ऐसा व्यक्ति केवल अपने घर परिवार के भरण-पोषण तक ही सीमित नहीं रहता अपितु वंश के लिये और समाज के भी कुछ कुछ करने में समर्थ रहता है। अपने लिये तो पशु भी जीते हैं ، कीट पतंगे भी जीवन यापन करते हैं लेकिन मनुष्य का जीवन इस भांति बिताने के लिए प्राप्त नहीं हुआ है। मनुष्य का जीवन तो बना ही इसलिये है कि वह अपने जीवन में अपने लक्ष्य को प्राप्त करें और जीवन में धर्म ، अर्थ ، काम ، मोक्ष चतुवर्ग से जीता हुआ हुआ परम तत्त्व को प्राप्त करे।
जिसके जीवन में डर है ، भय है ، आशंका है वह व्यक्ति अपने जीवन में कुछ भी नहीं कर सकता हैं ، जिसने अपने जीवन में भय ، डर और आशंका को हटा दिया है वही अपना जीवन उत्तम रूप से जी सकता है। . . को नृसिंह बनाने से।
. जिसे किसी भी प्रकार की आशंका، डर और भय नहीं हो।
नृसिंह के रूप को समझने से पहले जो पुराणों में इनकी अवतार कथा आती है उसे समझना भी आवश्यक है यह ज्ञान होता है कि किस प्रकार विष्णु के अवतार नृसिंह अपने भक्तों पर कृपा कर उसे पूर्णता प्रदान करते हैं। لا شيء वरदान प्राप्त हुए।
जब दैत्यराज हिरणकश्यप तपस्या में थे तो उनकी पत्नी कयादू के गर्भ में प्रहलाद थे। देवताओं ने दैत्यों पर आक्रमण किया उस समय देवर्षि नारद ने कयादू को अपने आश्रम में शरण दी और असुर पत्नी प्रहलाद को भक्ति का उपदेश दिया।
तपस्या पूर्ण होने पर हिरण्याकश्यप ने सारे लोकों पर अधिकार कर लिया। अपने भाई के वध का बदला ले लिया था और साधना सिद्धि द्वारा यह वरदान उसे प्राप्त था कि उसे कोई भी मनुष्य ، पशु मार नहीं सकेगा ، धरती अथवा आकाश में उसका वध नहीं हो सकेगा। इसी हिरण्याकश्यप के चतुर्थ पुत्र प्रहलाद को शिक्षा के लिए आचार्य शुक्र के पुत्र षण्ड और अमर्क के पास भेजा। इन दोनों गुरूओं से प्रहलाद ने धर्म، अर्थ، काम की शिक्षा प्राप्त की। शिक्षा पूर्ण होने पर पिता ने उससे शिक्षा के बारे में पूछा तो प्रहलाद का उत्तर था कि श्रवण ، कीर्तन ، स्मरण ، पादसेवन ، अर्चन ، वन्दन ، दास्य ، सख्य और आत्मनिवेदन- ये नौ भक्तिभाव ही श्रेष्ठ हैं।
हिरण्याकश्यप ने अपने पुत्र को ही मार देना चाहा लेकिन भगवत कृपा से प्रहलाद का कुछ नहीं बिगड़ा। मंत्र बल से कृत्या राक्षसी उत्पन्न हुई लेकिन वह भी प्रहलाद का अंत नहीं कर सकी। हिरण्याकश्यप को आश्चर्य हुआ कि ऐसी क्या शक्ति इस बालक में है जिसके कारण से यह अमर है जबकि अमरता का वरदान तो मुझे प्राप्त है। उन्होंने अपने पुत्र प्रहलाद को पूछा। प्रहलाद ने उत्तर दिया कि मैं उस शक्ति का साधक हूँ जिसका बल समस्त चराचर जगत में है। व्यंग्य से राक्षस ने कहा कि खम्ब में भी भगवान है؟ प्रहलाद ने कहा निश्चय ही।
दैत्यराज ने खम्ब तो तोड़ा और उस खम्ब से एक महान व्यक्ति गर्जना के साथ प्रकट हुआ जिसका समस्त शरीर मनुष्य का था और मुंह सिंह का था। उस आकृति को देखकर दैत्य झपटे लेकिन नृसिंह रूप में उत्पन्न भगवान विष्णु ने सबको मार दिया और हिरण्याकश्यप को पकड़ लिया। दैत्य ने कहा कि मुझे ब्रह्मा का वरदान है कि मैं दिवस और रात्रि में नहीं मरूंगा ، कोई देव ، दैत्य ، मानव ، पशु मुझे नहीं मार सकेगा। भवन में अथवा भवन के बाहर मेरी मृत्यु नहीं हो सकेगी ، समस्त शस्त्र मुझ पर व्यर्थ होंगे। भूमि، जल और गगन में भी मेरा वध नहीं हो सकेगा।
भगवान नृसिंह ने कहा कि यह संध्याकाल है। . कर उसका अंत कर दिया। तदोपरांत प्रहलाद का राजतिलक कर उन्हें राजा बनाया। प्रहलाद के कारण ही देवताओं और दैत्यों में पुनः सन्धि हुई। जगत में पुनः भक्ति ، साधना ، पूजा स्थापित हुई ، जब जब पृथ्वी पर अन्याय बढ़ जाते हैं तो भगवान किसी न किसी रूप में प्रकट होकर उस अन्याय का अन्त करते हैं।
नृसिंह साधना क्यों आवश्यक؟ यह साधना जीवन में चतुर्वग धर्म ، अर्थ ، काम ، मोक्ष प्राप्ति के लिए सर्वोत्कृष्ट साधना मानी गई है। जीवन में वीरता का समावेश होता है और अज्ञात भय की आशंका पूर्ण रूप से दूर हो जाती है। जब जीवन में भय नहीं रहता है तो साधक अपनी शक्तियों से पूर्ण रूप से कार्य कर सकता है यह त्रिदिवसीय साधना होली के तांत्रेक्त पर्व पर साधक अवश्य ही सम्पन्न करे।
هذا Sadhana لمدة 3 أيام. يجب أن يجلس الطالب في Brahmamuhurta في الصباح باتجاه الجنوب عن طريق وضع aasan أحمر. أشعل مصباحا من البخور والسمن ونقّاه بماء البانشابرا واعمل العشمان 3 مرات.
सामने चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर गुरू पूजन करें। पहले गुरू चित्र को स्नान करायें، फिर तिलक करें، उसके बाद धूप और दीप दिखाकर गुरूचित्र को हार पहना दें तथा दोनों हाथ जोड़ कर प्रार्थना करें।
इसके बाद सामने ताम्र पात्र पर कुकुंम या केशर से षट्कोण बनाकर उस पर 'प्राण प्रतिष्ठित नृसिंह यंत्र' को स्थापित करें। साधना काल में घी का दीपक लगाकर जलते रहना चाहिये। पहले यंत्र को शुद्ध जल से स्नान कराये।
بعد ذلك ، قم بتطبيق أربعة تيلاك على Yantra في جميع الاتجاهات الأربعة.
بعد عبادة Yantra القصيرة هذه ، قم بتثبيت المواد التالية في الأشكال السداسية.
تثبيت Lion Seed. بهذا ، يمكن هزيمة أي عدو بجعله خائفًا والنصر هو رمز الإنجاز.
किसी भी दुर्दान्त शत्रु को मर्दन करने के उद्देश्य से 'मर्दिनी' स्थापित करें।
الغرض من إنشاء Veeravati هو أنه يمكن إدراج الشجاعة في الطالب.
تم إنشاء Nagchakra بحيث يمكن السيطرة على العدو وربطه بحبل ثعبان.
تأسيس Rudra Dand ، يمكن بذل الجهود لإخضاع العدو وإنزال العقوبة المناسبة.
الهدف من Shauri Sthapana هو أنه بعد الممارسة الروحية ، يجب أن يكون هناك شجاعة وشجاعة ثابتة في الباحث. بعد ذلك ، قم بتطبيق kumquat tilak على جميع المواد المثبتة في الأشكال السداسية وقدم زهرة واحدة لكل منها. قم بترديد المانترا التالية أثناء أداء تيلاك.
بعد ذلك ، قم بتلوين Akshat مع برتقال ذهبي واعرضه على yantra أثناء تلاوة المانترا التالية. بعد هذا ترنيمة المانترا التالية أثناء تقديم بتلات الورد على اليانترا-
بعد هذا قم بترديد المانترا التالية من خلال تقديم فص واحد على اليانترا
यह 3 दिन प्रातःकालीन साधना है। 'रक्ताभ माला' से निम्न मंत्र का 5 माला मंत्र जप करें।
بدء هذه التجربة من Trayodashi من Shukla Paksha في شهر Phalgun ، أكمل اكتمال القمر. بعد ذلك ، اربط جميع المكونات بقطعة قماش حمراء وكرسها لهوليكا في نفس اليوم.
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