، जिसके लिये वह इस धरा पर अवतरित होता है और देता है इस अज्ञानी युग को अपने ज्ञान का वह संदेश ، जिसे सुनकर प्रत्येक व्यक्ति सत्य का साक्षात्कार कर सके जीवन के वास्तविक तथ्य को जान सके ، जिससे वह अनभिज्ञ है।
वह इस कार्य के लिये क्षण-प्रतिक्षण ، प्रयत्नशील रहता है ، कि मैं जैसे भी सम्भव हो इन अज्ञानी मनुष्यों को उस झूठे माया जाल से निकाल सकूं ، जिस माया जाल में फंस कर वह मनुष्य भ्रमित हो गया है . सद्गुरू का जन्म तो होता ही इसीलिये है।
. ، वशिष्ठ ، द्रोणाचार्य ، बुद्ध ، शंकराचार्य इत्यादि ऐसे अनेकों गुरूओं ने इस धरा पर जन्म लिया जिन्होंने इस धरा पर ज्ञान को फैलाकर मानव जाति को जाग्रत करने का अदम्य प्रयास किया और इसी कार्य में प्रतिपल संलग्न रहे। . कर، उनके साहचर्य में बिताने चाहिये।
हर बार वह चीख कर، चिल्लाकर، अपने-आप को तिल-तिल जलाकर، समाज द्वारा दी गई प्रत्यंचनाओं को झेलते झेलते द्वारा दिये गये कड़वे जहर को शिव की तरह अपने कंठ में कर भी मनुष्यों के कल्याण के लिये अपने रक्त की एक-एक बूंद को बहा देते हैं।
किन्तु इतना होने पर भी हम कितनी सुन पाते हैं؟ . उनकी कही बातों को ठीक से सुन नहीं पाते ، उसे आत्मसात् नहीं कर पाते और अगर ऐसा नहीं कर पाते तो न्यूनता हमारी है ، उनकी नहीं।
एक मजबूत और सशक्त वृक्ष، जिसकी डाल टूट भी जाये، पत्ते पतझड़ में गिर भी जाये، तो भी वह अपना अस्तित्व नहीं खोता उसकी जड़ो में तो चट्टानों को भी तोड़ने की ताकत है गहराईयों तक जाकर जल और खनिज पदार्थ प्राप्त करने की क्षमता है ، जिस वृक्ष की जड़े जितनी गहरी और मजबूत होंगी ، उस वृक्ष की हरियाली उतनी ही शीतल और सौम्य होंगी। उसे किसी प्रकार का खतरा नहीं हो सकता ، उसे किसी आंधी तूफान का भी भय नहीं होता।
उसी प्रकार चैतन्य जीवन्त गुरू अपनी तपस्या के बल पर ، साधना के बल पर अपनी गरिमा को बनाये रखते हैं ، उनकी ज्ञान रूपी जड़े इतनी विस्तृत व मजबूत होती है ، कि कोई आंधी या तूफान उसे डिगा नहीं सकता। ऐसे सशक्त ، मजबूत वृक्ष की छाया के नीचे आने वाला प्रत्येक शिष्य शीतलता प्राप्त करता है ، जीवन की धूप में सद्गुरू के तपस्यांश शक्ति की सौम्य हवायें उसको सुख-आनन्द प्रदान करती ही है।
गुरू पूर्णिमा पर्व इन्हीं भावों को बोध करने का महापर्व है ، गुरू महिमा का साक्षात्कार करने का चिंतन है। अपने आत्मिक समर्पण के प्रगटिकरण का दिवस है गुरू पूर्णिमा। यह एक ऐसा दिवस है ، जब गुरू अपने शिष्यों के मस्तक पर प्रतिबिम्ब स्वरूप में उपस्थित होकर उसे आशीर्वाद् देते हैं ، उसके भौतिक समस्याओं के निवारण का मार्ग प्रशस्त करते है। उसके जीवन की विषमताओं का विषपान कर उसे ऊर्ध्वता देते हैं।
सद्गुरू कैसे होते हैं ، उनकी महिमा कैसी होती है यह तो वह ही बता सकता है ، जिसने उनकी निकटता प्राप्त की हो उसे देखकर ही यह जाना जा सकता है ، कि ईश्वर क्या है ، कैसा है ، उसकी सर्वोच्चता क्या है؟ . कर ही ، उन्हीं के मध्य साधारण रूप में रहकर जीवन यापन कर उनके भौतिक और आध्यात्मिक दोनों धरातलों के बीच संतुलन रखते हुये उन्हें पूर्णता तक पहुंचाने का मार्ग प्रशस्त करता है।
. उसके भीतर ही प्रस्तुत है، जो मिट नहीं सकता، जो शाश्वत है। . इसके लिये आवश्यकता है तो समय रहते उस व्यक्तित्व को पहचान लेने की، पूर्णरूप से अपने आप को उनके चरणों में समर्पित कर देने की है श्रद्धा और विश्वास की तभी उस उच्चता पहुँचा जा सकता है जा सकता है।
. सदा-सदा के लिये प्राप्त कर लेता है ، अपनी जीवन की न्यूनता के संहार की कामना लेकर जब वह गुरू चरणों में पहुँचता है ، स्वतः ही उसके महा-जीवन के नवीन निर्माण की प्रक्रिया प्रारम्भ होती है। यदि आप सभी ऐसे दिव्य भावों ، चिन्तन के साथ गुरू पूर्णिमा महापर्व पर उपस्थित होते हैं ، तो निश्चय ही सद्गुरू के 'ब्रह्म' स्वरूप का दर्शन और आशीर्वाद् युक्त चेतना प्राप्त कर सकेंगे।
طريقة التأمل
गुरू पूर्णिमा महापर्व 24 जुलाई या किसी भी गुरूवार की प्र्रातः काल स्नानादि से निवृत्त होकर पीली धोती और गुरू चादर धारण करे। पूजा स्थान में सामने लकड़ी के बाजोट पर पीला बस्त्र बिछायें साथ ही बाजोट के बायें ओर शुद्ध घी का दीपक जलायें। इसके बाद किसी ताम्र पात्र में ॐ लिखकर उस पर गुरू यंत्र और जीवट को स्थापित कर पंचोपचार पूजन कर अपनी मनोकामनाये व्यक्त सद्गुरूदेव सद्गुरूदेव ध्यान करे फिर संकल्प लेकर नारायण माला से निम्न मंत्र का 11 माला मंत्र जप सम्पन्न करे।
بعد الانتهاء من ترديد المانترا ، يجب على المعلم أداء آارتي والثناء الكامل وتقديم مادة sadhna في المعبد.
إلزامي للحصول عليها جورو ديكشا من الموقر Gurudev قبل أداء أي Sadhana أو أخذ أي Diksha أخرى. الرجاء التواصل كايلاش سيدهاشرام ، جودبور من خلال البريد إلكتروني: , واتساب, الهاتف: or إرسال طلب سحب للحصول على مواد Sadhana المكرسة والمفعمة بالقداسة والمقدسة والمزيد من التوجيه ،
شارك عبر: