24 يونيو 2022
भगवान शिव ने माता पार्वती को योगिनी साधना के विषय में उपदेश दिया। . वाले मनुष्यों की सभी इच्छाये पूर्ण नहीं हो पाती और वे अपनी अपूर्ण इच्छाओं के जाल में उलझे जन्म-मरण के चक्र में फंसे रहते हैं।
अतः आप ऐसा उपाय बतायें ، जिससे मनुष्य भी देवताओं के समान तेजस्वी और पराक्रमी बन सकें और अपनी समस्त प्रकार की को प्रदान प्रदान करते हुए दिव्यता के पथ पर अग्रसर हो सकें।
भगवान शिव ने उत्तर दिया- योगिनी साधना ही एकमात्र ऐसा उपाय है जिसके माध्यम से मनुष्य अपनी समस्त प्रकार की इच्छाओं पूर्णता हुये हुये भौतिक और आध्यात्मिक उपलब्धियों को प्राप्त कर सकते हैं। योगिनी साधना सम्पन्न करने से भोग व मोक्ष की प्राप्ति होती है। ये योगिनियाँ तत्काल फल देने वाली، समस्त प्रकार की अतृप्त इच्छाओं को पूर्ण करने वाली होती हैं क्योंकि ये मेरी ही शक्ति का स्वरूप हैं।
शिव-पार्वती के इस संवाद से स्पष्ट हो जाता है ، कि मानव जीवन में योगिनी साधना का महत्व क्या है؟ वास्तव में योगिनियाँ अर्द्ध देवियाँ है، देव वर्ग के इतर यक्ष، किन्नर، गंधर्व आदि योनियों के समान ही योगिनियों का महत्व है।
योगिनियाँ तो तंत्र साधनाओं की आधारभूत देवियाँ हैं ، अपूर्व सौन्दर्य की स्वामिनी होने के साथ ही साथ इन्हें तंत्र के गोपनीय और दुरूह रहस्यों का भी ज्ञान होता है। ये मात्र नारी आकृति ही नहीं होती ، अपितु पूर्ण चैतन्यता से आपूरित एक विशिष्ट सौन्दर्य की स्वामिनी होती हैं और इनके नेत्रें में समाई होती है तंत्र की प्रखरता जो कि आधार है तांत्रिक साधनाओं का।
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. समर्थ होती हैं ، जबकि योगिनी साधना के फलस्वरूप प्राप्त होती हैं वे सौन्दर्य प्रतिमाये ، जो सहयोगिनी रूप में तंत्र की विशिष्ट क्रियाओं को सम्पन्न करने में साधक की सहायता करती हैं।
. सिद्धि، वशीकरण، शत्रु स्तम्भन، मनोकामना पूर्ति، दिव्य रसों की सिद्धि، अदृश्य होने की शक्ति، यौवन और बल की प्राप्ति आदि सिद्धियां प्रदान कर उसे पल मात्र में ही सम्पूर्ण विश्व का एक अद्वितीय व्यक्तित्व बना देने में समर्थ होती हैं।
अन्य सौन्दर्य साधनाओं की अपेक्षा योगिनी साधना सहजता और तीव्रता से सिद्ध होने वाली व अनुकूल फल प्रदान करने वाली होती है। पूर्ण मनोयोग पूर्वक ، श्रद्धा और विश्वास के साथ की गई साधना में योगिनियों से साक्षात्कार होती ही है। साधना की प्रखरता व तेजस्विता और इससे प्राप्त होने वाली
असीमित तांत्रिक शक्तियों व सिद्धियों के कारण ही इसे अत्यन्त गोपनीय कर गुरू मुख परम्परा तक सीमित कर गया और सामान्य में इसके विषय में अनेक भ्रम किंवदन्तियां फैला दी गई तथा क्रूरता वीभत्सता की अनेक कहानियों को इनके साथ जोड़ वे गया अत्यन्त भीषण आकृति वाली होती हैं ، उनकी मुख मुद्रा अत्यन्त भयंकर और नेत्र भय उत्पन्न करने वाले होते हैं ، वे मनुष्यों को मार कर उनका रक्त पीती हैं— आदि।
जबकि वास्तविकता तो यह है ، कि वे अत्यन्त सौम्य स्वरूपा और निर्मल सौन्दर्य की स्वामिनी होती हैं और सिद्ध होने पर साधक की सभी प्रकार से सहायता करती हैं। दैहिक सौन्दर्य के साथ-साथ आन्तरिक गुणों से भी सम्पन्न ये जिस किसी को भी प्रिया रूप में प्राप्त हो जाती हैं ، वह स्वयं में खेचरी विद्या ، रस (पारद) सिद्धि ، भूगर्भ सिद्धि ، वशीकरण ، शत्रु स्तम्भन ، अदृश्य होने की शक्ति ، यौवन और बल की प्राप्ति ، मनोकामना पूर्ति ، दिव्य रसों की सिद्धि आदि अनेक सिद्धियों के साथ-साथ प्रखर और तेजस्वी व्यक्तित्व का स्वामी बन जाता है। यदि कहा जाये कि योगिनी साधना सम्पन्न किये बिना तंत्र की पूर्णता नहीं प्राप्त की जा सकती ، तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगा।
जीवन में योगिनी साधना की पूर्ण प्रखरता केवल प्रिया रूप में ही सम्पन्न करने पर सम्भव है। . परन्तु इस प्रेम में वासना का कोई स्थान नहीं होता، तंत्र अपने आपमें वासना से परे है، क्योंकि वासना अपने आप में एक अधोगामी प्रक्रिया है से नैतिक और आध्यात्मिक पतन की क्रिया ही प्रारम्भ होती है ، जबकि तंत्र तो जीवन की ऊर्ध्वगामी प्रक्रिया है ، जिसके माध्यम से शव से शिव बनने की क्रिया सम्भव होती है और जीवन का मूल ध्येय ، जीवन की पूर्णता प्राप्त होती है।
तंत्र और वासना जीवन के दो विपरीत ध्रुव हैं। . चलने की धारणा रखता है।
यद्यपि कुछ अनाधिकारी स्वार्थी तांत्रिकों के व्यभिचारों के फलस्वरूप मोहन، उच्चाटन आदि तांत्रिक क्रियाओं को हेय दृष्टि से देखा जाने लगा है मूलतः न तो ये क्रियाएं व्यभिचार युक्त हैं और न ही उनका उद्देश्य दूषित है।
لتحقيق كمال التانترا ، من الضروري أيضًا أن تكون بارعًا في هذه الأنواع من الممارسات.
तांत्रिक ग्रंथों में कुल चौंसठ प्रकार की योगिनियों का विवरण प्राप्त होता है। . करने की आवश्यकता पर बल दिया हैं ، वे निम्न हैं
1 दिव्ययोगा 2 महायोगा 3 सिद्धयोगा 4 5 6 7 भुवनेश्वरी 8 विश्वरूपा 9 कामाक्षी 10 11 मंत्रयोगिनी 12 चक्रिणी 13 शुभ्रा 14 शंखिनी 15 16
ये सभी योगिनियाँ अपने आप में दिव्य और अलौकिक क्षमताओं से युक्त होती हैं और सिद्ध होने के साथ ही अपने साधक भी अलौकिकता ، दिव्यता और अद्वितीयता प्रदान कर उसे पल भर में ही श्रेष्ठता ले जा कर खड़ी कर देती देती ، जहाँ पहुँचना साधक स्वयं के प्रयास से असम्भव ही है।
يتم تقديم تأمل Yoginis أعلاه ووصف موجز لهم-
أصلي إلى Yogeshwari Divya Yoga ، الذي يسكن في قلوب اليوغيين المزينين بالمعرفة الإلهية ، من أجل المعرفة الكاملة باليوغا. فقط بعد الحصول على الرفقة من Yogini هذا ، يمكن للمرء أن يصبح ضليعًا في Khechri Vidya من خلال فهم Yoga Vidya تمامًا ويمكنه إعادة الحياة إليه.
महायोगेश्वरी، महातेजस्वी، अनेक मायाधारी मान-सम्मान प्रदान करने वाली महायोगा का मैं आह्वान करता हूँ योगिनी महायोगा का स्वरूप अत्यन्त है और वह अपने साधक-सम्मान से सम्बन्धित अनेक सिद्धियाँ और पूर्ण वैभव देने में समर्थ है। इसे सिद्ध करने पर साधक चतुर्दिक، सम्पूर्ण विश्व में अपनी कीर्ति फैलाने में समर्थ होता है।
नाद और बिन्दुरूपा ، सिद्धि देने वाली ، सब कुछ जानने वाली ، समस्त विद्याओं की प्रतिमूर्तिरूपा सिद्धयोगा को मैं आहूत करता हूँ। इस योगिनी को जीवन में उतारने के उपरान्त किसी भी साधना में असफलता का प्रश्न ही नहीं रह जाता ، साथ ही साधक त्रिकालदर्शी बनने में समर्थ होता है।
प्राणस्वरूपा सभी विद्याओं की स्वामिनी ، सभी विघ्नों को दूर करने वाली ، योगमाता ، सभी को सम्मान दिलाने में समर्थ भगवती माहेश्वरी का मैं चिंतन करता हूँ। योगिनी माहेश्वरी की साधना के फलस्वरूप जीवन की सभी समस्याये ، विघ्न ، बाधाये दूर हो जाती हैं और साधक अनेक गोपनीय विद्याओं को जानने में समर्थ होता है।
काल स्वरूपिणी، समस्त कलाओं से परे، त्रिकालज्ञ، श्रेष्ठतम कुल में उत्पन्न، कुण्डलिनी स्वरूपा، कैलाश पर्वत को अपनी दिव्यता से सुशोभित करने वाली देवी कालरात्रि का मैं आह्वान करता हूँ। इस योगिनी का आश्रय लेने पर अकाल मृत्यु ، किसी गुप्त शत्रु द्वारा किये गए तांत्रिक प्रयोग आदि का निराकरण होता है किसी के भी भूत-भविष्य को जाना जा सकता है।
हुंकार रूपिणी، सभी शक्तियों से युक्त، हाकिनीरूपा، समस्त योगमाया से विभूषित، देवी हुंकारी का मैं आह्वान करता हूँ। योगिनी हुंकारी की साधना सिद्धि के उपरान्त साधक अकेला ही अपने सभी शत्रुओं का विनाश करने में समर्थ होता है।
सरस्वती स्वरूपा ، योग स्वरूपिणी ، सर्वमंगलमयी ، ध्यानरूपा ، ध्यान के द्वारा प्रतीत होने वाली योगिनी भुवनेश्वरी का मैं ध्यान करता हूँ। इस योगिनी के वरदायक प्रभावों से साधक वाक् सिद्धि प्राप्त करने में समर्थ होता है।
समस्त विश्व का मातृवत पोषण करने वाली، विश्व की स्वामिनी، विश्व की उत्पत्ति، पालन और संहार करने वाली विश्वरूपा का आह्वान करता हूँ। इस योगिनी की साधना के उपरान्त साधक को भूगर्भ सिद्धि तथा विपुल धन-वैभव की प्राप्ति होती है और वह समस्त भौतिक सुखों को प्राप्त करने में समर्थ होता है। साथ ही उसके अन्दर की विषय वासनायें समाप्त हो कर ज्ञान की उत्पत्ति होती है।
कुबेर के द्वारा संपूजित، श्रेष्ठ कुल में उत्पन्न، केशर से चर्चित، सभी कलाओं से पूर्ण कात्यायनी रूपा कामाक्षी का मैं चिन्तन करता हूँ। इस योगिनी का पूजन सिर्फ केशर से किया जाता है। इसे सिद्ध करने पर साधक का कायाकल्प ، कामदेव के समान यौवन व पौरूष तथा असीम बल की प्राप्ति होती है और उसके समस्त प्रकार के रोगों का नाश होता है।
समस्त विश्व को वश में करने वाली، सभी को स्तम्भित करने वाली، सभी को सम्मोहित करने वाली، मस्त हथिनी सी चाल चलने वाली योगिनी हस्तिनी का आह्वान करता हूँ। हस्तिनी योगिनी की साधना के फलस्वरूप साधक उच्चाटन ، स्तम्भन आदि के साथ-साथ मनुष्य ، पशु-पक्षी चराचर विश्व को सम्मोहित और वशीभूत करने में सक्षम होता है।
मंत्र स्वरूप ، देव-गन्धर्वो द्वारा सेवित ، योगियों के द्वारा पूजित ، मंगलमयी ، सौन्दर्यमयी योगिनी का मैं आह्वान करता हूँ। इस योगिनी के सान्निध्य में साधक को तांत्रिक साधनाओं में शीघ्र ही पूर्ण सफलता प्राप्त होती है और वह अदृश्य होने की विद्या का ज्ञाता हो जाता है।
यश प्रदान करने वाली ، ज्ञान तथा योग मार्ग में प्रवेश देने वाली ، यज्ञ के अंगभूत ، योग के आनन्द से सारभूत ، चक्र धारण करने वाली देवी चक्रिणी का मैं आह्वान करता हूँ। यह योगिनी योग तथा दिव्य रसों की अनेक सिद्धियां देने में समर्थ और आनन्द प्रदान करने वाली हैं।
शम्भुरूपा ، सिद्धिमयी ، अपने भक्तों को सिद्धि देने वाली ، सुषुम्ना मार्ग से साधकों को प्रेरित करके आनन्द प्रदान करने वाली ، समतामयी ، परमशुद्ध ، शक्ति बिन्दु पर निवास करने वाली देवी शुभ्रा का ध्यान करता हूँ। इस योगिनी की साधना से कुण्डलिनी जाग्रत होती है और साधक परम पद को प्राप्त करने की ओर अग्रसर होता है।
शंख चक्र तथा गदा धारण करने वाली ، योगियों के हृदय को आनन्द देने वाली ، शारदीय चन्द्रमा के समान प्रसन्न मुख वाली ، शंकररूपा ، मंगलभाषिणी का आह्वान करता हूँ। इस योगिनी की साधना से समस्त विपत्तियों ، बाधाओं ، शत्रुओं आदि से पूर्ण सुरक्षा प्राप्त होती है और साधक आनन्द पूर्वक साधनाओं में सफलता की ओर अग्रसर होता है।
प्रियवादिनी، प्रेम प्रदान करने वाली، खिले कमल के समान، सब के ज्ञान एवं योग मार्ग को विकसित करने वाली देवी पद्मिनी का आह्वान करता हूँ। इस योगिनी की साधना से साधक पूर्ण कायाकल्प ، पौरूष व अतीन्द्रिय क्षमताये प्राप्त करते हुये साधनात्मक पूर्णता की ओर अग्रसर होता है।
योगेश्वरी ، सुदृढ़ देह वाली ، वीरता से परिपूर्ण ، वैदिक मार्ग का अनुसरण करने वाली ، वेदमंत्रमयी देवी वैताली का आह्वान करता हूँ। इस योगिनी की साधना के उपरान्त साधक अत्यन्त तेजस्विता प्राप्त करता हुआ अपने समस्त शत्रुओं का नाश करने में सक्षम होता है ، साथ ही साथ उसे मंत्र साधनाओं में भी सफलता प्राप्त होती है। यह षोडश योगिनियाँ और उनका विवेचन، साधक अपनी मनोकूलता के अनुसार किसी भी योगिनी की साधना कर सकता है।
इस साधना को कोई भी व्यक्ति، चाहे वह पुरूष हो या स्त्री، युवा हो या वृद्ध، सम्पन्न कर सकता है। इसके लिये यह आवश्यक नहीं है ، कि किसी वृक्ष की मूल में बैठें या तिराहें पर मंत्र जप करें या रात्रि को श्मशान में जायें या नदी के किनारे आसन लगायें। यह पूर्णतः सौम्य साधना है और इसे अपने पूजा कक्ष में बैठ कर सरलता से सम्पन्न किया जा सकता है ، आवश्यकता है गुरू और मंत्र के प्रति श्रद्धा और पूर्ण विश्वास की।
1- इस साधना में षोडश योगिनी विग्रह व योगिनी माला की आवश्यकता पड़ती है، जो योगिनी तंत्र के अनुसार मंत्र सिद्ध एवं प्राण प्रतिष्ठित हों।
2 इस साधना को योगिनी एकादशी 24 जून या किसी भी माह के शुक्रवार से प्रारम्भ किया जा सकता है। 11 दिवसीय साधना है।
3 रात्रि में 9 बजे के बाद स्नान कर स्वच्छ पीले वस्त्र धारण कर، काले आसन पर बैठें، गुरू चादर भी ओढ़ लें।
4 सामने लकड़ी के बाजोट पर पीला रेशमी वस्त्र बिछा कर उस पर गुलाब के पुष्पों के आसन पर योगिनी योगिनी की करनी है उससे संबधित योगिनी योगिनी विग्रह को स्थापित करें
5 मानसिक गुरू पूजन कर गुरू मंत्र की 4 माला जप करने के उपरान्त गुरूदेव से इस साधना को करने की की इसमें पूर्ण सफलता हेतु आशीर्वाद प्राप्त करें
6 फिर हाथ में जल लेकर के प्रथम दिन संकल्प करें ، नित्य संकल्प लेने की आवश्यकता नहीं है- मैं अमुक गोत्र अमुक नाम का व्यक्ति ، अमुक पिता का पुत्र अपने आध्यात्मिक एवं भौतिक जीवन में षोड़श योगिनियों का साहचर्य प्राप्त करने हेतु इस षोड़श योगिनी साधना को सम्पन्न कर रहा हूँ ، मुझे इस साधना में पूर्ण सफलता प्राप्त हो ، जिससे कि मैं साधनाओं में तीव्रता के साथ आगे बढ़ कर सफलता प्राप्त कर सकूं।
7 विग्रह के समक्ष क्रमशः योगिनी का ध्यान उच्चारित कर उसका पूजन ، कुंकुम ، अक्षत ، केशर ، पुष्प ، धूप-दीप व नैवेद्य से करें। कामाक्षी योगिनी का पूजन केशर से करें।
8 अब नीचे दिये गये प्राण प्रतिष्ठित मंत्र के द्वारा यंत्र में निहित चैतन्यता और ऊर्जस्विता को अपने शरीर के अन्दर उतारें ، जिससे की षोड़श योगिनियों की चेतना आपके शरीर में स्थापित हो सके और शीघ्र सफलता प्राप्त हो सके।
जल भूमि पर छोड़ दें और विग्रह पर अपना दाहिना हाथ रखकर निम्न मंत्र बोलते हुये यह भावना करें ، कि विग्रह की समस्त चेतन्यता धीरे-धीरे आपके अन्दर समाहित हो रही है-
फिर योगिनी माला से पहले मूल षोड़श योगिनी मंत्र की एक माला मंत्र जप करें ، फिर क्रमानुसार षोड़श योगिनियों के विशिष्ट मंत्रें का एक-एक माला मंत्र जप करें। प्रत्येक योगिनी मंत्र की एक माला मंत्र जप करने से पूर्व तथा बाद में मूल षोडश योगिनी मंत्र की 1 माला मंत्र जप करें ، फिर दिव्य योगा योगिनी मंत्र की एक माला मंत्र जप करें। फिर मूल मंत्र की एक माला मंत्र जप करें। इसी प्रकार प्रत्येक योगिनी से सम्बन्धित मंत्र का जप करना है। ऐसा 11 दिन तक नित्य करें।
मंत्र जप की समाप्ति पर साधक साधना कक्ष में सोयें। अगले दिन पुनः इसी प्रकार साधना सम्पन्न करें। बारहवें दिन काले वस्त्र सहित विग्रह और माला को नदी में प्रवाहित कर दें। साधना काल में कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है- इस साधना को रात्रि में ही सम्पन्न करें। इन 11 दिनों में यथासम्भव कम से कम बोलने का प्रयास करें ، मौन सर्वोत्तम है।
मात्र गुरू चिन्तन، इष्ट चिन्तन और इस साधना विशेष से सम्बन्धित चिन्तन में ही समय व्यतीत करें। ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य है।
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