. प्रेरणा के स्त्रोत हैं، जन साधारण उनकी प्रतिदिन वन्दना और अर्चना करता है इस सरल साधारण से अलौकिक भोले भाले व्यक्तित्व जो सदा दंभ और कायरता से दूर रहें कार्य न कर कर दिखाया कहलाये भगवान राम से भी अधिक आज उनके मंदिर है। घर घर में उनकी पूजा की विशेष मान्यता है।
شيفا بوترا وشيفافاتار
शास्त्रीय प्रमाण एवं पुराण कथा के आधार पर स्पष्ट है कि हनुमान रामायण मे आये मात्र एक वानर पात्र के नहीं वरन् वह मायने में उत्पन्न माँ माँ के पुत्र हैं जो शक्ति ، पौरूष और असीम बल पराक्रम के प्रतीक हैं ، दास्य भाव से सदा ही तत्पर रहे हैं।
सतयुग ، द्वापर ، त्रेता ، कलयुग सभी कालों में महावीर शब्द का उल्लेख आता है। . युद्ध में परास्त कर विजय श्री का वरण करते हैं तो निःसन्देह ही उनके चरित्र में कहीं न कहीं कोई विशिष्ट अलौकिकता रही ही होगी। आज महावीर हनुमान नाम और चिन्तन हर असंभव परिस्थिति पर विजय और सफलता का प्रतीक है।
شخصية متغطرسة
. गया। . महावीर हनुमान सदा अपने इष्ट के लिये पूर्ण समर्पित रहे ، ऐसे पराक्रमी दिव्य अहंकार रहित व्यक्तित्व की साधना निश्चय ही दिव्य और सिद्धिदायक है।
. शिष्यों को सम्पन्न करवाई ، वाल्मीकि ने लव को यह साधना सम्पन्न कराकर 12 वर्ष लव को इतना बना दिया के अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े को कर उसने और उसके भाई कुश हनुमान और स्वयं राम को बांध कर माँ सीता के सामने बांध माँ सीता के सामने सामने .
. विजयश्री प्राप्त कर सके ، अतुल्य बल प्राप्त करके इस साधना से असंभव से असंभव कार्य को भी सहज रूप से सम्पन्न किया जा सकता है।
श्री हनुमान वीरता ، पराक्रम ، दक्षता के प्रतीक है और शक्ति ، बल ، वीर्य ओज ، स्फूर्ति ، धैर्य ، यश निर्भयता ، निरोगता ، विवेक इत्यदि महागुणों के प्रदाता हैं। . शक्ति बाहर से प्राप्त नहीं की जा सकती और न ही बाजार से मिलती है स्रोत तो अपने स्वयं के छुपा है करने की आवश्यकता है कि गुरू से साधना को आत्मसात् करने से जाग्रत किया जा सकता है जिससे मन के साथ-साथ शरीर भी ऐसा तेजस्वी ، बलवान और निरोगी हो जाये की आत्मविश्वास का अमृत प्याला शक्ति ، सौन्दर्य ، ज्ञान कि गंगा ، धैर्य का सागर आप में झलकने लगे यही तो साधना दीक्षा का परम् स्वरूप है।
हनुमान मूल रूप से भगवान शंकर के अवतार हैं ، क्योंकि जब भगवान विष्णु द्वारा राम का स्वरूप ग्रहण कर अवतार लिया तो शंकर ने हनुमान के रूप में अवतार लिया। इस प्रकार विष्णु एवं रूद्र के प्रभाव से ही विशिष्ट माया क्रियायें पूर्ण हो सकी। मूलतः हनुमान में वीर भाव के साथ-साथ सेवा तथा आदर्श का स्वरूप मुख्य रूप में हैं। ऐसा अपने आप में पूर्णत्व प्राप्त करने के लिये जिस समर्पण भाव का हनुमान स्वरूप में वर्णन मिलता है। वही समर्पण-स्वरूप साधक द्वारा ग्रहण करने से ही पूर्ण सिद्धि प्राप्त होती हैं।
श्री हनुमान प्रतीक हैं ब्रह्मचर्य ، बल पराक्रम ، वीरता ، भक्ति ، निडरता ، सरलता और विश्वास का ، इनके एक-एक गुण के सम्बन्ध में हजारों अध्याय लिखे जा सकते है। निर्बल होकर ، अधीन होकर भी क्या जीना؟ शत्रु अथवा बाधा बड़ी व छोटी नहीं होती वह तो केवल व्यक्ति अथवा घटना तो हैं और उस द्वारा द्वारा ही की की सकती है ، जो श्री हनुमान बल बुद्धि प्रदाता दीक्षा के द्वारा ही सम्भव हैं।
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