बन्धन शब्द का तात्पर्य है जो बंधा हुआ हो، जबकि इसके विपरीत यदि मानव बन्धन रहित हो जाये، साथ ही जो स्वतन्त्र विचारों से सम्पन्न हो व जो जीवन में कुछ करने की हिम्मत हौसला रखता हो व आकाश को ठोकर मारने की क्षमता हो।
मोह ، माया ، आलस ، काम क्रोध यह जीवन के बन्धन ही तो है ، जिनकी वजह से हम अपने जीवन मे कुछ कर नहीं पाते ، मनुष्य जीवन में वह आनन्द प्राप्त नहीं कर सकता ، जो कि हमारे जीवन का आधार होता है ، जीवन की वह मस्ती प्राप्त नहीं कर सकता، जिसके बिना जीवन निरर्थक होता है। घुटा हुआ ، दबा हुआ सा बेबस ये जो बन्धन होते है ، न तो सही अर्थो में मनुष्य ही बनने देते है ، और न ही साधक और न शिष्य। . में हमें गुरू की आवश्यकता होती है، जो हमें उस मार्ग के बारे में बताए। . नहीं है।
इसलिए उसने सोचा कि इससे अच्छा मौका कहां मिलेगा कि समुद्र में नाव लेकर उतरने से ही जीवन में पूर्णता और कर्म बन्धनों से मुक्ति मिल जाएगी। लेकिन उसे यह नहीं पता था कि समुद्र में अनेकों बाधाओं से उसका सामना होगा जिनका उसे ज्ञान नहीं है। . पार नहीं कर पाएगें क्योंकि जीवन में अनेकों बाधाएं आती है। बीमारी के रूप में ، धन की कमी के रूप में तंत्र बाधा ، पिशाच बाधा ये सब जीवन की बाधा ही तो है। इसी तरह हम भी कभी-कभी अपने आप को बहुत ज्ञानी समझ लेते है ، और जाने अनजाने ही अपनी नाव समुद्र में डाल देतें हैं तुम्हें इस नाव को चलाने का ज्ञान नहीं है। समुद्र की लहरें विकराल और निरन्तर बाधा रूपी उठने वाली ऊंची लहरें، नाव को एक ही थपेंडे में उलट देने में सक्षम हैं।
तुम्हारे गृहस्थ रूपी समुद्र में खारे पानी के अलावा कुछ नहीं है ، इस जीवन रूपी समुद्र में परेशानियां ، बाधायें ، धन हानि ، शत्रु बाधा आदि विकराल जलचर भरे पडे है ، जिनका एक ही प्रयत्न है ، कि कब मौका मिले और कब आपकी नाव को उलट दें، परन्तु फिर भी तुम्हारी नाव हिचकोलें खाती हुई आगे बढ़ रही है और यह पूरे समुद्र के लिए आश्चर्य की बात है। क्योंकि इसी जीवन से संघर्ष करते-करते ، इसी समुद्र के खारे पानी में तूफानों से टकरा कर तुम्हारे पिता ، दादा और तुम्हारी पीढि़यों की जल समाधि हो गई वे अपने जीवन में नाव तो अच्छी लेकर आये थे ، किन्तु उनको जीवन चलाने का ज्ञान ही था क्योंकि उनके जीवन में कोई गुरू ही नहीं मिला जो उनको समझा सकें ، ज्ञान दे सके। उनकी शक्ति तूफानो से टक्कर लेते-लेते समाप्त हो गई ، वे समुद्र में ही नाव के साथ डूब गये क्योंकि उनके पास हौसला नहीं था। बन्धनों को ठोकर मारने की हिम्मत नहीं थी।
इसीलिए वे जीवन में पूर्णता को प्राप्त नही कर सके ، इसलिए मैंने तुम्हें बन्धु शब्द से सम्बोधित किया हैं ، क्योंकि बन्धन में रह कर तुम अपने जीवन में पूर्णता और वह आनन्द ، मस्ती प्राप्त नहीं कर पाए जो जीवन की निधि हैं ، जिसे जीवन में अखण्डानन्द कहा गया है، इसलिए जीवन में गुरू का होना बहुत जरूरी है। गुरू जीवन के कर्म बन्धनों से सर्वथा मुक्त है ، वह समुद्र के उस पार जाकर आ चुका है ، उन्हें पता है ، कि कैसे उस पार जाया जा सकता है ، कैसे समुद्र में आने वाली अनेकों बाधाओं को पार किया जा सकता है।
और इन सब घटनाओं का यह समुद्र साक्षीभूत रहा है ، यही नहीं अपितु तुम्हारे आस-पास जितनी भी नावें है ، जो बिना गुरू के समुद्र में चल पड़ी है। वे भी हिचकोलें खाती हुई आगे तो बढ़ रही है ، एक कदम आगे बढ़ती है ، तो पांच-दस कदम तूफानों के प्रहार से पीछे हटना पड़ता है। और तुमने देखा होगा कि तुम्हारें भाइयों، सगें सम्बन्धियों की नावें भी डगमगाने लगी है। उनकी आंखों में उदासी और मौत नजर आने लगी है ، उन्हें भय है कि कभी भी कोई एक लहर उठेगी उनकी और उनकी नाव को अपने साथ बहा के ले जाएगी ، उनकी बाजुओं की ताकत कमजोर पड़ने लगी है निगल जाएगा।
फिर वे चाहे कितने भी चीखे-चिल्लाएं ، कितना ही हल्ला करें ، कोई उनकी नाव व उनकी रक्षा करने वाला नहीं नहीं ، क्योंकि उन्होंने अपने जीवन में कभी गुरू रूपी सद्ज्ञान की खोज ही नहीं की इसीलिए वे कितना भी चीखें कोई फायदा नहीं क्योंकि सभी अपनी-अपनी नावें संभालने में लगे हुए है ، सभी की आंखों में भय-डर भरा हुआ है ، और मुंह में खारा पानी चले जाने की वजह से उनके जीवन का स्वाद कसैला हो गया हैं। पर वे लोग तुम्हें आर्श्चयजनक दृष्टि से देख रहें हैं ، उनको यह लग रहा जब उनकी नाव डुबने वाली है ، और वे भय से ग्रस्त हो रहें है स्थिति में तुम इतने शान्त क्यों यह कैसे सम्भव है है ، और तुम्हारे चेहरे पर मुस्कुराहट दिख रहीं है ، क्योंकि तुम्हारे जीवन में जीवित जाग्रत गुरू है ، जो तुम्हारे साथ हमेशा हाथ पकड़ें हुए खड़ा हैं ، जो तुम्हारे जीवन को डूबने नहीं देगा ، किन्तु मनुष्य थोड़े से ज्ञान से इस अहंकार से ग्रस्त रहता है ، कभी उसने अपने जीवन रूपी बन्धनों से निकल कर गुरू की खोज ही नहीं की ، कभी गुरू उनके घर के से या उनके सामने से निकले तो उसकी आंखें उन्हें पहचान ही पाई क्योंकि उसने अपनी आंखों पर माया ، मोह की इतनी मोटी . करता है।
क्योंकि वे अपनी नाव का चप्पू चलाना भूल गये हैं ، और तुम्हारी तरफ ताक रहे है ، वे यह सोच रहें ، कि हम तो डूबेंगे ही ، पर तुम्हें कैसे डुबायें इसलिये वे स्वयं तो भ्रमित हैं ही और आपको भी भ्रमित करने की क्रिया ही कर रहे हैं ، अपने शब्दों के माध्यम से ، अपनी बातों से जैसे ही उन्हें यह पता चला की आपके पास ज्ञान रूपी सद्गुरू है जो हर पल ، हर समय अपकी रक्षा करने को तैयार है। . वाला खुश कैसे है ، इसीलिए वे तुम्हारे जीवन में अवरोध-बाधायें ، परेशानियां ، व्यथायें आदि अनेक स्वरूपों में मैली क्रियाओं के रूप में बाधायें ही उत्पन्न करेंगे।
यदि आपके पास गुरू हैं ، तो वे हर परिस्थिति में तुम्हारा हाथ पकड़े हुये खड़े हैं ، क्योंकि तुम गुरू के आत्मीय हो। तुम्हारा गुरू के साथ आत्मा-प्राणों का सम्बन्ध है ، इसलिए तुम्हें निरन्तर आगे बढ़ना है ، और तुम आगे बढ़ भी रहें हों ، मस्ती के साथ जीवन के संगीत गुनगुनाते हुए ، अपनी धड़कनों को आवाज देते हुए ، जिस बेप्रिफ़की से तुम्हारी नाव आगे बढ़ रहीं है ، यह उनके लिए आश्चर्य की बात है ، और होनी भी चाहिए ، पर तुम भी कभी-कभी भय से ग्रस्त हो जाते हो ، किन्तु इसमें परेशान होने की जरूरत नहीं है ، क्योंकि गुरू तुम्हारे साथ है ، दृश्य रूप में भी अदृश्य रूप में भी तुम्हारी नाव और समस्याओं के बीच गुरू खड़े हैं، और घनघोर अंधेरे में तुम्हारे लिए दीप-स्तम्भ की तरह हैं तुम्हारी नाव इसी जीवन में लक्ष्य तक पहुंच सकें तुम्हारी पीढि़यां कर पाए पाए वह तुम्हें कर के दिखाना ، जो तुम्हारी पीढि़यां किनारे पर नहीं पहुंच पाई वे उस हरियाली उस आनन्द को नहीं देख पाई जो जीवन की निधि निधि की श्रेष्ठता है कर सकते हो मस्ती के आनन्द साथ हिम्मत और हौसले के साथ साथ नाव को लक्ष्य तक पहुंचा सकते हो साथ ही पूर्ण आनन्द स्वरूप में जीवन की स्थितियां निर्मित कर सकते हैं क्योंकि तुम्हारे पास मौका है ، तुम्हारे पास जाग्रत गुरू है، जिनके बतायें हुए मार्ग पर चल कर नव निर्माणमय क्रियायें निर्मित कर सकते हैं। सद्गुरू की शक्ति तुम्हारे साथ है، जो तुम्हारी बाजुओं की शक्ति हैं।
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