सृष्टि और जीवन का पूरा स्वरूप दो भागों में विभक्त किया जा सकता है। प्रथम पुरूष स्वरूप और दूसरा स्त्री स्वरूप है ، जिसे सामान्य भाषा में नर तथा मादा स्वरूप कहा जाता है। इन्हीं दो तत्वों के मिलन से जीवन की रचना होती है। जहाँ भी एक पक्ष अधूरा रहता है वहां निर्माण नहीं हो सकता ، इसीलिये स्त्री और पुरूष को एक दूसरे का पूरक कहा गया है जीवन का आधार धर्म ، धर्म का आधार काम ، काम का आधार स्त्री पुरूष का मिलन ही है।
शिव और शक्ति मिल कर ही पूर्ण बनते हैं। शक्ति 'इकार की द्योतक है ، इसलिये शिव में से' इकार 'अर्थात शक्ति हटा दी जाय तो पीछे' शव 'ही रहता है ، अतः शक्ति की सायुज्यता से ही' शव 'पूर्ण रूपेण शिव कहलाते हैं और यही उनका अर्धनारीश्वर रूप है। भगवान शिव के स्वरूप शिवलिंग में भी लिंग और योनि का मिलन है ، जो कि सृष्टि के पूरे स्वरूप को दर्शाता है। पुरूष स्वरूप में ، जहां मानव-व्यवहार में शौर्य ، बल ، क्रोध ، तेज ، साहस इत्यादि गुण हैं ، वहीं स्त्री स्वरूप में कोमलता ، सरसता ، निर्मलता ، सौन्दर्य इत्यादि तत्व हैं। भगवान शिव को ही सृष्टि का प्रथम पुरूष माना गया है। जिन्होंने अपने साथ हर समय शक्ति को संयुक्त रखा। शिव के बिना शक्ति अधूरी है और शक्ति के बिना शिव अधूरे हैं، और जहाँ शिव शक्ति का मिलन है، वहां जीवन है। जिस प्रकार वृक्ष में तना पुरूष स्वरूप है ، पत्ते और उसमें स्थित जल तत्व स्त्री स्वरूप है ، उसी प्रकार मनुष्य में ऊपर दिये गये गुण पुरूष और स्त्री स्वरूप को स्पष्ट करते हैं।
जहां जीवन में गृहस्थी है तो उसके साथ बाधाये तो आयेंगी ही लेकिन शिव गौरी भाग्य लक्ष्मी दीक्षा से जीवन को से युक्त बनाया जा सकता है। जीवन में नित्य प्रति आनन्द रस की वर्षा होती रहे ، ऐसा अनुभव हो कि हर सुबह एक नई प्रसन्नता लेकर जीवन आयी है तो वह जीवन अनूठा ही जीवन होता है ، उसमें प्रसन्नता का रस ही रस भरा रहता है।
بسبب تأثير هذا diksha ، يصبح من الممكن الحصول على حظ سعيد. بسبب ذلك تمتلئ الحياة بفرحة شيفا لاكشمي ، وكذلك تظل مليئة بجميع أنواع السعادة. وهذا ما يسمى Shiv Gauri Saubhagya Lakshmi Deeksha.
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