गुरू मित्र، सलाहकार व प्रेरक स्वरूप मार्गदर्शकमय देव शक्तियों से युक्त होते है। गुरू-शिष्य का सम्बन्ध गहन आत्मीयता का होता है। शिष्य भी गुरू को स्वी कार करने से पूर्व गुरू को परखता है। गुरू शिष्य अलग होते हुए भी एक हैं। दोनों एक देसरे के प्रति ، समर्पित हो जाते हैं ، सदगुरू शिष्य क॑ मलिन आवरण को हटाते हुये उसके संतापों का हरण करते हुये चिन्ततन मनन की चेतना से जाग्रत करते हैं ، शिष्य के लिए नवीन मार्ग तैयार करते हैं। जबकि संकल्प-विकल्पों के बीच साधक का जीवन झूलता है، विकल्पों से बाहर निकल संकल्प को अपनाना शिष्य का निर्माण करना है। शिष्य के समपर्ण भाव से ही गुरू शक्ति से कृपा प्राप्त करने में सफल हाते हैं। गुरू की चेतना और शिष्य का कर्म भाव मिलने से ही साधक पूर्णता तक पहुँचकर ही प्रकाश को प्राप्त कर पाता है।
इसीलिये जब गुरू दीक्षा प्रदान करते है तो श्री सूक्त पाठ द्वारा शिष्यत का अभिषेक सम्पन्न किया जाता है। जिससे जीवन में दरिद्रता का पूर्णता से नाश होता है। अभिषेक स्वरूप विशिष्ट क्रियाओं को नूतन वर्ष के प्रथम दिवस पर ही आत्मसात करने से पूरे वर्ष भर उत्सव में आनन्द ، हर्ष ، प्रसन्नषता ، उल्लास स्वरूप जीवन चेतन्य बना रहता है। इससे जीवन में छोटी-छोटी बाधायें स्वत: ही निर्मूल हो जाती है। इसी हेतु इस नव वर्ष का प्रारम्भ चित्रा-स्वाति नक्षत्र युक्त हो रहा है। .
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