एक ही देवी जिसके तीनों रूप साक्षात् हो जो क्रिया ، ज्ञान और इच्छा रूप में जो साधक का कल्याण कर सकती है वह देवी विंध्यवासिनी है। क्योंकि यह युग कलियुग है और कलियुग में जीवन सरल नहीं रह गया है। . व्यक्ति को अपने भौतिक जीवन को सुरक्षित एवं श्रेष्ठ बनाने के लिए 'मां' की अर्थात् उस देवी शक्ति की कृपा-दृष्टि आवश्यक है। अपने भौतिक जीवन को श्रेष्ठता पूर्ण बनाने के साथ-साथ उसे अपने आध्यात्मिक जीवन को भी श्रेष्ठ बनाना चाहिये। जीवन तो गृहस्थ के उन्नति पथ पर बढ़ते हुए आध्यात्मिक स्तर की ऊंचाई को प्राप्त कर लेना और ब्रह्म में लीन हो जाना है। मां विंध्यवासिनी जो कि अपने दिव्य स्वरूप से सुशोभित पूर्ण शक्तिमान स्वरूपा हैं، व्यक्ति को उस पथ की ओर गतिशील होने के लिये ऐसा वृहद अस्त्र प्रदान करती हैं ، जिससे वह जीवन की सर्वोच्चता को प्राप्त कर लेता है।
विंध्यवासिनी मां दुर्गा का ही रक्षा स्वरूप है ، जो व्यक्ति की हर क्षण रक्षा करती हैं ، उसको जीवन की विभिन्न उलझनों से ، परेशानियों से मुक्ति दिलाती हैं। विंध्यवासिनी कवच धारण करने से व्यक्ति विशिष्ट शक्तिशाली बन जाता है ، उस व्यक्ति को एक विशेष प्रकार की तेजस्विता ، ऊर्जा-शक्ति प्राप्त होने लगती है। इस कवच को धारण करने से स्वयं ही शीघ्र सफलता मिलने लगती है और व्यक्ति अपनी सभी मनेच्छाओं को ही ही स्मरण के के देवी का ध्यान ध्यान मात्र से ही पूर्ण कर लेता है।