. संभाल लिया। . और उसका महत्त्व एक सिद्ध दिवस के समान होगा।
. सोमवती अमावस्या सौभाग्य प्राप्त करने का दिवस हैं، सौभाग्य का अर्थ होता है، वे समस्त उपलब्धियां، जिन्हें प्राप्त कर हम अपने जीवन को आनन्दित और तरंगितमय बना सकें।
Mdha تحت سيطرة القمر والقمر في برج الأسد.
दुर्लभ दर्लभो योग प्राप्यत्वं श्रेष्ठतव नरः ।।
अर्थात् सोमवती अमावस्या के अवसर पर यदि मेधा नक्षत्र हो और सिंह राशि पर चन्द्र हो ، तो ऐसा योग दुर्लभ ही नहीं ، दुर्लभतम है और प्रत्येक साधक को इस योग का उपयोग कर लेना चाहिए।
व्यक्ति के जीवन में सबसे अधिक आवश्यकता धन की होती है ، क्योंकि धन की वजह से ही व्यक्ति अपनी समस्त इच्छाओं को तृप्त कर सकता है ، धन हो तो व्यक्ति का मान सम्मान ، आदर होता है।
लोग धन के लिए परिश्रम करते हैं ، परन्तु मात्र शारीरिक परिश्रम से ही धन प्राप्त होता ، तो सारे मजदूर कभी के लखपति हो गए होते
व्यक्ति के जीवन में स्थिति ऐसी होनी चाहिए ، कि वह खर्च करता रहे साथ ही निरन्तर धन का आगमन जीवन में होता ही रहें।
من أجل هذا sadhna ، بعد الاستحمام ، ارتدي ملابس صفراء واجلس في مواجهة الاتجاه الغربي وعبادة Aishvay Lakshmi Yantra أمامك مع Akshat Kumkum. ثم تأمل في المانترا التالية أمامه-
لوتس ذهبي ، لوتس ، لوتس نقي ، في أزواج ، في يد
Vibhunti shobhayodga sahit jaladhiga jjalochatra gatri.
बाहु द्वन्द्व करा भयार्द्र हृदया भक्त प्रयोल्लासिनी
लक्ष्मी मे भवने वसत्वनुदिनं चन्द्रा हिरण्मययापि ।।
بعد ذلك ، أكمل 5 جولات من ترديد المانترا التالية مع ناشيك ناشيني مالا.
بعد انتهاء ترديد المانترا ، احتفظ باليانترا والمسبحة في المعبد.
हिन्दू धर्म में अनेक व्रत ، उपवास बताये गए हैं ، व्रत उपवास करने से शारीरिक ، मानसिक ، आत्मिक शुद्धि संभव हो पाती है। साथ ही मनोकामनाओं की प्राप्ति के लिए भक्त और ईश्वर का तारतम्य जुड़ पाता है। हिन्दू संस्कृति में अधिकांश व्रत सौभाग्य से सम्बन्धित होते हैं अर्थात् हर स्वरूप में जीवन की दुर्गति को करना और गृहस्थ जीवन श्रेष्ठमय बनाना और यह कार्य स्त्री मां ही श्रेष्ठ रूप में करती है। इसलिये स्त्रियों का जीवन धार्मिक कार्य ، नित्य पूजन ، उपवास ، व्रत आदि की क्रियाओं में अत्यधिक रचा-बसा होता है। अपने प्राकृतिक स्वभाव के कारण स्त्रियों को इन धार्मिक क्रियाओं में संतुष्टि ، संतोष व आनन्द भी प्राप्त होता है।
हरितालिका तीज यह तीज व्रत भाद्रपद (भादो) शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। स्त्रियां इस व्रत को अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए रखती हैं، तो वहीं कुंवारी कन्यायें योग्य वर प्राप्ति के लिए इस व्रतीय नियम का पालन करती हैं। यह व्रत निराहार व निर्जला स्वरूप रखा जाता है।
कथा अनुसार मां गौरी ने सती के बाद हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में जन्म लिया। बाल्यावस्था से ही पार्वती भगवान शिव को वर रूप में प्राप्त करने के लिए संकल्पित थीं। जिसके लिए उन्होंने कठोर तप करने का मानस बनाया और बर्फीली पहाडि़यों، कड़कती ठण्ड में जल में खड़े रहकर तपस्या की، उन्होंने 12 वर्ष तक निराहार रहकर केवल सूखे पत्तों को खाकर व्रतीय नियम का पालन किया।
भगवान शिव ने उन्हें दर्शन देकर पत्नी रूप में स्वीकार किया। . है।
. हलवे का भोग लगाकर अपने अखण्ड सौभाग्य व इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करें ، भगवान शिव-गौरी का ध्यान करें।
اسمع أيها اللطيف ، العالم كله في خوف دائم.
قد يكون هذا هو كمال أولئك الذين أثرت فيهم.
अन्न पानं शिवगौरी हि सौभाग्यं दत्तं तुभ्यं प्रदायां ।।
بعد هذا الترنيمة 5 جولات من المانترا التالية مع Shiv Gauri Saubhagya Mala-
بعد ترديد المانترا ، قم بأداء شيف آرتي. ضع Gauri Shankar Rudraksh في خيط أحمر وقم بارتدائه حول رقبتك واحتفظ بالإكليل في مكان العبادة.
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