. सिर से खून के फव्वारे निकल रहे हैं और पास खड़ी हुई दो योगिनियां उस छलकते हुए खून को अपने मुंह में पी रही हैं। परन्तु यह अपने आप में एक महत्वपूर्ण साधना है और प्राचीन काल से ही इस साधना को दस सर्वाधिक सर्वाधिक गई क्योंकि यही एक मात्र ऐसी है जो वायुगमन प्रक्रिया की श्रेष्ठतम साधना है।
زراعة عملية حركة الهواء
दस महाविद्याओं में से केवल यही एक ऐसी साधना है ، जिससे साधक अपने शरीर को सूक्ष्म आकार देकर आकाश में विचरण कर सकता है और वापिस पृथ्वी पर उसी रूप और आकार में आ सकता है। प्राचीन शास्त्रें में सैंकड़ों स्थानों पर वर्णन आया है कि नारद आदि ऋषि जब चाहे तब ब्रह्माण्ड के किसी भी लोक में चले जाते थे ، विचरण करते थे और कुछ ही क्षणों में वापिस आ जाते थे।
. हल्का हो कर आकाश में ऊपर उठ जाता है। जब उसी वर्ण या मंत्र का विलोम मंत्र जप या विलोम क्रम किया जाता है ، तो वापिस शरीर में भूमि तत्व का प्रादुर्भाव होने लगता है और मनुष्य पुनः अपने मूल स्वरूप में पृथ्वी पर उतर आता है।
يجري البحث عن هذا التفكير في روسيا وأمريكا على مدار الثلاثين عامًا الماضية وقد حققوا الآن نجاحًا في هذا المجال. لقد قبل أنه بدون فهم الكتب المقدسة الهندية أو النظام الهندي ، لا يمكن تحقيق النجاح الكامل في هذا المجال.
जब भूमि तत्व का लोप हो जाता है ، तो मनुष्य का शरीर गुरूत्वाकर्षण से मुक्त हो जाता है और वह ऊपर उठकर शून्य में विचरण करने लग जाता है। . इस प्रकार की सिद्धि के लिये भारतीय तंत्र में एक मात्र 'छिन्नमस्ता साधना' को ही प्रमुखता दी गई है।
إنجاز غير مرئي
. अदृश्य गुटिका को तैयार कर सकें जिसे छिन्नमस्ता गुटिका कहते हैं और उसे मुंह में रखते ही व्यक्ति अदृश्य हो जाता है।
परन्तु यही क्रिया मंत्र साधना के माध्यम से आसानी से हो सकती है ، यह कोई जटिल क्रिया पद्धति नहीं है। यदि साधक निश्चय कर ही ले और इस तरफ पूरा प्रयत्न करे तो छिन्नमस्ता साधना की विशेष क्रिया के द्वारा वह अपने शरीर को अदृश्य कर सकता है। ऐसी स्थिति में वह तो प्रत्येक व्यक्ति या प्राणी को देख सकता है ، परन्तु दूसरे व्यक्ति उस को नहीं देख सकते। ये दोनों ही क्रियायें या ये दोनों ही साधनायें अपने आप में अत्यन्त उच्च और महान हैं। ये ही दो ऐसी साधनायें हैं، जिसकी वजह से पूरा संसार भारत के सामने नतमस्तक रहा है। तिब्बत के भी कई लामा इस प्रकार की सीखने के लिये भारतवर्ष में रहें और उन्होंने साधकों से पूर्ण प्रामाणिक ज्ञान प्राप्त कर में सफलतायें प्राप्त की और-अपने क्षेत्र में अद्वितीय सिद्ध हो सके।
عزيمة
इस प्रकार की साधना के लिये दृढ़ संकल्प-शक्ति चाहिये। . .
ممارسة بسيطة
यह पूर्ण रूप से तांत्रिक साधना है، परन्तु तंत्र के नाम से घबराने की जरूरत नहीं है। तंत्र तो अपने आप में एक सुव्यवस्थित क्रिया है जिसके माध्यम से कोई भी साधना भली प्रकार से सम्पन्न हो पाती है। . कि उन्हें अपने जीवन में निश्चय ही छिन्नमस्ता साधना सम्पन्न करनी चाहिये।
यों तों पूरे वर्ष में कभी भी किसी भी शुभ दिन से छिन्नमस्ता साधना प्रारम्भ की जा सकती है ، परन्तु वैशाख शुक्ल त्रयोदशी अर्थात 14 मई ، छिन्नमस्ता दिवस पर सम्पन्न करें। यह साधना अभी तक सर्वथा गोपनीय रही है परन्तु जो प्रामाणिक और निश्चय ही सफलता देने वाली है।
شيناماستا سادانا
साधक स्नान कर पूजा स्थान में काली धोती पहन कर बैठ जायें और सामने लकड़ी के बाजोट पर कलश स्थापन कर दें। उसके बाद साधक कलश के सामने नौ चावलों की ढेरियां बनाकर उस पर एक-एक सुपारी रख कर उन नौ ग्रहों पूजा करें और एक एक अलग पात्र में गणपति को स्थापन कर उनका संक्षिप्त पूजन करें।
इसके बाद अपने सामने एक लकड़ी के बाजोट पर नया काला वस्त्र बिछायें तथा कपड़े के ऊपर शुद्ध घी से सोलह रेखायें नीचे से ऊपर की ओर खींचें। इन रेखाओं के मध्य में सिन्दूर लगायें، सिन्दूर के ऊपर प्रत्येक रेखा पर नागरबेल का पान रखें। इन सोलह स्थानों पर पान रख कर इन रेखाओं के पीछे श्रेष्ठ वायुगमन 'छिन्नमस्ता यंत्र' को स्थापित करें ، यह मंत्र सिद्ध होना चाहिये। फिर हाथ में पुष्प और अक्षत लेकर इस प्रकार से भगवती श्री छिन्नमस्ता देवी का ध्यान करें।
इस प्रकार ध्यान कर जो हाथ में पुष्प और अक्षत हैं ، वे अपने सिर पर चढ़ा दें। इसके बाद सामने शंख पात्र स्थापित कर "ऊँ शंखायै नमः" उच्चारण करते हुये उस शंख में जल، अक्षत और पुष्प डालें، फिर इस शंख को दोनों हाथों में लेकर भगवती छिन्नमस्ता का ध्यान करते हुये निम्न मंत्र से उसका आवाहन करें।
بقول هذا ، قدِّم الزهرة والأكشات في يدك أمام هذه الأنهار الستة عشر من الصبار. ثم خذ الماء بيدك واترك الماء بعد تلاوة المخصصات التالية.
इस साधना में वायु गमन छिन्नमस्ता यंत्र का विशेष महत्व है। यह छिन्नमस्ता साधना के प्रत्येक अक्षर से प्राण प्रतिष्ठा की हुई होनी चाहिये। फिर इस यंत्र को अलग पात्र में जल से धो कर स्नान करा इस पर कुंकुम की सोलह बिन्दियां लगायें और निम्न मंत्र उच्चारण करते हुये उस यंत्र में प्राण प्रतिष्ठा पुनः करें।
लघु प्राण प्रतिष्ठा करने के बाद यंत्र की संक्षिप्त पूजा करें। उस पर पुष्प समर्पित करें، अक्षत और भोग लगायें، फिर यंत्र के सामने एक त्रिकोण बना कर उस पर चावल की ढेरी बनाये और शुद्ध घृत का दीपक लगा दें। फिर इस दीपक का पूजन चन्दन ، पुष्प ، धूप ، दीप नैवेद्य से करें और पूजन के तुरन्त बाद दोनों हाथों से दीपक बुझा दें और प्रणाम करें। तत्पश्चात् छिन्नमस्ता के मूल मंत्र की 11 माला छिन्नमस्ता मंत्र से जप करें।
जब 11 माला मंत्र जप हो जाये तब भगवती देवी की आरती करें और क्षमा प्रार्थना करें। इस प्रकार साधना सम्पन्न होती है ، साधक को नित्य इसी साधना को करना चाहिये ، ग्यारह दिन तक साधना करने पर इच्छित सिद्धि प्राप्त होती है।
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