जो रूद्र उमापित हैं ، वही सब शरीरों में जीव रूप में प्रविष्ट हुये हैं ، उनको हमारा प्रणाम। रूद्र ही पुरूष है ، वह ब्रह्मलोक में ब्रह्मा से ، प्रजा पतिलोक में प्रजापति के रूप से ، सूर्यमण्डल में विराट रूप में तथा देह में जीव रूप से स्थित हैं ، उन महान सच्चिदानन्द स्वरूप रूद्र को बारम्बार नमस्कार।
जो अघोर हैं ، घोर है ، घोर से भी घोरतर है और जो सर्वसंहारी रूद्र रूप हैं ، आपके सभी स्वरूपों को नमस्कार है। मनुष्य जीवन की प्रथम आवश्यकता है، मन और तन का स्वस्थ होना، स्वस्थ शरीर से ही हमारे मन की वृत्तियां स्वस्थ होती हैं मन से श्रेष्ठ इच्छाओं की उत्पत्ति होती है ، श्रेष्ठ इच्छाओं से क्रिया शक्ति में वृद्धि और क्रिया शक्ति से ही श्रेष्ठ फल की प्राप्ति होती है। इसीलिये शरीर और मन दोनों का स्वस्थ होना अति आवश्यक है ، क्योंकि जीवन की प्रत्येक क्रिया इनके द्वारा ही संचालित होती है। साथ ही स्वस्थ और प्रसन्न व्यक्ति के शरीर में शक्ति ، स्फूर्ति और बल का प्रवाह तीव्र रहता है और उसी से मन ، वचन ، कर्म में एकता रहती है। जब तीनों में एकता का सामंजस्य होता है، तो जीवन श्रेष्ठमय बनता है।
स्वः प्रयास से तो मनुष्य निरन्तर प्रयत्न करता है कि उसे स्वस्थ देह और स्वस्थ मन की प्राप्ति हो ، परन्तु इस घोर भौतिकतावादी संसार में विकृतियां जकड़ ही लेती हैं। गलत खान-पान ، दूषित वातावरण ، सामाजिक गरिमा में ह्रास ، मर्यादाओं का उल्लघंन ، उत्तेजित दृश्य आदि ऐसे कारण होते हैं ، जिनसे तन व मन में अस्वस्थता आ ही जाती है। .
रूद्रशः महामृत्युंजय शक्तिपात दीक्षा से साधक जीर्ण-शीर्ण मन-देह से निजात पा लेता है ، उसका शरीर आरोग्यमय चेतना से आप्लावित होता है ، साथ ही मन की अनेक विकृतियां समाप्त हो जाती हैं। जिससे तन-मन में सामंजस्य स्थापित होता है और साधक अपने प्रत्येक क्रिया को पूरी एकाग्रता व श्रेष्ठता से सम्पन्न कर प्रकार सफलताओं से युक्त होता होता है।
إلزامي للحصول عليها جورو ديكشا من الموقر Gurudev قبل أداء أي Sadhana أو أخذ أي Diksha أخرى. الرجاء التواصل كايلاش سيدهاشرام ، جودبور من خلال البريد إلكتروني: , واتساب, الهاتف: or إرسال طلب سحب للحصول على مواد Sadhana المكرسة والمفعمة بالقداسة والمقدسة والمزيد من التوجيه ،
شارك عبر: