र का जप सम्पन्न करें ، तो चित्र वाला व्यक्ति या स्त्री तुरन्त वशीकरण युक्त हो जाता है ، इसी प्रकार इसके द्वारा सम्मोहन वशीकरण विद्वेषण आदि प्रयोग भी सम्पन्न होते है।
. चण्डी साधना का यह विशेष अनुष्ठान किसी भी पक्ष की अष्टमी के अतिरिक्त जब भी रवि पुष्य हो ، नवरात्रि हो ، ग्रहण योग हो ، दीपावली का पर्व हो तब भी इसे सम्पन्न किया जा सकता है। इस साधना का विशेष ध्यान है और उसे उसी रूप में सम्पन्न करना चाहिये، मूल प्रयोग 11 दिन का है، कुछ पुस्तकों में इसे बढ़ा कर 21 तथा 41 दिन का कर दिया गया है। साधना में मूल मंत्र के अलावा ग्यारह दिन प्रतिदिन ، साधना के दौरान संयमित जीवन सात्विक भोजन और भूमि शयन निश्चित रूप से आवश्यक है।
الشيء الخاص الذي يجب مراعاته في طقوس Chandi Sadhana هو أن الباحث يجب أن يحتفظ بكل من Sadhana ورغباته سراً.
इस साधना में नवार्ण मंत्र सिद्ध चण्डी यंत्र जो कि ताम्र पात्र पर अंकित होता है कि स्थापना आवश्यक है ، इसके साथ यंत्र के दोनों और गणपति चक्र तथा शक्ति चक्र की स्थापना अवश्य करें।
. करना आवश्यक है।
इसके साथ ही जलपात्र ، गंगाजल ، धूप ، दीप ، दूध ، घी ، पुष्प ، शहद ، चन्दन ، अक्षत ، मिष्ठान प्रसाद ، सुपारी ، फल आवश्यक है।
انشر أمامك باجوت البنت ، وانشر عليها قطعة قماش حمراء وضع في منتصفها صحنين. قم بتثبيت Chandi Yantra مع وعاء نحاسي عليه علامة Pran Pratishtha في طبق ووضع Ganapati Chakra و Shakti Chakra في نفس اللوحة أمام Yantra. قم بإضاءة مصباح البخور وابدأ أعمال العبادة عن طريق صنع يانترا مع Ashtagandha على ورقة في طبق آخر حسب الصورة الموضحة أدناه.
احتفظ بيدك اليسرى على القلب والمس yantra بزهرة في يدك اليمنى وقم بتلاوة المانترا التالية بصوت عالٍ.
أم عام هريم كرون يام رام لام فام شام شام سام هام هانز لذلك أنا قوة حياتي ، قوة الحياة هنا
Om Aam Hrim Kraun Yam Ram Lam Vam Sham Sham Sam Ham Hansa لذلك أنا كل الحواس هنا فيّ
ओं आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हं हंसः सोऽह मम वाक्-मन-चक्षु-श्रोत्र-
قد تأتي حاسة الشم إلى هنا وتبقى سعيدة لفترة طويلة.
इसके बाद सर्वप्रथम गणपति पूजन एवं गुरू पूजन सम्पन्न करें ، गणपति पूजा स्थापित किये गये गणपति चक्र से करें तथा गुरू चित्र स्थापित कर गुरू पूजन सम्पन्न करें।
अब सामने दोनों थालियों में रखे हुए यंत्रें की पूजा करें ، यह पूजा क्रम निम्न प्रकार से रहेगा-
पाद्यं समर्पयामि ، अर्ध्यं समर्पयामि
आचमनं समर्पयामि ، गंगाजलं समर्पयामि
दुग्धं समर्पयामि ، घृतं समर्पयामि
तरू पुष्पं समर्पयामि ، इक्षुक्षरं समर्पयामि
पंचामृतं समर्पयामि ، गन्धं समर्पयामि
अक्षतान् समर्पयामि ، पुष्प मालां समर्पयामि
मिष्ठान्नं समर्पयामि ، द्रव्यं समर्पयामि
धूपं समर्पयामि ، दीपं समर्पयामि
पूंगी-फलं समर्पयामि ، फल समर्पयामि
أقدم الصدقات إلى Chandi Yantra
इन मंत्रों में जिन-जिन वस्तुओं का नाम आया है ، वे वस्तुये अर्पित करते हुये पूजन करना है। तत्पश्चात् दोनों यंत्रें पर पुष्प चढ़ाये।
अब साधना का सबसे मूल क्रम प्रारम्भ होता है ، इस क्रम में सबसे पहले एक माला गणपति मंत्र का जप करें-
بعد ذلك ترنيمة مسبحة واحدة من تعويذة نافارنا.
بعد هذا الترنيمة تعويذة طقوس مالا تشاندي.
प्रत्येक दिन के पूजा किये हुए यंत्र को लाल कपड़े में बांध कर अलग रख दें ، दूसरे दिन पूजा के समय नये यंत्र का निर्माण कर इसी क्रम में पूजा सम्पन्न करें ग्यारहवें दिन पूजा सम्पन्न करने के पश्चात् साधक इन सभी कागज पर अंकित यंत्रें को ताबीजों में डाल कर बन्द करवा कर प्रथम यंत्र स्वयं गले में अथवा बाहं पर धारण करें। बाकी यंत्र अपने परिवार के सदस्यों में अथवा जनहितार्थ किसी पीडि़त व्यक्तियों को दे दें।
ताम्रपत्र पर अंकित यंत्र को अपने पूजा स्थान में प्रमुख स्थान पर रखें और नित्य प्रतिदिन की पूजा में नमस्कार करते हुए अगरबत्ती ، दीपक अवश्य जलाये।
यह विशेष तांत्रिक अनुष्ठान आस्थावान साधकों के लिये पूर्ण सफलताकारक एवं शीघ्र फलदायक है। जीवन में कभी भी कोई संकट उपस्थित हो तो उस समय भी साधक यदि स्नान कर इस यंत्र निर्माण कर कर मंत्र का का 11 बार उच्चारण कर ले तो भी संकट टल जाता है। वास्तव में ही इस वर्ष यह प्रयोग साधक को सम्पन्न करना ही चाहिये।
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