प्राचीन काल से अब तक साधनाओं का आश्रय लेकर अनेकों— या यो कहें، कि सभी कार्य सफलता पूर्वक सम्पन्न होते रहे हैं- होते भी हैं। साधनाओं के अनुसंधान कर्ताओं ने कुछ ऐसी साधनाओं का अनुसंधान किया، जो कि व्यक्ति के दैनिकचर्या के संकट और छोटी मोटी परेशानियों का सहज निदान बन सकें। इस प्रकार की साधनाओं में बटुक भैरव की साधना श्रेष्ठतम साधना मानी गई है ، जिसका फल तत्क्षण मिलता है। शास्त्रें में भी बटुक भैरव की महिमा वर्णित है।
शास्त्रनुसार भैरव को रूद्र، विष्णु व ब्रह्मा का स्वरूप माना गया है। इस प्रकार से भैरव के अनेक रूप वर्णित हैं- ब्रह्म रूप ، पर ब्रह्म रूप ، पूर्ण रूप ، निष्कल रूप में- वांगमनसागोचर ، विश्वातीत ، स्वप्रकाश ، पूर्णाहंभाव एवं सकल रूप में- क्षोभण ، मन्यु तत्पुरूष आदि।
रूद्र की भैरवावतार की विवेचना शिवपुराण में इस प्रकार वर्णित हैं- एक बार समस्त ऋषिगणों में परमतत्व को जानने की जिज्ञासा उत्पन्न हुई ، वे परब्रह्म को जानकर उसकी तपस्या करना चाहते थे। ؟ इस पर ब्रह्मा ने स्वयं को ही इंगित करते हुए कहा- मैं ही वह परमतत्व हूँ। ऋषिगण उनके इस उत्तर से संतुष्ट न हो सके ، तब यही प्रश्न लेकर वे क्षीरसागर में विष्णु के पास गये ، परन्तु उन्होंने भी कहा ، कि वे ही परमतत्व हैं ، अतः उनकी अराधना करना श्रेष्ठ है ، किन्तु उनके भी उत्तर से ऋषि समूह संतुष्ट न हो सका، अंत में उन्होंने वेदों के पास जाने का निश्चय किया। वेदों के समक्ष जा कर उन्होंने यही जिज्ञासा प्रकट की ، कि हमें परमतत्व के बारे में ज्ञान दीजिये।
इस पर वेदों ने उत्तर दिया- शिव ही परमतत्व हैं ، वे ही सर्वश्रेष्ठ और पूजन के योग्य हैं। परन्तु यह उत्तर सुनकर ब्रह्मा और विष्णु ने वेदों की बात को अस्वीकार कर दिया। उसी समय वहां एक तेजपुंज प्रकट हुआ और धीरे-धीरे एक पुरूषाकृति को धारण कर लिया। यह देख ब्रह्मा का पंचम सिर क्रोधोन्मत हो उठा और उस आकृति से बोला- पूर्वकाल में मेरे भाल से ही तुम उत्पन्न हुये हो ، मैंने ही तुम्हारा नाम रूद्र रखा था ، तुम मेरे पुत्र हो ، मेरी शरण में आओं।
ब्रह्मा की इस गर्वोतक से वह तेजपुंज कुपित हो गया और उन्होंने एक अत्यन्त भीषण पुरूष को उत्पन्न कर उसे आशीर्वाद देते हुए कहा- आप कालराज हैं ، क्योंकि काल की भांति शोभित हैं। आप भैरव हैं، क्योंकि आप अत्यन्त भीषण हैं، आप काल भैरव हैं، क्योंकि काल भी आपसे भयभीत होगा। आप आमर्दक है، क्योंकि आप दुष्टात्माओं का नाश करेंगे। शिव से वर प्राप्त कर श्री भैरव ने अपने नखाग्र से ब्रह्मा के अपराधकर्ता पंचम सिर का विच्छेदन कर दिया। लोक मर्यादा रक्षक शिव ने ब्रह्म हत्या मुक्ति के लिये भैरव को कापालिक व्रत धारण कराया और काशी में निवास करने की आज्ञा दे दी।
भैरव का एक नाम बटुक भी है। बटुक शब्द का अभिप्राय है- वट्यते वेष्टयते सर्वं जगत् प्रलये {नेनेति वटुकः अर्थात प्रलयकाल में सम्पूर्ण जगत को आवेष्टित करने के कारण अथवा सर्वव्यापी होने से भैरव बटुक कहलाये। बटून ब्रह्मचाणिः कार्यमुपदिशतीति बटुको गुरूरूपः अर्थात् ब्रह्मचारियों को उपदेश देने वाले गुरू रूप होने से भैरव बटुक कहे गये। अनेकार्थग्विलास में कहा गया है- वटुः वर्णी बटुः विष्णुः बटुक का एक अर्थ विष्णु भी होता है ، जो वामनावतार की और संकेत है।
इस प्रकार स्पष्ट है ، कि सर्वव्यापी ، गुरू रूप एवं विष्णु रूप इन तीनों के सम्मिलित स्वरूप होने से भैरव का बटुक स्वरूप पूर्ण फलप्रद एवं विजयप्रद है। भैरव साधना के विषय में लोगों में प्रकार के भ्रम हैं؟ लेकिन भैरव साधना सरल एवं प्रत्येक गृहस्थ व्यक्ति के लिए आवश्यक है، यह साधना निडर होकर की जा सकती है، इसमें किसी प्रकार का कोई भय या गलतफहमी नहीं है। यह अत्यन्त फलदायक साधना है। यह साधना सकाम्य साधना है ، अतः साधक जिस कामना की पूर्ति के लिए यह साधना करता है ، वह कामना पूर्ण होती ही है-
इस साधना को सम्पन्न करने से साधक के अंदर तेजस्विता उत्पन्न होती है، जिसके कारण यदि उसके शत्रु हैं، तो वे उसके सामने आते ही कांतिहीन हो जाते हैं और शक्तिहीन होकर साधक के सम्मुख खड़े नहीं रह पाते हैं। यदि वह चुनाव लड़ रहा है या मुकदमा कई वर्षों से चल रहा है ، तो वह उसमें पूर्ण रूप से विजय प्राप्त करता है। उसके विरोधी उसके सम्मुख शांत हो जाते हैं ، विपक्षी प्रभावहीन होकर उसके सम्मुख हार स्वीकार कर लेते हैं। यदि उसके जीवन में अनेक प्रकार की समस्याये आ रही हों और उनका समाधान नहीं मिल रहा हो ، तो इस साधना को सम्पन्न करने से समाधान प्राप्त होता है।
يصبح الطالب ، بعد الانتهاء من الممارسة الروحية ، رجوليًا تمامًا ويحل جميع المشاكل بجهده الروحي.
بعد تأمل Bhairav ، خذ مسبحة Kali Hakeek بيدك اليسرى وقم بترديد المانترا التالية بينما تقدم Akshat عليها بيدك اليمنى-
भोग अर्पित करें، पर जो भी भोग अर्पण करें، उसे वहीं पर बैठकर स्वयं ग्रहण करें। वस्तुतः बटुक भैरव प्रयोग अत्यन्त सरल और सौम्य है तथा कलियुग में शीघ्र सफलतादायक भी है। साधना समाप्ति के बाद इसे किसी लाल कपड़े में बांधकर रख दें।
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