भोग का तात्पर्य केवल वासना नहीं होता ، भोग का तात्पर्य है कि आपके जीवन में कोई अभाव ना हो ، आप समाज में पूज्य हों ، आपके ज्ञान का स्तर उच्चतम हो ، जिससे स्वयं के साथ-साथ जनमानस का कल्याण हो सके। ऐसे जगद्गुरू महापुरूष की साधना करने से साधक अपने जीवन में अनुकूलता प्राप्त करता है। उसके जीवन में भोग के साथ ही साथ योग का मार्ग भी प्रशस्त होता है। .
सामाजिक जीवन जीने के लिये जिन शक्तियों، गुणों की आवश्यकता है، उसके प्रदाता भगवान कृष्ण ही हैं। जीवन में कदम-कदम पर जो असुररूपी कंसमय राक्षसों द्वारा दुःख संताप، कष्ट पीड़ा، शत्रुमय स्थितियों का विस्तार कर जीवन में अंधकारमय स्थितियां निर्मित करते है जिससे जीवन निरन्तर कष्टमय बना रहता है। साथ ही पशुवत स्थितियों से भी बदतर जीवन व्यतीत करना पड़ता है। सही रूप में तो जीवन का भाव चिन्तन योग-भोग की सुस्थितियों से निरन्तर क्रियाशील रहें। वैसे भी जीवन में कभी भी थोड़ा सा ही संताप दुःख आता है तो उसके निवारण हेतु अपने माता-पिता संतान परिजनों मित्रें का स्मरण नहीं करते बल्कि ईश्वर से ही प्रार्थना की जाती है की वे मेरे संकटों का निदान करें।
जीवन का सारभूत तथ्य यही है कि जीवन में निरन्तर आनन्द प्रसन्नता، सुख، भोग-विलास के साधन प्रचुर मात्रा में प्राप्त हो तब ही साधनात्मक रूप में योगमय स्थितियों का विस्तार हो सकेगा। अतः निरन्तर जीवन्त जाग्रत कर्मशील रहते हुये उक्त सुस्थितियों की पूर्णता से प्राप्ति के लिये कृष्णमय सम्मोहन युक्त चैतन्य महापर्व महापर्व सम्पन्न कर साधक अपनी मनोकामनायें सरलता से पूर्ण करने में समर्थ होते हैं। साथ ही जीवन की कालिमा को समाप्त कर प्रकाश से ओत-प्रोत हुआ जा सकता हैं।
سادهانا فيدي-
ललिताम्बा जयन्ती युक्त माघ शुक्ल पक्षीय वसन्त पंचमी 16 फरवरी को उक्त महापर्व पर उक्त विशिष्ट साधना करें तो निश्चिन्त रूप से कृष्णमय सौन्दर्य सम्मोहन वर्चस्व युक्त जीवन निर्मित हो सकेगा.
स्नान कर शुद्ध धुले हुये वस्त्र धारण कर ، पूजा स्थान में अपने सामने एक बाजोट पर श्रीकृष्ण सम्मोहन शक्ति यंत्र ، योग-भोग प्रदायक जीवट व सोलह कला शक्ति माला स्थापित कर ، पंचोपचार पूजन कर भगवान कृष्ण का ध्यान करें-
स्मरेद् वृक्ष वने रम्ये मोहनकृष्णेरतम्। गोविन्द पुण्डरीकाक्षं गोपकन्याः योग-भोग ।।
ऊँ नमों भगवते वासुदेवाये आत्मनों वदनां। पीडि़ता कामबाणेना विवरामा श्लेष्णोत्सुकाः ।।
استهلك الماء مع المانترا التالية.
المانترا: لاكشمي يسكن عند طرف اليد ساراسواتي في اليدين. جوفيندا في جذر اليد
تذكر رغبتك في جعل حياتك شبيهة بالربيع ، قم بترديد تعويذة من أربع مسبحات من ستة عشر مسبحة كالا شاكتي.
।। ऊँ नमो योगेश्वर कृष्णत्त्व सर्व सम्मोहनाय् नमः ।।
في المساء ، بعد Sadguru Aarti و Samarpan Stuti ، رددوا المانترا التالية لمدة خمس دقائق بدون إكليل.
قم بارتداء المسبحة بعد الانتهاء من ترديد المانترا ، بحيث يتم إعطاء Sadgurudev Kailash Shrimali Ji ، مقدم اليوجا-bhog ، بدء التنويم المغناطيسي Krishna.
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